केंद्र सरकार नहीं चाहती कि दोषी ठहराए गए नेताओं के उम्रभर चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगे. सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर दायर संशोधित जनहित याचिका का केंद्र सरकार ने पिछले दिनों विरोध किया. केंद्र का तर्क है कि निर्वाचित प्रतिनिधि कानून से समान रूप से बंधे हैं. कानून मंत्रालय ने न्यायालय में दायर हलफनामे में कहा है कि जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के प्रावधानों को चुनौती देने के लिये जनहित याचिका में संशोधन के आवेदन में कोई गुण नहीं है. यह याचिका बीजेपी नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने दाखिल की थी.
अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने अपने जवाब में कहा कि किसी अपराध में दोषी ठहराए जाने पर नौकरशाहों पर प्रतिबंध की तुलना सांसदों/विधायकों पर इसी तरह के प्रतिबंध से नहीं की जा सकती. इसकी वजह यह है कि सांसद/विधायक सेवा नियमों के नहीं बल्कि पद की शपथ के अधीन होते हैं. कानून एवं न्याय मंत्रालय की ओर से दाखिल हलफनामे के मुताबिक, निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के संबंध में कोई विशेष नियम नहीं हैं, यद्यपि तथ्य यह है कि जनप्रतिनिधि लोकसेवक हैं. निर्वाचित जनप्रतिनिधि सामान्यत: उस शपथ के अधीन होते हैं जो उन्होंने देश के और खासकर अपने संसदीय क्षेत्र के नागरिकों की सेवा के लिए ली होती है.
विभिन्न कानूनों के प्रावधानों के तहत दोषी पाए जाने पर नौकरशाहों को उनकी सेवा से जीवनभर के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाता है, लेकिन सांसदों/विधायकों को किसी अपराध में दोषी पाए जाने पर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में वर्णित अवधि के लिए ही अयोग्य ठहराया जाता है. हलफनामे के मुताबिक, सांसदों/विधायकों का आचरण उनके चरित्र और विवेक पर निर्भर होता है, सामान्यत: उनसे देशहित में काम करने की अपेक्षा की जाती है और वे कानून से ऊपर नहीं हैं. जहां तक नौकरशाहों की सेवा शर्तो का संबंध है तो वे अपने संबंधित सेवा कानूनों के अधीन होती हैं जिनमें सेवानिवृत्ति के नियम इत्यादि शामिल हैं. इसलिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के उक्त प्रावधानों को चुनौती देने का कोई औचित्य नहीं है.
बता दें कि भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने संशोधित जनहित याचिका लगाई थी. वह जन प्रतिनिधित्व कानून के अंतर्गत दो साल या इससे अधिक की सजा पाने वाले नेताओं सहित सभी दोषी व्यक्तियों के जेल से रिहा होने के बाद छह साल तक चुनाव लड़ने के अयोग्य होने की बजाय उम्र भर के लिये प्रतिबंध चाहते हैं. केंद्र सरकार ने जवाब में कहा कि पब्लिक इंटरेस्ट फाउण्डेशन बनाम केन्द्र मामले में शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में इस विषय पर विचार करके अपनी व्यवस्था दी है. और वैसे भी एक निर्वाचित प्रतिनिधि की अयोग्यता के बारे में कानून में विस्तार से प्रावधान है.
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