PIL Man अश्विनी उपाध्याय ने पूरे देश में ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने के लिए PM मोदी को लिखा पत्र

पीआईएल मैन (PIL Man) के नाम से मशहूर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) ने पूरे देश में ‘समान नागरिक संहिता’ लागू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को पत्र लिखा है. अश्विनी उपाध्याय ने अपने पत्र में समान नागरिक संहिता के अनेकों लाभ बताए हैं.

समान नागरिक संहिता के एक नहीं अनेक लाभ

1. ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से विवाह की न्यूनतम उम्र सबके लिए एक समान होगी, चाहे वह लड़का हो या लड़की, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई और धर्म जाति क्षेत्र लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी. अभी हिंदू बेटी की विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष है लेकिन मुस्लिम बेटी की निकाह की न्यूनतम उम्र मात्र 9 वर्ष जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 20 वर्ष से पहले गर्भधारण करने से अनेक बीमारियां होती हैं। संविधान कहता है कि लिंग के आधार पर भेदभाव बंद करो और दुनिया के 125 देशों में विवाह और निकाह की न्यूनतम उम्र सबके लिए एक समान है लेकिन हमारे यहाँ आज भी भेदभाव जारी है.

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2. तीन तलाक भले ही खत्म हो गया है लेकिन अन्य प्रकार के मौखिक तलाक आज भी लागू हैं। ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से विवाह-विच्छेद का एक सामान्य नियम सबके लिए समान रूप से लागू होगा और विशेष परिस्थितियों में मौखिक तरीके से विवाह विच्छेद की अनुमति भी सभी नागरिकों को मिलेगी चाहे वह पुरुष हो या महिला, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई.

3. विवाह विच्छेद के बाद हिंदू बेटियों को तो गुजारा भत्ता मिलता है लेकिन तलाक के बाद मुस्लिम बेटियों को गुजारा भत्ता नहीं मिलता है. ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से विवाह विच्छेद के बाद सभी बहन बेटियों को गुजारा भत्ता मिलेगा, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई और धर्म जाति क्षेत्र लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी.

4. हिंदू बहन-बेटियों को बच्चा गोद लेने और बच्चे का भरण-पोषण करने का पूर्ण अधिकार है लेकिन मुस्लिम बेटियों को यह अधिकार नहीं है। ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से संरक्षकता और गोद लेने के संबंध में सभी नागरिकों पर एक समान नियम लागू होगा, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई और धर्म जाति क्षेत्र लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी.

5. वर्तमान समय में “एक पति-एक पत्नी” का नियम हिंदुओं पर तो लागू होता है लेकिन मुस्लिम पर नहीं। ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से ‘एक पति-एक पत्नी’ का नियम सब पर समान रूप से लागू होगा और बांझपन या नपुंसकता जैसे अपवाद का लाभ सबको मिलेगा चाहे वह पुरुष हो या महिला, हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई.

6. ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से दान और धर्मजत्व के संबंध में सभी नागरिकों पर एक समान नियम लागू होगा, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई और धर्म जाति क्षेत्र लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी.

7. ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से पैतृक संपत्ति में पुत्र-पुत्री तथा बेटा-बहू को समान अधिकार प्राप्त होगा चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई और संपत्ति को लेकर धर्म जाति क्षेत्र और लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी.

8. ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से विवाह-विच्छेद की स्थिति में विवाहोपरांत अर्जित संपत्ति में पति-पत्नी को समान अधिकार होगा, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई.

9. ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से वसीयत, विरासत और संपत्ति के बंटवारे का एक समान कानून सब पर लागू होगा, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई और धर्म जाति क्षेत्र लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी.

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10. ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र एवं एकीकृत कानून मिलेगा और सभी नागरिकों के लिए समान रूप से लागू होगा, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, पारसी हो या ईसाई.

11. ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से जाति धर्म क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग कानून होने से पैदा होने वाली अलगाववादी मानसिकता समाप्त होगी और एक अखण्ड राष्ट्र के निर्माण की दिशा में हम तेजी से आगे बढ़ सकेंगे.

12. अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून होने के कारण अनावश्यक मुकदमे में उलझना पड़ता है. ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक “भारतीय नागरिक संहिता” होने से न्यायालय का बहुमूल्य समय बचेगा.

13. भारतीय दंड संहिता के तर्ज पर देश के सभी नागरिकों के लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से देश और समाज को सैकड़ों जटिल, बेकार और पुराने कानूनों से मुक्ति मिलेगी.

