नीतीश के बाद अब चिराग होंगे बिहार के नए किंगमेकर!

बिहार (Bihar) की सियासत का रंगमंच कभी शांत नहीं रहता। पिछले कुछ वर्षों में काफी उठापटक देखने को मिली और इस पूरे घटनाक्रम में दो किरदार इस मंच पर सबसे ज्यादा चमके- नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और चिराग पासवान (Chirag Paswan)। एक तरफ नीतीश, जो कुर्सी बचाने के लिए पलटी मारने में माहिर हैं और दूसरी तरफ चिराग, जो अपने पिता की विरासत को नई ऊंचाइयों पर ले गए। 2019 के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक इन दोनों नेताओं ने अपने राजनीतिक दांव-पेचों से बिहार की राजनीति को नए मोड़ पर ला खड़ा किया है।

2019 का चुनाव और नीतीश कुमार की राजनीति

2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार की राजनीति का माहौल काफी दिलचस्प था। नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और एनडीए को शानदार सफलता मिली। हालांकि, इस चुनाव में चिराग पासवान के विरोध के कारण जेडीयू को कुछ सीटों पर नुकसान भी हुआ।

चिराग पासवान ने उस समय एनडीए में होते हुए भी नीतीश कुमार के खिलाफ अपने कड़े तेवर दिखाए। चिराग पासवान ने कई सीटों पर मजबूत उम्मीदवार खड़े किए, जिसका असर जेडीयू पर साफ दिखा। इसका परिणाम यह हुआ कि जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी। इसके बावजूद भाजपा ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री के पद पर बनाए रखा।

नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर: दांव और बदलते समीकरण

नीतीश कुमार ने बिहार में अपनी लिबरल राजनीति और जातीय समीकरण साधने की कुशलता के कारण एक मजबूत छवि बनाई थी। उन्होंने आरजेडी के ‘एमवाई समीकरण’ (मुस्लिम-यादव) को तोड़कर महिला, अति पिछड़े वर्ग और दलित वोट बैंक को साधा।

2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में उभर रहे थे, तब नीतीश कुमार भाजपा से अलग हो गए और आरजेडी-कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया। इस गठबंधन ने बिहार चुनाव में जीत दर्ज की, लेकिन बाद में राजनीतिक समीकरण बदलते ही नीतीश ने फिर भाजपा के साथ हाथ मिला लिया।

2019 में जेडीयू को इस सियासी पैंतरे का लाभ मिला, हालांकि चिराग पासवान के प्रभाव के कारण कई सीटों पर उन्हें नुकसान भी हुआ। इसके बावजूद भाजपा ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाए रखा।

चिराग पासवान का उभार और उनकी युवा अपील

चिराग पासवान ने अपने पिता रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए ‘बिहारी फर्स्ट’ का नारा दिया। उनके इस स्लोगन ने युवाओं के बीच खासा प्रभाव डाला। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने अकेले चुनाव लड़ा और नीतीश कुमार को बड़ा नुकसान पहुंचाया।

हालांकि, चुनाव के बाद चिराग पासवान को झटका लगा, लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाय अपनी राजनीतिक रणनीति को फिर से मजबूत किया। अब चिराग पासवान अपनी ‘यंग फेस’ और ‘यूथ अपील’ की वजह से बिहार के सियासी पटल पर तेजी से उभर रहे हैं।

2024 के लोकसभा चुनाव और भविष्य का समीकरण

2020 को जीत और सत्ता के बावजूद नीतीश को पार्टी में टूट का ख़ौफ़ सताने लगा। ऐसे में वह एक बार फिर आरजेडी के पाले में गए और नई सरकार के गठन का प्रस्ताव रखा। बात हुई सरकार बन गई। लेकिन 2024 से ठीक पहले नीतीश को नकारात्मक फीडबैक मिलने लगा कि एक तो उनकी पार्टी कमजोर है और लोकसभा में उनका नुकसान हो सकता है। हालांकि, वो एक सूरत में बदल सकता था, जब वे इंडिया गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होते।

नीतीश ने अपने प्रयास से कई दलों को INDIA गठबंधन में लाया था, लेकिन फीडबैक और राजनीति दोनों नुकसान का इशारा कर रही थी। पार्टी के अंदर बड़ा बदलाव करते हुए नीतीश ने पहले ललन सिंह को हटाकर अध्यक्ष की कुर्सी ख़ुद के पास रखी। इधर संजय झा और अशोक चौधरी NDA के समीकरण बना रहे थे और फिर सरकार पलट गई।

लोकसभा में बदले माहौल में चिराग पासवान भी NDA के पाले में आ गए और उनके चाचा पशुपति पारस को NDA में किनारे लगा दिया गया। उनके कोटे से एक भी सीट नहीं दी गई, यहां तक वे ख़ुद और उनका बेटा दोनों लोकसभा चुनाव नहीं लड़ पाए। चुनाव बाद नीतीश और बीजेपी का कॉम्बो बिहार में हिट रहा। यही नहीं, चिराग की स्ट्राइक रेट तो 100% रही।

चिराग पासवान बनेंगे नए किंगमेकर?

चिराग पासवान ने हाल ही में नीतीश कुमार के साथ अपने रिश्तों में सुधार लाने का संकेत दिया है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि भविष्य में चिराग पासवान बिहार की राजनीति में एक ऐसे एक्सेप्टेबल फेस बनकर उभर सकते हैं, जो एनडीए के अलावा जरूरत पड़ने पर ‘इंडिया गठबंधन’ के लिए भी एक प्रभावी चेहरा साबित हो सकते हैं।

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