इंदिरा गांधी सरकार ने कब बनाई आपातकाल की योजना? जानिए उस वक्त भारत के हालात

आजादी के महज 28 साल बाद देश को आपातकाल के दौर से गुजरना पड़ा, जिसका फैसला तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने किया था। 25-26 जून 1975 की रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद (Fakhruddin Ali Ahmed) के हस्ताक्षर के बाद देश में आपातकाल लागू कर दिया गया। अगले दिन सुबह रेडियो पर इंदिरा गांधी ने देशवासियों को संबोधित करते हुए बताया कि आपातकाल लगाया गया है, लेकिन लोगों को घबराने की कोई जरूरत नहीं है।

25 जून 1975 आपातकाल क्यों लगा था ?

25 जून 1975 को भारत में आपातकाल (Emergency) इंदिरा गांधी सरकार ने लगाया था। इसका मुख्य कारण इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके चुनाव को अवैध घोषित करना था, जिससे उनकी सत्ता पर खतरा पैदा हो गया था। इंदिरा गांधी ने आंतरिक अशांति और कानून-व्यवस्था के बिगड़ने का हवाला देते हुए राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपातकाल की घोषणा करवाई। इस दौरान मौलिक अधिकार निलंबित किए गए, प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई और कई विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया।

संचार और प्रेस पर नियंत्रण

दिल्ली के रामलीला मैदान में 25 जून को हुई विरोध रैली की खबर देश में फैलने से रोकने के लिए सरकारी एजेंसियों ने तत्काल कार्रवाई की। बहादुर शाह जफर मार्ग पर अखबारों की बिजली काट दी गई ताकि खबर बाहर न पहुंचे। वहीं, इंदिरा गांधी के खास सहायक आर. के. धवन के कमरे में संजय गांधी और ओम मेहता उन लोगों की सूची तैयार कर रहे थे जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था।

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नीति और न्यायिक संकट

1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने अपने प्रतिद्वंदी राजनारायण को हराया था, लेकिन राजनारायण ने चुनाव परिणाम को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी। 12 जून 1975 को कोर्ट ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर दिया और छह साल के लिए चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया। अदालत ने सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग और अवैध खर्च के आरोपों को सही ठहराया था। हालांकि, इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया और कांग्रेस ने उनका समर्थन किया। इसी बीच गुजरात में विपक्षी जनता मोर्चे की बड़ी जीत ने उनके लिए स्थिति और भी जटिल बना दी।

आपातकाल के दौरान राजनीतिक दमन

आपातकाल के दौरान सरकार ने धारा 352 के तहत अत्यधिक अधिकार प्राप्त कर लिए, जिससे इंदिरा गांधी बिना चुनाव के सत्ता में बनी रहीं। प्रेस और मीडिया को कठोर नियंत्रण में रखा गया और सरकार विरोधी सभी आवाज़ों को दबा दिया गया। मीसा और डीआईआर जैसे कानूनों के तहत लाखों लोग जेलों में बंद कर दिए गए। जेलें राजनीतिक शिक्षा का केंद्र बन गईं, जहां नए नेताओं ने अनुभव हासिल किया।

संजय गांधी का प्रभाव और पांच सूत्रीय योजना

आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने सत्ता पर प्रभाव जमाया। वे अपने सहयोगियों के साथ देश की राजनीति चला रहे थे। संजय गांधी ने परिवार नियोजन, दहेज प्रथा उन्मूलन, वयस्क शिक्षा, पेड़ लगाना और जाति प्रथा उन्मूलन को लेकर पांच सूत्रीय योजना शुरू की। हालांकि, इस योजना का मुख्य जोर परिवार नियोजन पर था, जिसके तहत जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया। इस दौरान लगभग 83 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी कराई गई, जिससे आम जनता में गुस्सा और असंतोष फैल गया।

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आपातकाल की पूर्व तैयारी

आपातकाल की योजना असल में 25 जून की रैली से छह महीने पहले ही तैयार हो चुकी थी। जनवरी 1975 में सिद्धार्थ शंकर रे ने इंदिरा गांधी को एक पत्र भेजकर आपातकाल के क्रियान्वयन की रूपरेखा प्रस्तुत की थी। योजना को तत्कालीन कानून मंत्री एचआर गोखले, कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरुआ और बॉम्बे कांग्रेस अध्यक्ष रजनी पटेल के साथ बैठकों में अंतिम रूप दिया गया था। इस तरह, भारत ने एक ऐसे दौर का सामना किया जिसने लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को गहरा आघात पहुंचाया।

आपातकाल कब और कैसे लगाया जाता है?

आपातकाल (Emergency) एक ऐसी विशेष स्थिति होती है जब देश में गंभीर संकट या खतरा उत्पन्न हो जाता है, जिससे सामान्य शासन चलाना मुश्किल हो जाता है। इसका मतलब होता है कि सरकार को असाधारण अधिकार मिलते हैं ताकि स्थिति को नियंत्रित किया जा सके। भारत में आपातकाल तीन प्रकार के होते हैं: राष्ट्रीय आपातकाल (युद्ध या बाहरी हमला होने पर), राज्य आपातकाल (किसी राज्य में संवैधानिक व्यवस्था टूट जाने पर), और आर्थिक आपातकाल (देश की आर्थिक स्थिति गंभीर संकट में होने पर)। आपातकाल राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह पर संविधान के अनुसार लागू किया जाता है।

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