आज हम बात करेंगे एक ऐसी बैठक की, जिसने यूपी की सियासत में हलचल मचा दी है। 11 अगस्त 2025 यूपी विधानसभा का मानसून सत्र अपने पहले ही दिन हंगामे, नारेबाज़ी और सत्ता–विपक्ष की तीखी झड़पों से गूंज रहा था। लेकिन असली राजनीतिक तापमान तो शाम को बढ़ा, जब लखनऊ के एक फाइव-स्टार होटल में अचानक 40 ठाकुर विधायक और एमएलसी इकट्ठा हो गए। जगह थी लखनऊ का पाँच सितारा होटल क्लार्क अवध, और मौका ‘कुटुंब परिवार’ नाम की एक बैठक। नाम भले ही अपनापन जताता था, लेकिन इस महफ़िल में जो चेहरे थे, वो किसी भी राजनीतिक विश्लेषक के लिए सिर खुजाने का कारण बन सकते थे, क्योंकि वहां यूपी के 49 ठाकुर विधायकों में से 40 मौजूद थे। और यह महज़ चाय–नाश्ते की मुलाक़ात नहीं थी, बल्कि एक ऐसा आयोजन जो यूपी की भविष्य की राजनीति के पन्नों में दर्ज हो सकता है।

इस बैठक का आयोजन बीजेपी के एमएलसी जयपाल सिंह व्यस्त और कुंदरकी से विधायक ठाकुर रामवीर सिंह ने किया था। इसमें बीजेपी, सपा, बसपा—तीनों पार्टियों के क्षत्रिय विधायक मौजूद थे। सपा के बागी विधायक राकेश प्रताप सिंह और अभय सिंह, बसपा के विधायक उमा शंकर सिंह, बीजेपी के विधायक अभिजीत सांगा और एमएलसी शैलेंद्र प्रताप सिंह और कुछ दूसरे समुदायों के नेता भी आए, लेकिन सभा का रंग-रूप साफ़ तौर पर ठाकुर शक्ति का प्रदर्शन कर रहा था।

रामवीर सिंह ने कैमरों के सामने इसे अपनी पोती के जन्मदिन का पारिवारिक समारोह बताया। उनका कहना था यह निजी आयोजन था, इसमें सभी समाज के लोग आमंत्रित थे। जातीय राजनीति से मेरा कोई लेना-देना नहीं। लेकिन राजनीति में हर घटना के कई मायने निकाले जाते हैं। और यहां भी ठीक वैसा ही हुआ, क्योंकि ‘कुटुंब परिवार’ नाम से उसी मौके पर एक व्हाट्सऐप ग्रुप बना, जिसमें सपा, बसपा और बीजेपी के सभी ठाकुर विधायक शामिल किए गए। कहा जा रहा है कि इसका मकसद सत्ता और विपक्ष की क्षत्रिय ताकत को एक मंच पर लाना है।

इस ‘कुटुंब परिवार’ की गूंज लखनऊ से निकलकर दिल्ली के सत्ता गलियारों तक पहुंच गई। वजह, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति और यूपी में संभावित मंत्रिमंडल विस्तार के बीच ठाकुर विधायकों का इतना बड़ा जमावड़ा। राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि यह भविष्य की राजनीति का संकेत हो सकता है। सूत्र बताते हैं कि क्षत्रिय समाज की नाराजगी की एक बड़ी वजह है पूर्व मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को सेवा विस्तार न मिलना। सीएम योगी की सिफारिश के बावजूद केंद्र ने अनुमति नहीं दी, जबकि बंगाल और हिमाचल में सीएम के आग्रह पर वहां के मुख्य सचिवों को सेवा विस्तार मिला। इसके पीछे भाजपा के कुछ मंत्रियों की शिकायतें बताई जा रही हैं।

इसके अलावा, लोकसभा चुनाव 2024 में टिकट बंटवारे को लेकर भी क्षत्रिय नेताओं में नाराजगी रही, जिसकी शुरुआत पश्चिमी यूपी से हुई थी। गाजियाबाद में जनरल वीके सिंह का टिकट काटकर अतुल गर्ग को उम्मीदवार बनाना इसी की मिसाल है। हालांकि, इस बैठक के बैनर पर जयपाल सिंह व्यस्त और ठाकुर रामवीर सिंह के नाम थे, लेकिन बैठक में मौजूद एक विधायक का दावा है कि इसके पीछे सरकार के करीबी दो बाहुबली विधायकों की पूरी रणनीति थी।

बैठक में सभी मेहमानों को स्मृति-चिह्न के रूप में भगवान श्रीराम की मूर्ति, महाराणा प्रताप की तस्वीर और पीतल का बड़ा त्रिशूल भेंट किया गया। ये उपहार महज सजावटी नहीं, बल्कि एकता और पहचान का संदेश भी थे। रामवीर सिंह ने कहा मेरी पोती का जन्मदिन था, बस कुछ परिचित आए थे, समाज की बैठक नहीं थी। वहीं, शैलेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि कुटुंब परिवार की बैठक थी, कोई राजनीतिक उद्देश्य नहीं, बस साथ बैठकर खाना-पीना। उधर, जयपाल सिंह व्यस्त ने कहा कि रामवीर सिंह की जीत की खुशी में पार्टी थी, कुटुंब नाम इसलिए दिया क्योंकि हम सब परिवार हैं।

यूपी में ठाकुर राजनीति का समीकरण भी समझ लेते हैं,उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में 49 ठाकुर विधायक हैं। 43 बीजेपी, 4 सपा, 1 बसपा और एक जनसत्ता पार्टी से। जयपाल सिंह व्यस्त और ठाकुर रामवीर सिंह—दोनों पश्चिमी यूपी से हैं, इसलिए इस बैठक को भविष्य की शक्ति–परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है। यह सिर्फ़ जन्मदिन की पार्टी नहीं, बल्कि 2027 विधानसभा चुनाव को देखते हुए ठाकुर शक्ति की गोलबंदी का संकेत है। रामवीर सिंह भले ही कह रहे हों कि कोई शक्ति प्रदर्शन नहीं, यह निजी आयोजन था, लेकिन सियासत में इत्तेफ़ाक़ और टाइमिंग को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाता। यूपी की राजनीति में योगी सरकार के 8 साल में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में ठाकुर विधायकों का एक मंच पर आना अपने आप में संदेश है। यह देखना दिलचस्प होगा कि ‘कुटुंब परिवार’ का यह प्रयोग आने वाले समय में सिर्फ़ एक व्हाट्सऐप ग्रुप रह जाएगा या एक सियासी मोर्चा बन जाएगा।

( देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं.)