केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की सिफारिश पर न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा (Justice Yashwant Verma) के ट्रांसफर को मंजूरी दे दी है। वे अब दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High-court) से इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में कार्यभार संभालेंगे, जो उनका मूल कार्यक्षेत्र है। यह निर्णय एक ऐसे विवाद के बीच लिया गया है, जिसमें उनके सरकारी आवास में आग लगने के बाद बड़ी मात्रा में नगदी मिलने की खबर आई थी।
मामले की जांच
न्यायमूर्ति वर्मा के सरकारी आवास में आग लगने के बाद यह मामला सुर्खियों में आया था, जहां फायर ब्रिगेड ने कई गड्डियां पाई थीं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन गड्डियों में बड़ी मात्रा में नगदी थी और आग बुझाने के दौरान इनमें से कुछ जल भी गए थे। इस मामले की जांच अब भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना द्वारा की जा रही है।
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आंतरिक जांच के लिए तीन सदस्यीय पैनल का गठन
कैश कांड मामले में आंतरिक जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक तीन सदस्यीय पैनल का गठन किया गया है। इस पैनल में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी एस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल हैं। यह जांच महाभियोग की प्रक्रिया से अलग है और संविधान के तहत की जा रही है।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का करियर
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा का जन्म 6 जनवरी 1969 को इलाहाबाद में हुआ था। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से बी.कॉम (ऑनर्स) किया और मध्य प्रदेश के रीवा विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। 1992 में उन्होंने अधिवक्ता के रूप में पंजीकरण कराया और 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति प्राप्त की। उन्हें 1 फरवरी 2016 को स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई गई।उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में संवैधानिक, श्रम, औद्योगिक कानूनों के साथ-साथ कॉर्पोरेट कानून, कराधान और संबंधित कानूनों में विशेषज्ञता प्राप्त की। इसके अलावा, वह 2006 से हाईकोर्ट के विशेष वकील और 2012-13 तक उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख स्थायी अधिवक्ता भी रहे थे।
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