समान नागरिक संहिता यानी कि यूनिफॉर्म सिविल कोड (Unifrom Civil Code) को लागू करने की मांग को लेकर लगाई गई जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय को नोटिस जारी किया है. केंद्र सरकार को इस याचिका पर 8 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई से पहले नोटिस पर अपना जवाब कोर्ट को देना होगा. दिलचस्प यह भी है कि यह याचिका बीजेपी से जुड़े नेता और पेशे से वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय (Ashwini Kumar Upadhyay) की तरफ से दायर की गयी थी.
याचिकाकर्ता के मुताबिक अश्विनी उपाध्याय के मुताबिक देश में आपसी एकजुटता, भाईचारा और राष्ट्रीय अखंडता को बढावा देने के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना जरूरी है. उपाध्याय का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 44 में समान नागरिक आचार संहिता लागू करने की बात कही गई है, लेकिन सरकार ने उसे अभी तक नहीं बनाया है. उन्होंने कोर्ट से गुहार लगाई है कि वो केंद्र सरकार को निर्देश दे कि देश के नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बनाई जाए, जिसमें सभी धर्म, जाति व संप्रदाय के लोगों को बराबरी का दर्जा दिया जाए और जो समान रूप से सब पर लागू हो.
अर्जी में यह भी सुझाया गया है कि सरकार उसे विभिन्न समुदायों के शास्त्र और रीति-रिवाजों पर आधारित बने पर्सनल लॉ के ऊपर लागू करे. यानी कि किसी भी धर्म के रीति रिवाज पर्सनल लॉ के आधार पर नहीं बल्कि समान नागरिक संहिता के आधार पर लागू हो. याचिकाकर्ता ने इसे बनाए जाने को लेकर तीन महीने के भीतर एक न्यायिक आयोग या उच्च स्तरीय कमेटी गठित करने की मांग भी की है.
अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट में लगाई गई अपनी जनहित याचिका में यह भी सुझाव दिया है कि उस कमेटी की जिम्मेवारी होगी कि वो देश व विकसित देशों के विभिन्न धर्म, जाति, पंथ व संप्रदायों के बेहतर धार्मिक व सामाजिक नियम-कानून के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय परंपराओं को ध्यान में रखकर समान नागरिक आचार संहिता इसके बाद सरकार उसे पूरे देश में लागू करें. याचिका में बताया गया है कि देश में एक गोवा ही राज्य है जहां वर्ष 1965 से समान नागरिक संहिता लागू है. यह नियम वहां के सभी नागरिकों पर भी लागू होता है. इससे संविधान की भावना लागू हो सकेगी.
बता दें कि समान नागरिक संहिता बेहद संवेदनशील मुद्दा है. इसके उठने पर सरकार और विपक्ष में तनातनी बढ़ सकती है. आज यानी कि शुक्रवार को मोदी सरकार में मंत्रियो के विभागों का बटवारा हुआ है. समान नागरिक संहिता का मुद्दा आरएसएस अक्सर उठाता आया है वहीँ मुस्लिम समाज के कुछ लोग इसके विरोध में उतरते देखे गए. ऐसे में सबका साथ, सबका विकास में विश्वास जोड़ने वाली मोदी सरकार द्वारा हाईकोर्ट में लगाई गई इस अर्जी प क्या जवाब आता है यह देखना बेहद अहम होगा.
मालूम हो कि हाल ही में यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने लॉ कमिशन के सामने देश भर में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के बारे में सुझाव दिया था. वक्फ बोर्ड ने कहा था कि देश भर में एक कानून लागू होना चाहिए. दरअसल, लॉ कमिशन ने सात अक्टूबर 2016 को लोगों से यूनिफॉर्म सिविल कोड मामले में 16 सवालों पर राय मांगी थी. इसी सिलसिले में यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष सैयद वसीम रिजवी ने लॉ कमिशन के चेयरमैन जस्टिस बीएस चौहान के सामने अपने सुझाव दिए थे, हालांकि ये बात भी सच है कि देश का सुन्नी मुसलमान समान नागरिक संहिता की सदैव मुखालफत करता आया है.
बता दें कि भारत में अधिकांश पर्सनल लॉ धर्म के आधार पर तय किए गए हैं. हिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध हिन्दू विधि यानी कि सिविल लॉ के अंतर्गत आते हैं. वहीं मुस्लिम और ईसाई धर्म के अपने कानून हैं. मुस्लिमों के कानून शरीयत पर आधारित है. अन्य धार्मिक समुदाओं के कानून भारतीय संसद के संविधान पर ही आधारित हैं.
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