UP: एक समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में इटावा का सैफई इलाका सत्ता का केंद्र माना जाता था। समाजवादी पार्टी के प्रभाव के कारण यह क्षेत्र लंबे समय तक प्रदेश की राजनीति को दिशा देता रहा। लेकिन 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद यह साफ हो गया था कि सत्ता का केंद्र बदलने वाला है। हालांकि किसी ने यह कल्पना नहीं की थी कि नया पावर सेंटर गोरखपुर इतनी तेजी से और इतनी मजबूती से उभरेगा। गोरखपुर का राजनीतिक प्रभाव जैसे-जैसे बढ़ता गया, वैसे-वैसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सहज संबंध न रखने वाले नेताओं के राजनीतिक ग्राफ में भी अप्रत्याशित उछाल देखने को मिला।
कमलेश पासवान की सियासी यात्रा
बांसगांव से सांसद कमलेश पासवान की कहानी भी कुछ इसी तरह की है। वह तीसरी बार लोकसभा पहुंचे हैं। उनसे पहले उनकी मां समाजवादी पार्टी के टिकट पर इसी सीट से सांसद रह चुकी हैं। उनके भाई विमलेश पासवान वर्तमान में विधायक हैं, जबकि पिता ओम प्रकाश पासवान भी विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। गोरखपुर की राजनीति में यह चर्चा आम है कि योगी आदित्यनाथ और कमलेश पासवान के पिता के रिश्ते बहुत मधुर नहीं थे। इसके बावजूद आज कमलेश पासवान केंद्र सरकार में ग्रामीण विकास राज्य मंत्री हैं।
राधा मोहन दास अग्रवाल
गोरखपुर शहर से विधायक रहे डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल का राजनीतिक सफर इस बदलाव का अहम उदाहरण है। उन्हें न सिर्फ राज्यसभा भेजा गया, बल्कि भाजपा के केंद्रीय संगठन में महामंत्री बनाकर कई राज्यों का प्रभारी पद भी सौंपा गया। राजनीतिक गलियारों में यह तथ्य आज भी चर्चा में है कि एक समय योगी आदित्यनाथ ने भाजपा उम्मीदवार शिव प्रताप शुक्ल को हराने के लिए डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल को हिंदू महासभा के टिकट पर विधानसभा चुनाव में उतारा था। यह रणनीति सफल रही और उसी के साथ शिव प्रताप शुक्ल की राजनीतिक पारी ढलान पर जाती दिखाई दी।
रिश्तों में उतार-चढ़ाव और सत्ता का संतुलन
हालांकि समय के साथ डॉ. राधा मोहन दास अग्रवाल और योगी आदित्यनाथ के संबंध भी सहज नहीं रहे। इसके बाद केंद्र की राजनीति में समीकरण बदले। मोदी सरकार ने शिव प्रताप शुक्ल को राज्यसभा भेजा, उन्हें वित्त राज्य मंत्री बनाया और कार्यकाल पूरा होने के बाद चुनावी राजनीति से हटाकर हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया।यह पूरा घटनाक्रम सत्ता संतुलन और राजनीतिक समायोजन का उदाहरण माना जाता है।
पंकज चौधरी और गोरखपुर की बढ़ती राजनीतिक हैसियत
उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पद को लेकर जब से पंकज चौधरी का नाम लगभग तय माना जा रहा है, गोरखपुर के पावर सेंटर की चर्चा और तेज हो गई है। पंकज चौधरी सात बार के सांसद हैं और माना जाता है कि उन्हें अपनी जीत के लिए योगी आदित्यनाथ की सभाओं या समर्थन पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं पड़ती। गोरखनाथ मंदिर में उनकी मौजूदगी भी अपेक्षाकृत कम रही है। ऐसे में उनका प्रदेश अध्यक्ष बनना कई राजनीतिक सवाल खड़े करता है।
रणनीति या संतुलन
भाजपा के भीतर कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी विपरीत ध्रुवों को साधने की रणनीति पर काम कर रही है। वहीं कई कार्यकर्ताओं के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि गोरखपुर को इतना अधिक राजनीतिक महत्व क्यों दिया जा रहा है और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों को नज़रअंदाज़ क्यों किया जा रहा है। हालांकि राजनीति को करीब से देखने वाले जानते हैं कि दिल्ली का नेतृत्व हर समीकरण को दूरगामी रणनीति के तहत साधने की कोशिश करता है, चाहे वह सत्ता का संतुलन हो या संगठनात्मक मजबूती।
















































