Nirjala Ekadashi Vrat: इस तारीख को है निर्जला एकादशी, जानें भीम ने क्यों रखा था यह व्रत

Nirjala Ekadashi Vrat: साल में 24 एकादशी आती हैं और ये सभी भगवान विष्‍णु को समर्पित हैं. इनमें से कुछ एकादशी को बहुत महत्‍वपूर्ण माना गया है. जैसे ज्‍येष्‍ठ मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी, इसे निर्जला एकादशी या भीमसेन एकादशी कहते हैं. निर्जला एकादशी व्रत में पूरे दिन पानी की एक बूंद भी ग्रहण नहीं की जाती है और द्वादशी को ही व्रत का पारण किया जाता है. यह कठिन व्रत रखने और भगवान विष्‍णु की पूजा-आराधना करने से व्‍यक्ति दीर्घायु होता है, साथ ही उसे मोक्ष मिलता है.

निर्जला एकादशी शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी यानी कि ज्‍येष्‍ठ शुक्‍ल एकादशी तिथि की शुरुआत 30 मई की दोपहर 1 बजकर 7 मिनट पर होगी और इसका समापन 31 मई की दोपहर को 1 बजकर 45 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार निर्जला एकादशी 31 मई, बुधवार को मानी जाएगी. इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा जो कि सुबह 05 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 06 बजे तक रहेगा. वहीं निर्जला एकादशी व्रत का पारण करने का समय 1 जून की सुबह 05 बजकर 24 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 10 मिनट तक रहेगा.

भीम ने क्यों रखा था व्रत

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत के बलशाली योद्धा भीम ने भी यह व्रत रखा था. दरअसल, 10 हजार हाथियों के समान ताकत रखने वाले भीम को बहुत भूख लगती थी. वह अपनी भूख को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकते थे. भीम जानते थे कि व्रत-उपवास रखने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. लेकिन भीम के लिए ऐसा कोई व्रत रखना संभव नहीं था.

तब श्रीकृष्ण के कहने पर भीम ने एकमात्र निर्जला एकादशी का व्रत रखा था. भूख बर्दाश्त ना होने पर शाम होते ही वो मूर्छित हो गए. चूंकि इस एकादशी पर भीम ने व्रत रखा था, इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा गया है. ऐसा कहते हैं कि इस दिन बिना जल के उपवास रखने से साल की सारी एकादशियों का पुण्य फल मिलता है.

निर्जला एकादशी का महत्व

निर्जला एकादशी का व्रत करने से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है. इसके अलावा, इस दिन उपवास करने से अच्छी सेहत और सुखद जीवन का वरदान प्राप्त होता है. इस दिन व्रत करने से पापों का नाश होता है और मन शुद्ध होता है. इस एकादशी को त्याग और तपस्या की सबसे बड़ी एकादशी माना जाता है.

व्रत रखने की विधि

निर्जला एकादशी के दिन सवेरे-सवेरे स्नानादि के बाद सूर्य देवता को जल अर्पित करें. इसके बाद पीले वस्त्र धारण करके भगवान विष्णु या भगवान कृष्ण की पूजा करें. इन्हें पीले फूल, पंचामृत और तुलसी दल अर्पित करें. इसके बाद भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें. व्रत का संकल्प लेने के बाद अगले दिन सूर्योदय होने तक जल की एक बूंद भी ग्रहण ना करें. इसमें अन्न और फलाहार का भी त्याग करना होगा. अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को स्नान करके फिर से श्रीहरी की पूजा करने के बाद अन्न-जल ग्रहण करें और व्रत का पारण करें.

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