समान नागरिक संहिता से पहले युवक-युवती की शादी की न्यूनतम उम्र एक समान करने की तैयारी

दिल्ली हाईकोर्ट में युवक और युवती की शादी की उम्र एक समान करने की मांग को लेकर बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) द्वारा याचिका दाखिल की गई है, जिस पर सरकार से जवाब मांगा गया था. अब सरकार ने इस मसले पर अपना पक्ष रख दिया है. दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल अपने जवाब में महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कहा कि लड़के और लड़की की शादी की न्यूनतम उम्र के मसले पर हमने राज्य सरकारों के साथ सलाह मशविरा किया है. शादी के लिए उम्र में बदलाव स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव के बाद ही संभव है. यह कानून मंत्रालय के आधीन आता है.


अब दिल्ली हाईकोर्ट मामले की अगली सुनवाई 19 फरवरी को करेगा. बता दें कि जनसंख्या नियंत्रण क़ानून को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रेजेंटेशन देने वाले बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने सामान नागरिक संहिता पर भी याचिका दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल की है, जिसपर 4 नवंबर को सुनवाई लगी है.


इससे पहले हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार, कानून मंत्रालय और महिला व बाल विकास मंत्रालय को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था. भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने इस याचिका में दावा किया गया है कि स्त्री और पुरुष के लिए तय शादी की न्यूनतम उम्र में यह अंतर पितृसत्तात्मक रूढ़ियों पर आधारित है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.


उपाध्याय ने याचिका में कहा है कि अभी लड़कों की शादी के लिए न्यूनतम उम्र 21 साल है. जबकि लड़कियों के लिए 18 साल. आखिर इसका आधार क्या है. जो आधार है, वह पितृसत्तात्मक सोच है जो लड़कियों के आत्मनिर्भर बनने की राह में बाधक है. यह कानूनी तौर पर और हकीकत में भी महिलाओं के प्रति असमानता को दर्शाता है और वैश्विक चलन के भी खिलाफ है. उपाध्याय ने याचिका में दलील दी है कि बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन आदि के ही लड़कियों की उम्र सीमा कम तय कर दी गई.


अश्विनी उपाध्याय ने याचिका में कहा कि भारत में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की कम उम्र में शादी की तय की गई उम्रसीमा ग्लोबल ट्रेंड्स के भी खिलाफ है. इतना ही नहीं, इससे संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन होता है. महिलाओं के लिए यह समानता एवं गरिमा के अधिकार के भी खिलाफ है. सुप्रीम कोर्ट में विभिन्न सुधारों से जुड़ीं 50 से अधिक याचिकाएं दाखिल कर पीआईएल मैन कहलाने वाले अश्निनी उपाध्याय ने कहा है कि  दुनिया के 125 से अधिक देशों में महिलाओं और पुरुषों की शादी के लिए समान उम्र है. भारत में भी इसकी मांग उठती रही है. नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन भी पिछले साल  29-30 अगस्त को नई दिल्ली में आयोजित एक सेमिनार में शादी के लिए लड़का और लड़की की उम्रसीमा समान करने की वकालत कर चुका है.


उपाध्याय ने तर्क दिया कि इससे लड़कियों को पढ़ाई करने का समय मिलेगा. लड़कियों को सामाजिक दबाव का सामना करना नहीं पड़ेगा. नहीं तो पुरातनपंथी सोच वाला घर-समाज शादी के बाद से ही महिलाओं से बच्चे की चाहत करने लगता है. कम उम्र में ही लड़कियों के प्रग्नेंट होने से उनकी पढ़ाई के साथ करियर पर भी असर पड़ता है. जिससे लड़कियों के आत्मनिर्भर होने की राह में रोड़े अटकते हैं.


याचिका में कहा गया है कि पत्‍नी की उम्र चूंकि कम होती है, ऐसे में उससे अपेक्षा की जाती है कि वह अपने पति का सम्‍मान करे, जिसकी उम्र अधिक होती है. यह वैवाहिक संबंधों में लैंगिक हाइरार्की जैसा होता है, जिससे कई बार पति-पत्‍नी के संबंध खराब हो जाते हैं.


उपाध्याय ने याचिका में डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट का हवाला भी दिया है. जिसके मुताबिक जो महिलाएं 20 साल की उम्र से पहले प्रग्नेंट होतीं है. उन्हें व उनके बच्चों को कम वजन सहित तमाम तरह की शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. याचिका में कहा गया है कि लड़कों को 21 साल की उम्र मिलने से उन्हें शैक्षिक और आर्थिक रूप से मजबूत मिलने का मौका मिलता है, ऐसे में लड़कियों को ऐसे मौके क्यों नहीं मिलने चाहिए?


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