मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर। महायोगी गुरु श्रीगोरक्षनाथ शोधपीठ, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय एवं राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर के संयुक्त तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का विषय “वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नाथपंथ एवं बौद्ध परंपरा की प्रासंगिकता” रहा। कार्यक्रम कुलपति प्रो. पूनम टंडन के संरक्षण में आयोजित हुआ।
मुख्य अतिथि व उद्घाटन सत्र
संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के पूर्व कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी मुख्य अतिथि रहे, जबकि विशिष्ट अतिथि प्रो. संतोष कुमार शुक्ल (जेएनयू, नई दिल्ली) थे। कार्यक्रम की शुरुआत गोरखनाथ जी के चित्र पर पुष्पार्चन से हुई।
प्रो. संतोष शुक्ल ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि गौतम बुद्ध ने लोक भाषा में चिंतन प्रधान संदेश दिया, जबकि गोरखनाथ ने योग मार्ग का प्रचार किया। उन्होंने कहा कि योग के बिना मोक्ष संभव नहीं। मुख्य अतिथि प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहा कि बुद्ध करुणा और प्रेम के प्रतीक हैं, जबकि गोरखनाथ योग और समरसता का संदेश देते हैं।
तकनीकी सत्र और विचार-विमर्श
तकनीकी सत्र में शोधकर्ताओं ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। इस दौरान महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रदीप कुमार राव ने समाज परिवर्तन की विभिन्न धाराओं पर प्रकाश डाला। काशी हिंदू विश्वविद्यालय की प्रो. सुजाता गौतम ने गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व पर चर्चा की।
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गोरखपुर विश्वविद्यालय के कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. राजवन्त राव ने कहा कि बोधिसत्त्व की अवधारणा बौद्ध धर्म की महत्वपूर्ण देन है। उन्होंने बताया कि नाथ परंपरा और बौद्ध परंपरा में कई समानताएँ हैं, जैसे कि वेदों में आस्था का अभाव और ध्यान को महत्व देना।
पुस्तक विमोचन एवं समापन
कार्यक्रम के दौरान “नाथपंथ ग्रंथ सूची” (डॉ. कुशल नाथ मिश्र और डॉ. सोनल सिंह द्वारा संपादित) एवं “योग” (डॉ. मनोज कुमार द्विवेदी, अतुल किशोर शाही और चंदरेश प्रकाश राय द्वारा लिखित) पुस्तकों का विमोचन किया गया।
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संगोष्ठी में देशभर के अनेक विश्वविद्यालयों से आए शोधार्थियों, शिक्षकों एवं विषय-विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस अवसर पर प्रो. अनुभूति दुबे, प्रो. विजय श्रीवास्तव, प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी, प्रो. सुशील तिवारी, प्रो. शरद मिश्र सहित कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
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