आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पर एजेंसियां आरोप लगा रही हैं कि उनका हरियाणा के किसान नेता और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के संस्थापक गुरनाम सिंह चादुनी (BKU leader Gurnam Singh) से करीबी रिश्ता है। इस बारे में इंटेलिजेंस को जानकारी मिली है।
गुरनाम सिंह कुरुक्षेत्र के एक प्रसिद्ध किसान नेता हैं। वह हरियाणा में किसानों के मुद्दों को लेकर कई आंदोलनकारी कार्यक्रम आयोजित करते आए हैं और अन्य राज्यों के किसान नेताओं के साथ समन्वय भी बनाकर रखते हैं। उन्होंने 2004 में बीकेयू/जी की स्थापना की थी। बीकेयू का यह गुट पहले टिकैत से संबद्ध था, लेकिन अब यह एक स्वतंत्र संगठन है। गुरनाम सिंह अक्सर कुरुक्षेत्र, कैथल, यमुनानगर, सोनीपत, रोहतक, करनाल, अंबाला, पंचकूला और हिसार क्षेत्रों का दौरा करते रहते हैं, ये क्षेत्र उनके संगठन के गढ़ हैं। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, वह चाहता है कि उसे राष्ट्रीय स्तर के किसान नेता के रूप में पहचाना जाए।
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बीकेयू-टी के अध्यक्ष एम.एस.राकेश के बेटे होने के कारण राकेश टिकैत ने इसकी बैठक/आंदोलनों में सक्रियता से भाग लिया। उन्होंने संघ की गतिविधियों का आयोजन भी किया और निगरानी भी की। 28 जनवरी, 2004 को बीकेयू-टी की राजनीतिक शाखा भारतीय किसान दल (बीकेडी) के गठन के बाद उन्हें इसका अध्यक्ष बनाया गया। बीकेडी ने 2004 में संसदीय चुनाव और 2007 में विधानसभा चुनाव लड़ा और असफल रहा।
बीकेयू/मान के राज्य महासचिव बलवंत सिंह बेहरामके मोगा क्षेत्र में किसानों से संबंधित मुद्दे पर बहुत सक्रिय नहीं हैं। वह क्षेत्र में सिख कट्टरपंथी संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और वे जरनैल सिंह भिंडरावाले के अनुयायी हैं। वह राज्य में अपवित्रीकरण की घटनाओं के बाद प्रदर्शन करने वाले संगठनों के प्रमुख नेताओं में से एक थे। उधर, 2008 में 77 वर्षीय बलबीर सिंह राजेवाल ने बीकेयू/एमआर से इस्तीफा दे दिया और बीकेयू/राजेवाल का गठन किया जिसके वे राज्य के अध्यक्ष हैं। वह राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर किसानों से जुड़ी गतिविधियों में सक्रिय रहते थे और किसानों के मुद्दों को उठाते थे।
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खुफिया इनपुट के आधार पर उनके पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और शिअद के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल से अच्छे संबंध हैं। वह पंजाब की जानी-मानी हस्ती हैं। 1990 के दशक में बीकेयू के मूल संगठन से अलग हो जाने के बाद से अपने गुट का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्हें बीकेयू के संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने का श्रेय दिया जाता है। उनके गहरे नॉलेज और अनुभव ने उन्हें पंजाब में किसान आंदोलन का थिंक टैंक बना दिया है।
केंद्रीय मंत्रियों के साथ बातचीत के दौरान किसानों को लेकर उनके चतुर दृष्टिकोण को एक संपत्ति के रूप में देखा जाता है। विरोध प्रदर्शनों की योजना बनाने और उन्हें लागू करने में 31 यूनियनों की बैठकों के दौरान उभरी अलग-अलग राय को एकजुट रखने में भी उनकी वरिष्ठता का उपयोग हुआ है। उन्होंने ही इस विरोध के लिए मांगों का चार्टर तैयार किया है। साथ ही उन्होंने कभी भी किसी भी पार्टी से कोई भी राजनीतिक पद को स्वीकार नहीं किया और ना चुनाव लड़ा।
कीर्ति किसान संघ के प्रदेश अध्यक्ष निर्भय सिंह धुडिके कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही नक्सली आंदोलन में शामिल हो गए थे। 1970 में गांव में उन्होंने सरकार विरोधी पोस्टर चिपकाए। उन्हें कॉलेज के छात्र संघ का सचिव भी चुना गया। इसके बाद उन्होंने पंजाब छात्र संघ (एम/एल) द्वारा 1972 के कुख्यात मोगा फायरिंग प्रकरण में 2 छात्र नेताओं की हत्या के बाद आंदोलन में उन्होंने सरकार विरोधी प्रदर्शनों में भाग लिया और मोगा-चंडीगढ़ के बीच एक सरकारी बस में आग लगा दी थी। इसके बाद उन्होंने कई और धरने-प्रदर्शनों में अहम भूमिका निभाई।
गिरफ्तार भाकपा-माओवादी कैडर जय प्रकाश दुबे को पकड़ने के लिए जनवरी 2009 में उनके घर पर जालंधर पुलिस ने छापेमारी भी की थी। लेकिन खुफिया इनपुट के मुताबिक, पुलिस इस मामले को आगे नहीं बढ़ा पाई, क्योंकि छापे से पहले ही वह उनके घर से भागने में कामयाब हो गया था।
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