बॉलीवुड: इंडस्ट्री में सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से पूरा बॉलीवुड हिल गया है. सुशांत की मौत के बाद से बॉलीवुड में नेपोटिज्म शुरू हो गया है. वहीँ एक्टर मनोज बाजपेयी ने बताया की कैसे वो भी एक समय में डिप्रेशन का शिकार थे जब उन्हें इंडस्ट्री में नाकामयाबियां मिल रहीं थी तो वो भी डिप्रेशन का शिकार हो गए थे. एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने से पहले ही उन्हें इतनी नाकामियां मिलीं कि उन्हें लगा कि उनके सपने कभी हकिकत नहीं बन सकेंगे. मनोज बाजपेयी ने हाल ही में एक इंटरव्यू में ये बताया कि वह इतने दुखी हो चुके थे कि वह आत्महत्या करने वाले थे.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मनोज बाजपेयी ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया कि, वह अपना जीवन खत्म करने वाले थे. उन्होंने बताया कि कैसे वो नौ साल की उम्र से ही वह एक्टर बनना चाहते थे, लेकिन उन्हें लगातार नाकामियों का सामना करना पड़ा. एक आउटसाइडर के लिए ब्रेकिंग प्वाइंट भी आया जब उन्हें मुंबई जाने का मौका मिला. फिल्म ‘सत्या’ के बाद उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
इंटरव्यू में मनोज बाजपेयी ने आगे बताया कि वह अमिताभ बच्चन के फैन थे. उन्होंने कहा की, ‘मैं एक किसान का बेटा हूं और अपने 5 भाई-बहनों के साथ बिहार के एक गांव में पला-बढ़ा हूं. हम एक झोपड़ीनुमा स्कूल में पढ़ने जाते थे. हमने एक साधारण जीवन बिताया, लेकिन जब हम शहर आए तो हमने थिएटर जाना शुरू किया.’
यह सोचकर कि वह सपने को अफोर्ड नहीं कर सकते, मनोज ने पढ़ाई जारी रखी. दिल्ली विश्वविद्यालय में थिएटर करने के बाद फिर से उन्हें अपने सपनों को पूरा करने की इच्छा जगी. तब वह 17 साल के थे. उन्होंने कहा, ‘मेरे परिवार को इस बात का पता नहीं था. आखिरकार एक दिन मैंने पिताजी को एक पत्र लिखकर अपने मन की सारी बातें बता दी, लेकिन वह नाराज नहीं हुए और बल्कि मुझे अपनी फीस के लिए 200 रुपये भी भेज दिए.’ उन्होंने आगे बताया कि लगातार संघर्ष और मेहनत के बाद भी उन्हें नाकामियां मिल रही थीं और इस कारण वह अपने सपने से दूर हो रहे थे. मनोज ने बताया कि ‘एनएसडी से उन्हें तीन बार खारिज कर दिया गया था. मेरे सपने टूटने लगे थे और मुझे सुसाइड ही एक रास्ता नजर आ रहा था, लेकिन मेरे दोस्तों ने मुझे बचा लिया. मेरे दोस्त मेरे बगल में सोते थे और मुझे अकेला नहीं छोड़ते थे. वे तब तक मेरे साथ चिपके रहे जब तक की मुझे एनएसडी में दाखिला नहीं मिल गया.’
मनोज ने बताया कि उसी साल तिग्मांशु धूलिया और शेखर कपूर ने मुझे मुंबई आने और काम करने के लिए संपर्क किया. मुझे याद है वह दिन जब मैं चाय की दुकान पर बैठा था और तिग्मांशु अपने खटारा स्कूटर पर मुझे ढूंढते हुए आए और बताया कि शेखर कपूर ने उन्हें बैंडिट क्वीन में कास्ट करने लिए मुंबई बुलाया है. मनोज अपने मुंबई स्ट्रगल के बारे में भी बताते हैं कि उन्होंने पांच दोस्तों के साथ एक चॉल किराए पर ली थी, लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा था. अपनी असफलताओं का जिक्र करते उन्होंने बताया कि उन्हें शुरुआती दिनों में एक बार पहले ही शॉट में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और एक दिन में तीन प्रोजेक्ट से वह बाहर हो गए थे. मनोज बताते हैं कि चॉल का किराया देने के लिए वह लगातार संघर्ष करते थे. उस वक्त वड़ा पाव के दाम भी बढ़ गए थे, लेकिन उनके पेट की भूख से बड़ी उनकी सफलता की भूख थी, इसलिए उसे मरने नहीं दिया.
वही नहीं मनोज ने आगे बताया कि उनकी लाइफ में स्थिरता पहली बार तब आई जब महेश भट्ट ने उन्हें 4 साल के संघर्ष के बाद एक टीवी सीरीज़ में भूमिका दी. तब मुझे प्रति एपिसोड 1500 रुपये मिले थे. इस सीरियल से लोगों का ध्यान मेरे काम पर गया और मुझे अपनी पहली बॉलीवुड फिल्म की पेशकश की गई. इसके बाद जल्द ही मुझे अपना बड़ा ब्रेक मिल गया. ‘सत्या’ के बाद उनके लाइफ में वो समय आया जब उन्हें पुरस्कारों के साथ देखा जाने लगा. इसके बाद ही मनोज ने अपना पहला घर खरीदा था.
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