14. अलग-अलग संप्रदाय के लिए लागू अलग-अलग ब्रिटिश कानूनों से नागरिकों के मन में हीन भावना व्याप्त है इसलिए सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से हीन भावना से मुक्ति मिलेगी.

15. ‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से रूढ़िवाद कट्टरवाद सम्प्रदायवाद क्षेत्रवाद भाषावाद समाप्त होगा, वैज्ञानिक सोच विकसित होगी तथा बेटियों के अधिकारों मे भेदभाव खत्म होगा. सच्चाई तो यह है कि इसका फायदा हिंदू बेटियों को ज्यादा नहीं मिलेगा क्योंकि हिंदू मैरिज एक्ट में महिला-पुरुष को लगभग समान अधिकार पहले से ही प्राप्त है. इसका सबसे ज्यादा फायदा मुस्लिम बेटियों को मिलेगा क्योंकि शरिया कानून में उन्हें पुरुषों के बराबर नहीं माना जाता है.

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आर्टिकल 37 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि नीति निर्देशक सिद्धांतों को लागू करना सरकार की फंडामेंटल ड्यूटी है. जिस प्रकार संविधान का पालन करना सभी नागरिकों की फंडामेंटल ड्यूटी है उसी प्रकार संविधान को शत प्रतिशत लागू करना सरकार की फंडामेंटल ड्यूटी है. किसी भी सेक्युलर देश में धार्मिक आधार पर अलग-अलग कानून नहीं होता है लेकिन हमारे यहाँ आज भी हिंदू मैरिज एक्ट, पारसी मैरिज एक्ट और ईसाई मैरिज एक्ट लागू है, जब तक भारतीय नागरिक संहिता लागू नहीं होगी तब तक भारत को सेक्युलर कहना सेक्युलर शब्द को गाली देना है. यदि गोवा के सभी नागरिकों के लिए एक ‘समान नागरिक संहिता’ लागू हो सकती है तो देश के सभी नागरिकों के लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ क्यों नहीं लागू हो सकती है?

‘भारतीय दंड संहिता’ की तर्ज पर सबके लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से आर्टिकल 25 के अंतर्गत प्राप्त मूलभूत धार्मिक अधिकार जैसे पूजा, नमाज या प्रार्थना करने, व्रत या रोजा रखने तथा मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा का प्रबंधन करने या धार्मिक स्कूल खोलने, धार्मिक शिक्षा का प्रचार प्रसार करने या विवाह-निकाह की कोई भी पद्धति अपनाने या मृत्यु पश्चात अंतिम संस्कार के लिए कोई भी तरीका अपनाने में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होगा. जिस दिन ‘भारतीय नागरिक संहिता’ का एक ड्राफ्ट बनाकर सार्वजनिक कर दिया जाएगा और आम जनता विशेषकर बहन बेटियों को इसके लाभ के बारे में पता चल जाएगा, उस दिन कोई भी इसका विरोध नहीं करेगा. सच तो यह है कि जो लोग समान नागरिक संहिता के बारे में कुछ नहीं जानते हैं वे ही इसका विरोध कर रहे हैं.

जाति धर्म भाषा क्षेत्र और लिंग आधारित अलग-अलग कानून 1947 के विभाजन की बुझ चुकी आग में सुलगते हुए धुएं की तरह हैं जो विस्फोटक होकर देश की एकता को कभी भी खण्डित कर सकते हैं इसलिए इन्हें समाप्त कर एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू करना न केवल धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए बल्कि देश की एकता-अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भी अति आवश्यक है. दुर्भाग्य से ‘भारतीय नागरिक संहिता’ को हमेशा तुष्टीकरण के चश्मे से देखा जाता रहा है.

जब तक भारतीय नागरिक संहिता का ड्राफ्ट प्रकाशित नहीं होगा तब तक केवल हवा में ही चर्चा होगी और लोग अपने अपने तरीके से व्याख्या करेंगे और भ्रम फैलाएंगे इसलिए आपसे विनम्र निवेदन है कि विकसित देशों में लागू ‘समान नागरिक संहिता’ और गोवा में लागू ‘गोवा नागरिक संहिता’ का अध्ययन करने और ‘भारतीय नागरिक संहिता’ का एक ड्राफ्ट बनाने के लिए तत्काल एक ज्यूडिशियल कमीशन या एक्सपर्ट कमेटी का गठन करें।

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