निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadash 2022) व्रत सभी एकादशी में सबसे बड़ी एकादशी मानी जाती है. इस साल इसकी दो तिथि मानी जा रही है. दरअसल एकादशी तिथि 10 जून को शुक्रवार की सुबह सात बजकर पच्चीस मिनट से शुरू हो रही है और अगले दिन 11 जून को शाम 5.45 बजे तक रहेगी. इसलिए लोगों में निर्जला एकादशी व्रत की तिथि को लेकर थोड़ा कंफ्यूजन है. दरअसल पंचांग के अनुसार तिथि अगर सूर्योदय से पहले लग रही है तो उसे उदया तिथि कहते हैं.
सूर्योदय के बाद लगने वाली तिथि अगले दिन ही मानी जाती है. एकादशी 10 जून को सूर्योदय के बाद सुबह7.25 पर लग रही है, इसलिए इसे उदया तिथि नहीं माना जाएगा. इसलिए एकादसी व्रत उदया तिथि 11 जून को ही करना उत्तम रहेगा. दरअसल देव कार्यों की तिथि उदयातिथि से मनानी जाती है. निर्जला एकादशी की उदयातिथि 11 जून को ही रहेगी. इसी दिन द्वादशी का क्षय और तेरस भी लग रही है. जिससे अति शुभ मुहूर्त भी बन रहा है.
निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु के उपासना का पर्व है. मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सालभर के एकादशी के व्रत का फल मिलता है. यह व्रत रखने के दौरान क्रोध नहीं करना चाहिए और न ही इस दिन झूठ बोलना चाहिए.
निर्जला एकादशी का व्रत रखने के दौरान आप प्रातः काल स्नान करने के पश्चात सूर्य देवता को अर्घ दें. इसके बाद पीताम्बर (पीले वस्त्र) धारण करके भगवान विष्णु की अराधना करते हुए विष्णु सहस्त्रानाम स्त्रोत का पाठ करें. भगवान विष्णु मां लक्ष्मी की प्रतिमा पर फूल, पंचामृत और तुलसी का पत्ता अर्पित करें. एकादशी का व्रत रखने वाले इस बात का विशेष ख्याल रखें कि यदि आप का स्वास्थ नहीं साथ दे रहा है और आप बिना पानी के नहीं रह सकते हैं तो पानी में नींबू मिलाकर पी लें. अगर आप इसके बाद भी व्रत नहीं रख पाते हैं तो फल भी खा सकते हैं.
Nirjala Ekadashi 2022 Date and Time in India
निर्जला एकादशी 2022 तिथि : 10 जून, दिन शुक्रवार
निर्जला एकादशी 2022 तिथि प्रारंभ : 10 जून को सुबह 07:25 मिनट से
निर्जला एकादशी व्रत 2022 तिथि : 11 जून, दिन शुक्रवार
निर्जला एकादशी 2022 तिथि समापन : 11 जून को शाम 5.45 बजे तक
निर्जला एकादशी व्रत कथा
एक बार भीम ने वेद व्यास जी से कहा कि उनकी माता और सभी भाई एकादशी व्रत रखने का सुझाव देते हैं, लेकिन उनके लिए यह कहां संभव है. वह पूजा पाठ, दान आदि कर सकते हैं, लेकिन व्रत में भूखा नहीं रह सकते.
इस पर वेद व्यास जी ने कहा कि भीम, यदि तुम नरक और स्वर्ग लोक के बारे में जानते हो, तो प्रत्येक माह में आने वाली दोनों एकादशी के दिन अन्न ग्रहण मत करो. तब भीम ने कहा कि यदि पूरे वर्ष में कोई एक व्रत हो तो वह रह भी सकते हैं, लेकिन हर माह व्रत रखना संभव नहीं है क्योंकि उनको भूख बहुत लगती है.
उन्होंने वेद व्यास जी से निवेदन किया कि कोई ऐसा व्रत हो, जो पूरे एक साल में एक दिन ही रहना हो और उससे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए, तो उसके बारे में बताने का कष्ट करें. तब व्यास जी ने कहा कि ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी यानी निर्जला एकादशी एक ऐसा व्रत है, जो तुम्हें करनी चाहिए.
इस व्रत में पानी पीना मना है. इसमें स्नान करना और आचमन करने की अनुमति है. इस दिन भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है. यदि निर्जला एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करें, तो पूरे साल के एकादशी व्रतों का पुण्य इस व्रत को करने से मिलता है.
द्वादशी को सूर्योदय बाद स्नान करके ब्राह्मणों को दान दें, भूखों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन करके व्रत का पारण करें. इस प्रकार से यह एकादशी व्रत पूर्ण होता है. इस निर्जला एकादशी व्रत का पुण्य सभी दानों और तीर्थों के पुण्यों से कहीं अधिक है. यह भगवान ने स्वयं उनसे बताया था.
व्यास जी की बातों को सुनने के बाद भीमसेन निर्जला एकादशी व्रत रखने को राजी हुए. उन्होंने निर्जला एकादशी व्रत किया. इस वजह से यह भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी कहलाने लगी.
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