कानपुर में बदमाशों को पकड़ने गई (Kanpur Encounter) पुलिस पर किए गए हमले में सीओ और एसओ समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए हैं. इस घटना ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता और दिल्ली बीजेपी के प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की है. उन्होंने इसके लिए अंग्रेजों के समय के कानून में जरूरी बदलाव न किए जाने को भी जिम्मेदार ठहराया है.
उपाध्याय ने इसके साथ ही इस बात पर भी सवाल खड़े किए हैं कि आखिर शातिर अपराधी विकास दुबे को इतने अपराधों के बाद भी अब तक पुलिस क्यों बचाती रही. निश्चित तौर पर कहीं न कहीं पुलिसिया तंत्र में खामी का फायदा उठाकर विकास दुबे फलता फूलता रहा है, जिसके बाद उसने इस बड़ी वारदात को अंजाम दिया है, जिसमें यूपी पुलिस के कई अधिकारी और जवान शहीद हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने पुलिस रिफार्म की जरूरत बताई है. उन्होंने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दाखिल कर रखी है.
अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि कानपुर की घटना को समझने के लिए हमें उसकी जड़ में जाना पड़ेगा. विकास दुबे एकदम से इतना बड़ा अपराधी नहीं बन गया, उसने पहले छोटा अपराध किया होगा. पहला अपराध किया उसे सजा नहीं हुई, फिर दूसरा अपराध किया सजा नहीं हुई फिर उसने तीसरा अपराध किया फिर सजा नहीं हुई औऱ उसने चौथा अपराध किया माने कि अगर पहले ही अपराध के बाद उसे सजा मिल जाती तो वो इतना बड़ा अपराधी नहीं बनता और हमारे पुलिसकर्मियों की जान नहीं जाती. इसका मतलब है कि हमारा पुलिस सिस्टम और ज्यूडीशियल सिस्टम गड़बड़ है.
उन्होंने कहा कि पुलिस स्वतंत्र नहीं है उसे राजनीतिक दबाव में काम करना पड़ता है. भारत ने हर क्षेत्र में उन्नति कर ली. हम चंद्रमा पर चले गए, मंगल पर चले गए. अग्नी जैसी मिसाइलें बना लीं, रफाइल खरीद लिया, लेकिन 1860 का अंग्रेजों का बना हुआ इंडियन पीनल कोड हमने आज तक नहीं बदला. 1861 में बना पुलिस एक्ट हम बदल ही नहीं पाए, इसके अलावा 1872 का एविडेंस एक्ट ही हम चला रहे हैं. नार्कों, ब्रेनमैपिंग, पॉलीग्राफ जैसे जरूरी कानून हमने बनाया ही नहीं है.
उपाध्याय ने कहा कि यदि हम वास्तव में देश में अपराध कम करना चाहते हैं तो सबसे पहले इन घटिया अंग्रेजी कानूनों को हटाना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि फ्रॉंस, सिंगापुर, इजराइल, अमेरिका औऱ जापान के पास अच्छे पुलिस कानून हैं हम ऐसे कानूनों को अपने यहां क्यों लागू नहीं करना चाहते. हम इलेक्शन रिफॉर्म, पुलिस रिफॉर्म, ज्यूडीशियल रिफॉर्म क्यों नहीं करना चाहते हैं. आखिर अपराधियों को इतना संरक्षण कैसे मिल जाता कि वे अपराध पर अपराध करे चले जाते हैं और पुलिस हाथ पर हाथ धरे रहती है, उनके खिलाफ एफआईआर करके बैठ जाती है, चार्जशीट नहीं फाइल करती है अगर करती भी है तो ज्यूडीशियल सिस्टम ऐसा है कि सबूतों के अभाव में बरी हो जाते हैं. इसीलिए पुलिस रिफॉर्म, ज्यूडीशियल बहुत जरूरी है.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की है याचिका
बता दें कि अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर जनहित याचिका दाखिल कर रखी है. याचिका में पुलिस का पूरी तरह से राजनीतिकरण होने की बात कही गई है. इसमें कहा गया है कि पुलिस के मनमाने और गैरजिम्मेदार तरीके से काम करने के कारण अधिकांश नागरिक खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं. पुलिस का राजनीतिकरण होने के चलते अपराध की जांच पक्षपातपूर्ण तरीके से की जाती है. राज्य सरकारें आदतन अपने समर्थकों के खिलाफ गंभीर आरोपों को हटवा देती हैं. विरोधियों के खिलाफ फर्जी मामले दर्ज करवाए जाते हैं. आदर्श पुलिस कानून में पुलिस सुधार के लिए उचित तौर-तरीके निर्धारित किए गए हैं. इससे न केवल कार्यप्रणाली ज्यादा सक्षम होगी बल्कि जनता की नजर में पुलिस की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी.
राज्य पुलिस बोर्ड का हो गठन
जनहित याचिका में पुलिस व्यवस्था में सुधार के लिए राज्य पुलिस बोर्ड गठित करने की मांग की गई है. गृह राज्यमंत्री को इसका अध्यक्ष और विधानसभा में विपक्ष के नेता, मुख्य सचिव, गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक को बोर्ड का सदस्य बनाने का सुझाव दिया गया है.
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