Navratri 2024: नवरात्रि के सातवें दिन विन्ध्य पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी की पूजा अर्चना कालरात्रि (Kalratri) के रूप में की जाती है. मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यंत भयानक है. मान्यता है कि मां कालरात्रि भक्तों को अभय वरदान देने के साथ ग्रह बाधाएं भी दूर करती हैं. मां कालरात्रि की अराधना से आकस्मिक संकटों से मुक्ति मिलती है.
माता काली (Kali Mata) को ‘शुभंकारी’ (Shubhankari Mata) भी कहते है. सभी दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं. माता कालरात्रि की पूजा करने से मनुष्य समस्त सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है. मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं. साधक को इस दिन सहस्रार चक्र पर ध्यान लगाना चाहिए.
मां कालरात्रि का स्वरुप
मां कालरात्रि का रूप देखने में अत्यंत भयानक है, भगवती दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप में वर्ण काला, केश बिखरे और कंठ में विद्युत की चमक वाली माला है, मां के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल हैं, जिनसे बिजली की भांति किरणें निकलती रहती हैं. माता की नासिका से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं. मां का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है. मां अपने बच्चों को शुभ फल प्रदान करती है इसलिए शुभंकरी नाम से भी पुकारी जाती हैं. यह देवी काल रात्रि की महामाया और भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं और इन्होंने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड़ रखा है.
मां कालरात्रि की कथा
एक बहुत बड़ा दानव था रक्तबीज. उसने देवों और जनमानस को परेशान कर रखा था. उसकी विशेषता ये थी कि जब उसके खून की बूंद (रक्त) धरती पर गिरती थी तो उससे उसका हूबहू वैसा ही नया रुप बन जाता था. फिर सभी भगवान शिव के पास गए, शिव को पता था कि देवी पार्वती ही उसे खत्म कर सकती हैं. शिव ने देवी से अनुरोध किया. इसके बाद मां ने स्वयं शक्ति संधान किया. मां पार्वती का चेहरा एक दम भयानक डरावना सा दिखने लगा. फिर जब वो एक हाथ से रक्तबीज को मार रहीं थीं तभी दूसरे हाथ में एक मिट्टी के पात्र खप्पर से झेल लेतीं और रक्त को जमीन पर गिरने नहीं देतीं. इस तरह रक्तबीज को मारने वाला माता पार्वती का ये रूप कालरात्रि कहलाया.
मां कालरात्रि की ऐसे करें पूजा-
मां की कृपा प्राप्त करने के लिए मां को गंगाजल, गंध, पुष्प, अक्षत, पंचामृत से पूजा की जाती है. मां कालरात्रि को लाल रंग की चीजें अर्पित करना शुभ माना जाता है.
मां कालरात्रि का मंत्र:
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी.
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते..
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि.
जय सर्वगते देवि मां कालरात्रि नमोस्तु ते.
बीज मंत्र
ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे.
सप्तमी पूजा के दिन तंत्र साधना करने वाले साधक आधी रात में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं तथा इस दिन मां की आंखें खुलती हैं. पूजा करने के बाद इस मंत्र से मां को ध्यान करना चाहिए-
एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता.
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी..
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा.
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी..
इस मंत्र जप के पश्चात भगवान शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी करनी चाहिए. इसके पश्चात आरती एवं प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.
Also Read: ‘विकसित हरियाणा-विकसित भारत’ की संकल्पना की सिद्धि को समर्पित है जीतः योगी
( देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं. )