महाकुंभ 2025 (Mahakumbh 2025) में एक अद्वितीय और ऐतिहासिक संयोग देखने को मिला है। इस भव्य आयोजन के एक माह के दौरान 14 नवजात शिशुओं का जन्म हुआ, जिसमें 8 बेटे और 6 बेटियां शामिल हैं। खास बात यह रही कि सभी बच्चों का जन्म सामान्य प्रसव से हुआ और किसी भी प्रसूता को सर्जरी की आवश्यकता नहीं पड़ी। इन शिशुओं के नाम धार्मिक आस्था और आध्यात्मिकता से प्रेरित होकर कुंभ, गंगा, यमुना, नंदी, बजरंगी, अमृत और सरस्वती जैसे नाम रखे गए हैं।
महाकुंभ स्नान के लिए आईं गर्भवती महिलाएं बनीं संयोग का हिस्सा
इन सभी महिलाओं की डिलीवरी सेक्टर-2 में स्थित 100 बिस्तरों वाले सेंट्रल हॉस्पिटल में हुई, जो महाकुंभ मेले के दौरान स्थापित किया गया था। इस अस्पताल में आईसीयू से लेकर डिलीवरी रूम तक अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। दिलचस्प बात यह है कि ये सभी महिलाएं अपनी गर्भावस्था के अंतिम चरण में महाकुंभ स्नान के लिए आई थीं और इसी दौरान उन्हें प्रसव पीड़ा हुई।
पहला जन्म 29 दिसंबर को, नाम रखा गया ‘कुंभ’
महाकुंभ मेले की तैयारियों के दौरान 29 दिसंबर 2024 को पहला शिशु जन्मा, जिसका नाम ‘कुंभ’ रखा गया। इसके अगले ही दिन 30 दिसंबर को एक बच्ची ने जन्म लिया, जिसे ‘गंगा’ नाम दिया गया। गंगा की मां, बांदा जिले की 24 वर्षीय शिवकुमारी, अपने पति राजेश के साथ महाकुंभ में काम की तलाश में आई थीं। इसी दौरान उन्हें प्रसव पीड़ा हुई और उनकी सुरक्षित डिलीवरी सेंट्रल हॉस्पिटल में कराई गई।
धार्मिक नामों की परंपरा को दिया गया महत्व
महाकुंभ में जन्म लेने वाले इन 14 बच्चों को आध्यात्मिक और धार्मिक मान्यताओं को ध्यान में रखते हुए नाम दिए गए हैं। इन नामों में कुंभ, गंगा, बजरंगी, यमुना, सरस्वती, नंदी, बसंत, बसंती, अमृत, शंकर, कृष्णा और अमावस्या शामिल हैं। अस्पताल प्रशासन ने परिवार वालों को पहले ही यह सुझाव दिया था कि वे चाहें तो बाद में घर जाकर बच्चों का नाम बदल सकते हैं।
सीएमओ ने दी स्वास्थ्य संबंधी जानकारी
सेंट्रल हॉस्पिटल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. मनोज कौशिक ने बताया कि सभी नवजात शिशु और उनकी माताएं पूरी तरह स्वस्थ हैं। उन्होंने कहा, “सभी बच्चों की डिलीवरी सामान्य प्रक्रिया से हुई है और तीसरे दिन उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।” उन्होंने बताया कि जैसे ही पहले बच्चे ‘कुंभ’ के जन्म की खबर फैली, श्रद्धालुओं में इसे ईश्वरीय आशीर्वाद मानते हुए नवजातों को देखने की उत्सुकता बढ़ गई।
144 साल बाद ऐतिहासिक संयोग
महाकुंभ 2025 का यह संयोग 144 वर्षों के बाद देखने को मिला है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों की उत्पत्ति हुई थी और अमृत कलश से अमृत की बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में गिरी थीं। इसी मान्यता के आधार पर इन चारों स्थानों पर कुंभ का आयोजन किया जाता है। इस बार प्रयागराज में 14 नवजातों का जन्म होना इस आध्यात्मिक मान्यता को और अधिक गहराई देता है।
महाकुंभ 2025 में यह दुर्लभ संयोग श्रद्धालुओं के लिए एक दिव्य अनुभूति का प्रतीक बन गया है। इस अलौकिक घटना को लोग ईश्वरीय आशीर्वाद मान रहे हैं और इसे धर्म, आस्था और आध्यात्मिकता का अद्वितीय संगम बता रहे हैं।