इटावा: घर से गायब दोनों यादव कथावाचक, जांच टीम पहुंची तो लटका मिला ताला

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh)  के इटावा (Etawah) में भागवत कथा के दौरान कथावाचकों (KathaVachak) के साथ मारपीट, जातिगत भेदभाव और अमानवीय व्यवहार के मामले ने अब एक नया रुख ले लिया है। मुख्य कथावाचक मुकुट मणि यादव (Mukut Mani Yadav) और उनके सहयोगी संत कुमार यादव (Sant Kumar Yadav) कथित रूप से अपने घर से गायब हो गए हैं। जांच टीम जब उनके गांव अछल्दा पहुंची तो उनके घरों पर ताले लटके मिले और दोनों के मोबाइल फोन भी बंद आ रहे हैं। पड़ोसियों से पूछताछ के बाद पुष्टि हुई कि घटना के बाद से ही पूरा परिवार घर छोड़ चुका है।

झांसी पुलिस को सौंपी गई जांच

इस संवेदनशील मामले की जांच झांसी पुलिस को सौंपी गई है, जिसे 90 दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। एसएसपी झांसी बीबीजीटीएस मूर्ति ने पूंछ थाना प्रभारी जेपी पाल को जांच अधिकारी नियुक्त किया है। टीम ने इटावा में कथावाचकों के कार्यक्रम स्थल, गांव और घटनास्थल का निरीक्षण किया। इसके साथ ही कई ग्रामीणों के बयान भी दर्ज किए गए हैं। जांच टीम कथावाचकों के बताए पते पर भी पहुंची, लेकिन वहां सन्नाटा मिला।

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फर्जी आधार कार्डों से गहराया संदेह

जांच के दौरान कथावाचकों के दो-दो आधार कार्ड सामने आए हैं, जिनमें एक ही नंबर और फोटो के बावजूद नाम अलग-अलग हैं। इससे इस पूरे घटनाक्रम पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या कथावाचक सचमुच धोखाधड़ी कर रहे थे। ब्राह्मण समाज महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण दुबे ने आरोप लगाया है कि कथावाचकों ने खुद को ब्राह्मण बताकर कथाएं कीं और समाज को गुमराह किया।

छेड़खानी और अशोभनीय हरकतों के आरोप भी लगे

विवाद में एक और मोड़ तब आया जब स्थानीय महिला रेनू तिवारी ने कथावाचकों पर छेड़खानी का आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि कथा के बाद भोजन के समय कथावाचक ने बदतमीजी की, जिससे नाराज होकर स्थानीय युवक आक्रोशित हो गए। बाद में महिला ने पुलिस में इसकी लिखित शिकायत दर्ज कराई। कथावाचकों पर फर्जी पहचान के जरिए धर्म प्रचार करने का भी आरोप है।

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 सपा ने लिया पक्ष, भाजपा पर साधा निशाना

घटना ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। समाजवादी पार्टी ने कथावाचकों के पक्ष में बयान देते हुए इसे जातीय भेदभाव का मामला बताया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कथावाचकों को पार्टी कार्यालय बुलाकर सम्मानित किया और आर्थिक सहायता भी प्रदान की। उन्होंने कहा कि धर्म सभी के लिए है और किसी की जाति के आधार पर उसके अधिकार नहीं छीने जा सकते। इस मामले में अन्य राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई हैं, जिससे यह प्रकरण अब सामाजिक के साथ-साथ राजनीतिक बहस का विषय बन गया है।

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