भारतीय जन संघ’ से ‘भारतीय जनता पार्टी’ तक, जानिए अटलजी का पूरा सफ़र

एक सांसद से देश के प्रधानमंत्री तक के सफ़र में अटल बिहारी वाजपेयी और भाजपा ने कई पड़ाव तय किए. बात 1957 की है, दूसरी लोकसभा में भारतीय जन संघ के सिर्फ चार सांसद थे. जब इन सासंदों का परिचय तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन से कराया गया, तो उन्होंने स्वीकार किया था कि वह ‘भारतीय जन संघ’ नाम की पार्टी के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते. अटल बिहारी वाजपेयी भी उन चार सांसदों में से एक थे. नेहरु-गांधी परिवार से आए देश के प्रधानमंत्रियों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी का नाम भारतीय राजनीतिक इतिहास के उन चुनिंदा नेताओं में शामिल होगा, जिन्होंने सिर्फ अपने नाम, व्यक्तित्व और करिश्मे के बूते देश में सरकार बनाई और चलाई.

 

पत्रकारिता से करियर की शुरुआत

ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ. उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक स्कूल टीचर थे. अटल बिहारी वाजपेयी का शुरुआती सफर मुश्किलों भरा रहा. अटल जी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर के ही विक्टोरिया (अब लक्ष्मीबाई) कॉलेज और कानपुर के डीएवी कॉलेज में हुई. उन्होंने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता से अपना करियर शुरु किया. उन्होंने ‘राष्ट्र धर्म’, पाञ्चजन्य और ‘वीर अर्जुन’ पत्रिकाओं का संपादन किया. उन्होंने अपना जीवन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक उस संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया.

 

जन संघ से भाजपा तक का सफर

अटल बिहारी वाजपेयी साल 1951 में स्थापित ‘भारतीय जन संघ’ के संस्थापक सदस्य थे. सन 1955 में उन्होंने पहली बार लखनऊ सीट से लोकसभा का उप चुनाव लड़ा, परंतु सफलता नहीं मिली. सन 1957 में जन संघ ने उन्हें तीन लोकसभा सीटों लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव लड़ाया. लखनऊ सीट से वह चुनाव हार गए, मथुरा सीट पर उनकी जमानत जब्त हो गई, लेकिन बलरामपुर सीट से चुनाव जीतकर वह पहली बार लोकसभा में पहुंचे और अगले पांच दशकों तक लोकसभा के सदस्य रहे. अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी वाकपटुता से लोकसभा में रंग जमा दिया.

 

संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में हिंदी में भाषण देने वाले पहले भारतीय नेता

वाजपेयी 1957 से 1977 में जनता पार्टी की स्थापना तक लगातार बीस वर्ष जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे. वाजपेयी भी आपातकाल के दौरान जेल गए. मोरारजी देसाई की सरकार में सन 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में हिंदी में भाषण देने वाले पहले भारतीय नेता बने। साल 1980 में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की. 6 अप्रैल 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी इस नवगठित पार्टी के पहले अध्यक्ष बने. वह दो बार राज्यसभा (1962 से 1967 और 1986) के लिए भी निर्वाचित हुए.

 

एक सांसद से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर

अटल बिहारी वाजपेयी दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक कुल नौ बार निम्न सदन के लिए चुने गए. बीच में कुछ लोकसभाओं से उनकी अनुपस्थिति रही, ख़ासतौर से 1984 में जब वो ग्वालियर में कांग्रेस के माधवराव सिंधिया के हाथों पराजित हो गए थे. 16 मई 1996 को वह पहली बार 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने. लोकसभा में बहुमत साबित न कर पाने की वजह से 31 मई 1996 को उन्हें त्यागपत्र देना पड़ा. इसके बाद 1998 तक वह लोकसभा में विपक्ष के नेता रहे. साल 1998 के आमचुनावों में सहयोगी पार्टियों के साथ मिलकर उन्होंने लोकसभा में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का बहुमत सिद्ध किया और इस तरह एक बार फिर प्रधानमंत्री बने. लेकिन एआईएडीएमके द्वारा उनकी सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद, उनकी सरकार 13 महीने के अंदर मात्र एक वोट से गिर गई. साल 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को बहुमत हासिल हुआ और अटल बिहार वाजपेयी ने तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इस बार पूरे 5 वर्षों तक उन्होंने 24 पार्टियों के गठबंधन वाली सरकार चलाई.

 

राजनीति से संन्यास की घोषणा

सन 2004 में एनडीए सरकार का कार्यकाल पूरा होने से कुछ दिन पहले ही लोकसभा चुनाव संपन्न कराया गया. भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन (एनडीए) ने एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और भारत उदय (इण्डिया शाइनिंग) का नारा दिया. इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. ऐसी स्थिति में वामपंथी दलों के समर्थन से कांग्रेस ने सरकार बनाने में सफलता प्राप्त की और भाजपा विपक्ष में बैठने को मजबूर हुई. इस हार के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति से संन्यास की घोषणा कर दी और नई दिल्ली में 6-ए कृष्णामेनन मार्ग स्थित सरकारी आवास उनका पता बन गया.

 

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