मुजफ्फरनगर: ढाबों से हटाए जाने लगे मुस्लिम कर्मचारी, सलीम ने बंद की चाय की टपरी, वसीम का ढाबा चलाएगा मनोज

कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) के रूट पर खाने-पीने की दुकान चलाने वालों का नाम और पहचान अनिवार्य किए जाने से दुकानदारों में बेचैनी बढ़ गई है। सरकार के फैसले के साथ ही मुजफ्फरनगर (Muzaffarnagar) में कावंड़ रूट की दुकानों पर दुकानदार अपने नाम का बोर्ड लगा रहे हैं। यही नहीं, ढाबों से मुस्लिम कर्मचारी भी कांवड़ यात्रा तक के लिए हटाए जा रहे हैं। कई जगह तो कर्मचारियों ने खुद ही आने से इन्कार कर दिया है।

कई जगह दुकानों पर लगा ताला

दरअसल, कांवड़ यात्रा 22 जुलाई से शुरू होने वाली है और मुजफ्फरनगर में मांसाहारी भोजन बेचने वाले खाने-पीने के ठेले बंद होने शुरू हो गए हैं। वहीं, अल्पसंख्यक समाज के कुछ दुकानदारों ने दूसरे समुदाय के लोगों को अपनी दुकान किराए पर दे दी है या फिर साझीदार बन गए है। यही नहीं, कई जगह दुकानों पर कांवड़ यात्रा के समापन तक के लिए ताला डाल दिया गया है।

उधर, पुरकाजी निवासी सलीम छपार टोल प्लाजा के निकट लंबे समय से चाय की दुकान चला रहे हैं। पुलिस के फैसले के बाद कांवड़ यात्रा संपन्न होने तक दुकान बंद रखने का फैसला लिया है। सलीम का कहना है कि परेशानी तो जरूर होगी, लेकिन वह किसी लफड़े में नहीं पड़ना चाहते हैं। सलीम ने बताया कि उन्होंने अपनी दुकान पर पर्दा लगा दिया है।

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वहीं, छपार के पास ही बहेड़ी निवासी वसीम का ढाबा है। नए नियमों के बाद अब उसने ढाबा छपार निवासी मनोज पाल को एक माह के लिए किराए पर दिया है। वह कहते हैं कि हमें प्रशासन के नियम से कोई परेशानी नहीं है। कांवड़ यात्रा के बाद फिर से अपना काम शुरू कर दिया जाएगा।

इसी तरह दिल्‍ली-देहरादून हाइवे पर सलीम पिछले 25 सालों से संगम शुद्ध शाकाहारी भोजनालय का संचालन कर रहे थे। नए आदेश के बाद इस ढाबे का नाम सलीम शुद्ध शाकाहारी भोजनालय कर दिया गया है। सलीम ने खाद्य सुरक्षा विभाग में इसी नाम से रजिस्‍ट्रेशन करवा दिया है। ढाबा मालिक सलीम का कहना है कि अपना नाम और पहचान उजागर करने में उन्‍हें कोई आपत्ति नहीं है। उनके ढाबे पर बाहर का बोर्ड बदल गया है। हालांकि अंदर अभी भी संगम शुद्ध भोजनालय लिखा हुआ है।

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इस मामले में मेरठ जोन के एडीजी डीके ठाकुर ने कहा कि मुजफ्फरनगर में एक साल पहले कांवड़ियों ने एक ढाबे पर खाना खाया। उनको बाद में पता चला कि ढाबे पर बाहर हिंदू नाम लिखा था, लेकिन उसके जो मालिक-कर्मचारी थे, वह दूसरे समुदाय के थे। इसे लेकर रोष उत्पन्न हो गया। तोड़फोड़ भी हुई। इन सबसे बचने के लिए पुलिस-प्रशासन ने कानून और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह निर्णय लिया है।

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