यूपी की योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सरकार ने साल 1980 में मुरादाबाद में हुए दंगों की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का फैसला लिया. दंगे की जांच के लिए बने जस्टिस सक्सेना आयोग की रिपोर्ट योगी सरकार विधानसभा में पेश किया. हिंसा 3 अगस्त 1980 को मुरादाबाद के ईदगाह में भड़की थी, जिसे 84 लोगों की जान गई थी. इस आयोग की रिपोर्ट शुक्रवार को कैबिनेट में पेश की गई. रिपोर्ट में साफ लिखा है कि देंगे में बीजेपी और किसी भी हिंदूवादी संगठन का हाथ नहीं था, यह दंगा केवल और केवल मुसलमानों की सहानुभूति पाने के लिए किया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक ईदगाह और अन्य स्थानों पर गड़बड़ी पैदा करने के लिए कोई भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या हिंदू संगठन जिम्मेदार नहीं था. दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) या भारतीय जनता पार्टी की भी कोई भूमिका नहीं थी. वहीं रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि आम मुसलमान भी ईदगाह पर उपद्रव करने के लिए जिम्मेदार नहीं थे.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि डॉ शमीम अहमद के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग और डॉक्टर हामिद हुसैन उर्फ डॉक्टर अज्जी के नेतृत्व वाले खाकसारों, उनके समर्थकों और भाड़े पर लगाए गए लोगों ने पूरी कारगुजारी को अंजाम दिया था. यह पूरा दंगा पूर्व नियोजित था.
रिपोर्ट के मुताबिक नमाजियों के बीच में सूअर धकेल दिए गए थे. इसके बाद अफवाह फैलने पर क्रोधित मुसलमानों ने पुलिस चौकी और हिंदुओं पर अंधाधुंध हमला किया था. इसके परिणाम स्वरूप हिंदुओं ने भी बदला लिया जिस पर सांप्रदायिक दंगा भड़क उठा था.
43 साल बाद सदन में क्यों पेश हुई रिपोर्ट
जांच के बाद आयोग की रिपोर्ट को दोनों सदनों (विधानसभा और विधान मंडल) में रखे जाने के लिए मंत्रि परिषद के अनुमोदन के लिए 13.03.1986, 09.06.1987, 22.12.1987, 17.09.1988, 31.07.1989, 20.10.1990, 24.07.1992, 11.12.1992, 01.02.1994, 30.05.1995, 15.02.2000, 17.02.2002, 31.05.2004 और 09.08.2005 को राज्य के अलग-अलग मुख्यमंत्रियों से सहमति मांगी गई. हालांकि रिपोर्ट को प्रस्तुत किये जाने पर प्रदेश की सांप्रदायिक स्थिति, रिपोर्ट के प्रकाशन के प्रभाव आदि कारणों से उच्च स्तर पर रिपोर्ट को लंबित रखने का फैसला किया जाता रहा.
दंगे के वक्त थी यूपी में कांग्रेस की सरकार
जिस वक्त ये दंगा हुआ था उस वक्त यूपी में वीपी सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार थी. ये दंगा ईद के दिन शुरू हुआ था. जांच आयोग ने नवंबर 1983 में सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी, लेकिन पहले की तमाम सरकारों ने कभी इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया.
रिपोर्ट में दिए गए सुझाव
- पाकिस्तान से वीजा लेकर आए लोगों को समय सीमा पूरी होने पर कई महीनों तक रुकने की अनुमति देने के बजाय वापस भेजा जाए.
- सांप्रदायिक दंगों वाले मामलों का निस्तारण न्यायालय में ही होना चाहिए. कोई भी मामला वापस नहीं लेना चाहिए. इससे दो समुदायों में कटुता बढ़ती है.
- दंगा होने पर लाउडस्पीकर से अफवाहों का खंडन करना चाहिए. ऐसी अफवाहों से आतंक उत्पन्न होता है, जिससे भगदड़ की स्थिति बनती है.
यह है दंगे की टाइमलाइन
- 43 साल पहले मुरादाबाद में ईद पर जुटी 70 हजार लोगों की भीड़ को था उकसाया
- 14 बार मंत्रिमंडल ने रिपोर्ट पेश करने की नहीं दी मंजूरी, योगी कैबिनेट ने किया पेश
- 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के बाद भड़का था दंगा
- 40 साल बाद सरकार ने रिपोर्ट को सदन में रखने का लिया फैसला
- 84 लोगों की हुई थी मौत, 112 लोग हिंसा में हुए थे घायल
- 20 नवंबर 1983 को जांच आयोग ने शासन को सौंपी थी रिपोर्ट
- 15 मुख्यमंत्री आए-गए, सदन में पेश नहीं की गयी जांच रिपोर्ट
- 108 मुकदमे दंगे को लेकर अलग-अलग थानों में हुए थे दर्ज
- 32 मुकदमों में आरोप पत्र, जबकि 75 में अंतिम रिपोर्ट लगाई गई
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