कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने आज लोकसभा चुनाव 2019 के लिए अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है. कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र का नाम ‘हम निभाएंगे’ रखा है. पार्टी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा है कि उनकी सरकार बनने पर AFSPA ( आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट) कानून का संशोधन होगा और भारतीय दंड संहिता की धारा 124 A को खत्म किया जाएगा.
मौजूदा समय में केंद्र सरकार ने AFSPA एक्ट जम्मू-कश्मीर में लागू किया हुआ है और इस एक्ट की वजह से जम्मू-कश्मीर में सेना को कार्रवाई के विशेष अधिकार मिले हुए हैं. कांग्रेस पार्टी ने कहा कि वह सुरक्षा बलों और नागरिकों के मानव अधिकारों की शक्तियों को संतुलित करने के लिए इस कानून में संशोधन करेगी….आइये जानते क्या है अफ्स्पा क़ानून.
1958 में बनी थी अफ्सपा कानून
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) 1958 में संसद द्वारा पारित किया गया था और तब से यह कानून के रूप में काम कर रही है. आरंभ में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड और त्रिपुरा में भी यह कानून लागू किये गये थे, लेकिन मणिपुर सरकार ने केंद्र सरकार के विरुध चलते हुए 2004 में राज्य के कई हिस्सों से इस कानून को हटा दिया.
जम्मू-कश्मीर में यह कानून 1990 में किया था लागू
जम्मू-कश्मीर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) 1990 में लागू किया गया था. राज्य में बढ़ रही आतंकी घटनाओं के बाद इस कानून को यहां लागू किया था. तब से आज तक जम्मू-कश्मीर में यह कानून सेना को प्राप्त हैं. इसके बाद भी राज्य के लेह-लद्दाख इलाके इस कानून के अंतर्गत नहीं आते हैं.
सेना को गिरफ्तारी का विशेषाधिकार
इस कानून के तहत जम्मू-कश्मीर की सेना को किसी भी व्यक्ति को बिना कोई वारंट के तशाली या गिरफ्तार करने का विशेषाधिकार है. यदि वह व्यक्ति गिरफ्तारी का विरोध करता है तो उसे जबरन गिरफ्तार करने का पूरा अधिकार सेना के जवानों को प्राप्त है.
संदेह के आधार पर जबरन तलाशी का अधिकार
अफ्सपा कानून के तहत सेना के जवानों को किसी भी व्यक्ति की तलाशी केवल संदेह के आधार पर लेने का पूरा अधिकार प्राप्त है. गिरफ्तारी के दौरान सेना के जवान जबरन उस व्यक्ति के घर में घुस कर संदेश के आधार पर तलाशी ले सकते हैं.
कानून तोड़ने वालों पर फायरिंग का भी अधिकार प्राप्त है
सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफ्सपा) के तहत सेना के जवानों को कानून तोड़ने वाले व्यक्ति पर फायरिंग का भी पूरा अधिकार प्राप्त है. अगर इस दौरान उस व्यक्ति की मौत भी हो जाती है तो उसकी जवाबदेही फायरिंग करने या आदेश देने वाले अधिकारी पर नहीं होगी.
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