उत्तर प्रदेश में धार्मिक ग्रंथ श्रीरामचरित मानस में जिस ‘शूद्र’ शब्द को लेकर सियासी घमासान मचा हुआ है। वह असल में शूद्र नहीं ‘क्षुद्र’ था। यह दावा पूर्व आईपीएस अधिकारी, लेखक और महावीर मंदिर ट्रस्ट पटना के सचिव आचार्य किशोर कुणाल (Acharya Kishore Kunal) ने किया है। उन्होंने प्रेस नोट जारी कर सन 1810 ई. में कोलकाता के विलियम फोर्ट से प्रकाशित और पंडित सदल मिश्र द्वारा संपादित ‘रामचरितमानस’ का उदाहरण दिया, उसमें यह पाठ ‘ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ के रूप में है।
आचार्य कुणाल किशोर ने कहा कि सदल मिश्र बिहार के बहुत बड़े विद्वान और मानस के मान्य प्रवचनकर्ता थे। उनके द्वारा संपादित कृति रामचरितमानस की सबसे पुरानी प्रकाशित पुस्तक है। आचार्य कुणाल ने मानस के परवर्ती प्रकाशन में भी शूद्र या सूद्र की जगह क्षुद्र के प्रयोग का उदाहरण दिया।
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उन्होंने बताया कि 1830 ई. में कोलकाता के एसियाटिक लियो कंपनी से ‘हिंदी एंड हिंदुस्तानी सेलेक्संस’ नाम से एक पुस्तक छपी थी। इसमें रामचरितमानस के सुंदरकांड का भी प्रकाशन संयोजित था। इसमें भी ‘ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ का ही अंकन है। इस 494 पृष्ठ वाली पुस्तक के संपादक विलियम प्राइस, तारिणीचरण मिश्र एवं चतुर्भुज प्रेमसागर मिश्र थे।
बता दें कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरित मानस की कुछ चौपाइयों पर आपत्ति दर्ज कराते हुए उन्हें समाज के एक वर्ग के खिलाफ बताया था। इसके साथ ही उन्होंने इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की थी। उनकी इस टिप्पणी पर साधु-संत समाज और राजनीतिक दलों ने विरोध जताया। हालांकि, मौर्य अभी भी अपनी बात पर अड़े हुए हैं। इसके साथ ही वह साधु-संतों पर पलटवार भी कर रहे हैं।