आज भी कोलार की खदानों में मौजूद है सोना, पढ़िए KGF 2 की सच्ची और खौफनाक कहानी

KGF 2 का इंतजार लोगों को काफी लम्बे समय से था. पर अब ये इंतेजार खत्म होने की कगार पर है. दरअसल, फिल्म के रिलीज की घोषणा कर दी गई है साथ ही कुछ ही दिन पहले फिल्म का ट्रेलर वीडियो भी जारी कर दिया गया है. इसके वीडियो को दर्शकों से वही प्यार मिल रहा है, जो कि पहले पार्ट को मिला था. रिलीजिंग से पहले ही फिल्म ने रिकॉर्ड तोड़ दिया.  इस फिल्म में साउथ एक्टर्स यश और श्रीनिधि के साथ बॉलीवुड एक्टर संजय दत्त (Sanjay Dutt) और रवीना टंडन भी हैं. इस फिल्म में संजय खूंखार अंदाज में पर्दे पर नजर आएंगे. इस फिल्म की खास बात ये है कि इसमे जो कहानी दिखाई गई है वो सच्ची कहानी पर आधारित है. केजीएफ की पूरी कहानी जिस सोने की खादान पर रची गई है, उसमें आज भी सोना दफन है. पर केजीएफ पार्ट 2 में एक डायलॉग है जिसे सुनकर आप भी कांप जाएंगें. उसमें कहा गया है कि ‘खून से लिखी हुई कहानी है ये… स्याही से नहीं बढ़ेगी. अगर आगे बढ़ाना है, तो फिर से खून ही मांगेगी’.  अगर बंद पड़े खदानों की फिर से खुदाई की जाती है कि फिर से खून ही मांगेगी.

121 साल पहले खदान से निकला था करीब 900 टन सोना

डीएनए की एक रिपोर्ट के मुताबिक केजीएफ में 121 साल पहले खुदाई के दौरान करीब 900 टन सोना निकला था. कर्नाटक में कोलार गोल्ड फील्ड्स है. इस खदान के बारे में ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वॉरेन ने एक  आर्टिकल लिखा था. इसके मुताबिक 1799 में श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान की हत्या करने के बाद कोलार और उसके आस-पास के इलाके पर कब्जा कर लिया. कुछ बरसों बाद अंग्रेजों ने ये जमीन मैसूर राज्य को दे दी लेकिन सोना उगलने वाले इलाके कोलार को अपने पास ही रखा.

वॉरेन के इस आर्टिकल के मुताबिक चोल साम्राज्य के दौरान लोग जमीन को हाथ से ही खोदकर सोना निकाल लेते थे. एक बार वॉरेन ने गांववालों को लालच देकर सोना निकलवाया तो ढेर सारी मिट्टी में से थोड़े से सोने के कण ही निकलते थे. बात बनती नहीं लगी तो इसके लिए मॉडर्न टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया, फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ. बल्कि कई मजदूरों की जान चली गई. थक हार कर ब्रिटिश सरकार ने खुदाई पर रोक लगा दी. दरअसल, सोना मिलना इतना आसान भी नहीं था.

मशालों और लालटेनों की मदद से खदान में की जाती थी रोशनी

वॉरेन के इस आर्टिकल को बरसों बाद ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने 1871 में पढ़ी और उस पर सोने को हासिल करने की सनक सवार हुई. वह रिसर्च करने में जुट गया. 1873 में मैसूर के महाराजा से खुदाई के लिए अनुमति ली और 1875 में खुदाई शुरू की. आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि ये काम कितना खौफनाक था. रोशनी के लिए मशालों और लालटेनों का इस्तेमाल किया जाता था.

खदान के लिए ये रोशनी पर्याप्त नहीं थी लिहाजा पहले यहां लेवली ने बिजली का इंतजाम करवाया. रिपोर्ट के मुताबिक सोने का लालच ऐसा कि केजीएफ इंडिया का पहला इलाका बन गया, जहां बिजली सप्लाई शुरू हो गई. मशीनों की मदद से 1902 में 95 फीसदी सोना निकलने लगा. 30 हजार मजदूर खदान में काम करने लगे. लेवली का प्रयोग सफल रहा, खदान सोना उगलने लगी.

2001 आते-आते लिया गया खुदाई बंद करने का फैसला

आजादी के बाद भारत सरकार ने इन खदानों को अपने कब्जे में ले लिया और भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड कंपनी काम देखने लगी. शुरू में सब ठीक रहा लेकिन 80 के दशक में कंपनी की हालत खराब होने लगी, हालात ऐसे हुए कि मजदूरों को देने के लिए पैसे तक नहीं थे. 2001 आते-आते खुदाई बंद करने का फैसला ले लिया गया और खुदाई बंद होते ही कोलार गोल्ड फील्ड्स खंडहर में तब्दील हो गए. हालांकि कई रिपोर्ट्स में ये दावा किया जाता है कि यहां आज भी सोना मौजूद है.