राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Minorities Commission) ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि देश में अल्पसंख्यकों को ‘कमजोर वर्ग’ के रूप में माना जाना चाहिए, क्योंकि यहां हिंदू ‘दबदबे वाला वर्ग’ है. आयोग ने कहा कि संविधान में दिए गए सुरक्षा उपायों और वहां लागू कानूनों के बावजूद अल्पसंख्यकों में असमानता और भेदभाव की भावना बनी हुई है. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं को जायज ठहराते हुए कहा कि भारत जैसे देश में जहां बहुसंख्यक समुदाय सशक्त है, अनुच्छेद 46 के तहत अल्पसंख्यकों को कमजोर वर्गों के रूप में माना जाना चाहिए.
चालीस पन्नों के हलफनामे में कहा गया है कि यदि सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के लिए विशेष प्रावधान और योजनाएं नहीं बनाई गई तो ‘‘तो ऐसी सूरत में बहुसंख्यक समुदाय द्वारा उन्हें दबाया जा सकता है.’’ एक याचिका के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया गया है जिसमें कहा गया था कि कल्याणकारी योजनाएं धर्म पर आधारित नहीं हो सकती हैं.
अनुच्छेद 46 में कहा गया है कि ‘‘राज्य लोगों के कमजोर वर्गों और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा और सभी प्रकार के सामाजिक अन्याय और शोषण से उनकी रक्षा करेगा.’’ एनसीएम ने यह भी तर्क दिया कि इसकी स्थापना अल्पसंख्यकों को उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए मुख्य धारा में एकीकृत करने के उद्देश्य से की गई थी.
केंद्र कर चुका है वकालत
इससे पहले केंद्र सरकार भी अल्पसंख्यकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को वाजिब बता चुका है. उसका कहना है कि ये योजनाएं हिंदुओं के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करतीं और न ही समानता के सिद्धांत के खिलाफ हैं. नीरज शंकर सक्सेना समेत छह लोगों की तरफ से दाखिल याचिका में अल्पसंख्यकों के लिए केंद्र की ओर से विशेष योजनाएं चलाने को गलत बताया गया है. याचिका में कहा गया है कि इन योजनाओं के लिए सरकारी खजाने से 4700 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है जबकि संविधान में इसका कोई प्रावधान नहीं है.
अनुच्छेद 27 करदाताओं के पैसे धर्म विशेष पर खर्च करने से रोकता है
अनुच्छेद-27 के अनुसार करदाताओं से लिए गए पैसे को सरकार किसी धर्म विशेष को बढ़ावा देने के लिए खर्च नहीं कर सकती. लेकिन सरकार वक्फ संपत्ति के निर्माण से लेकर अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों व महिलाओं के उत्थान के नाम पर हजारों करोड़ रुपये खर्च कर रही है. यह बहुसंख्यक समुदाय के के मौलिक अधिकार का हनन है.
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