“कभी नहीं सोचा था कि जिन घटिया अंग्रेजी कानूनों को खत्म करने की मांग कर रहे थे, उन्हीं का सहारा लेकर फ्रेम करके हमें जेल में डाल दिया जाएगा”.. ये कहकर भारतीय जनता पार्टी के नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) भावुक हो गए. उन्होंने कहा कि हमें अपनी तकलीफ नहीं है, लग ये रहा कि अब कौन हिम्मत करेगा देश की बेहतरी के लिए कुछ मांग करने की, जब वह सुनेगा कि सुप्रीम कोर्ट में 110 जनहित याचिका दायर करने वाले अश्विनी उपाध्याय को 1861 के पुलिस एक्ट का उपयोग कर जेल में ठूंस दिया गया है, फिर कैसे कोई हिम्मत कर पाएगा अच्छी चीजों के आगे आने की. ये बातें अश्विनी उपाध्याय ने एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू के दौरान कहीं.
उपाध्याय ने कहा कि मैने पूरी जिंदगी लगा दी कि देश में अच्छी चीजें हो जाएं, हम वहां इसलिए गए ही थे, कि कठोर कानून बने कट्टरवाद, अलगाववाद और आतंकवाद के खिलाफ, और हमीं जेल के अंदर जाएंगे ऐसा कभी नहीं सोचा था. हमें बस इसी बात का डर है कि जो लोग देशहित के लिए निकलते हैं वे ये सोचकर घर में ही न बैठ जाएं. उन्होंंने बताया कि राजनीति के अपराधीकरण को रोकने और इलेक्शन रिफॉर्म में मेरी 25 से अधिक पीआईएल हैं. भारत में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए मेरी करीब 10 पीआईएल हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चल रही हैं. लड़के-लड़की की शादी की उम्र एक हो और उनका गुजारा भत्ता भी एक हो ऐसी ही कई देशहित व जनहित में 110 याचिकाएं दाखिल कीं हैं.
उस अपराध की मिली सजा, जो कभी किया ही नहीं: उपाध्याय
उपाध्याय ने कहा कि मुझे उस अपराध के लिए सजा मिली जो मैने कभी किया ही नहीं. जिन्हें मैं जानता ही नहीं, न उनसे कभी मिला उसके लिए मुझे तिहाड़ जाना पड़ा. उन्होंने कहा कि आज की तारीख में आप मुझे अपराधी भी कह सकते हैं क्योंकि मेरे खिलाफ केस भी शुरू हो गया है. उन्होंने कहा कि आज जिस हेट स्पीच के आरोप में मुझे गिरफ्तार किया गया उसी हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाला सबसे पहला व्यक्ति मैं ही हूं. हेट स्पीच पर लॉ कमिशन की एक रिकमेंडेशन है जो कभी लागू नहीं हुई. उसे ही लागू कराने के लिए मैने पीआईएल डाली थी और मुझ ही पर हेट स्पीच का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया गया.
222 अंग्रेजी कानूनों को समाप्त करने के लिए हुआ था प्रदर्शन
बता दें कि अंग्रेजों के जमाने के 222 कानूनों को ख़त्म करने की माँग करते हुए उपाध्याय ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया था. विरोध प्रदर्शन अंग्रेजों के जमाने के उन कानूनों को लेकर था, जिनका इस्तेमाल कर के ब्रिटिश भारतीयों पर अत्याचार करते थे. चूँकि ये कानून अभी भी मौजूद हैं, इसीलिए इस विरोध प्रदर्शन में ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ की माँग की गई, ताकि देश में सभी नागरिकों के लिए समान कानून हो. उपाध्याय द्वारा आयोजित इसी विरोध प्रदर्शन के बात कुछ अज्ञात लोगों द्वारा मुस्लिम विरोधी नारेबाजी भी हो गई. इस नारेबाजी का वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. उपाध्याय के मुताबिक कार्यक्रम 12 बजे तक ही था, नारेबाजी 3 बजे तरफ हुई, उस दौरान उनकी लोकेशन गाजियाबाद थी. पुलिस को भी इस मामले में उपाध्याय के खिलाफ कोई कोई सबूत नहीं मिला.
उपाध्याय ने दिल्ली पुलिस को पत्र लिख दी थी जानकारी
वीडियो वायरल होने के बाद दिल्ली पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए मंगलवार (10 अगस्त, 2021) को अश्विनी उपाध्याय एवं उनके अन्य सहयोगियों विनोद शर्मा, दीपक सिंह, दीपक, विनीत क्रांति और प्रीत सिंह को गिरफ्तार कर लिया. हालाँकि उपाध्याय द्वारा इस नारेबाजी के संबंध में दिल्ली पुलिस को भेजे गए पत्र में उन्होंने लिखा कि सोशल मीडिया पर उन्हें बदनाम करने के लिए उनके नाम से वीडियो वायरल किया जा रहा है जबकि नारेबाजी करने वालों को वह जानते भी नहीं हैं. उपाध्याय ने ये भी कहा कि जो लोग इस वीडियो को उनके नाम पर शेयर कर के फैला रहे हैं, उनके खिलाफ भी मानहानि का मुकदमा दर्ज किया जाना चाहिए. उनका कहना था कि कि जब तक 1860 की IPC, 1861 का पुलिस एक्ट और 1872 का एविडेंस एक्ट लागू रहेगा, मजहबी उन्माद काबू में नहीं आएगा.
पुलिस को नहीं मिले सबूत, कोर्ट ने माना कि हुई है साजिश
बुधवार को मामले की सुनवाई करते मेट्रोपॉलिटन कोर्ट ने यह कहते हुए उपाध्याय को जमानत दी है कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह पता चले कि भड़काऊ नारे उपाध्याय के कहने पर या उनकी उपस्थिति में लगे हों. मेट्रोपॉलिटन कोर्ट के न्यायाधीश उद्भव कुमार जैन ने आदेश पारित करते हुए कहा कि यहाँ प्रस्तुत किए गए रिकॉर्ड्स में ऐसा कुछ भी नहीं है जो यह बताता हो कि भड़काऊ नारे उपाध्याय के कहने पर लगाए गए हों या फिर उनकी उपस्थिति उस दौरान रही हो. कोर्ट ने कहा कि जिस वीडियो के आधार पर यह कार्रवाई की गई है उसमें उपाध्याय के विरोध में कुछ भी नहीं है. कोर्ट ने जमानत का आदेश पारित करते हुए कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जहाँ आवेदक (उपाध्याय) के फरार हो जाने की गुंजाइश हो. कोर्ट ने यह भी माना कि निश्चित तौर पर बंद दरवाजों के पीछे साजिश हुई है और कहा कि चूँकि जाँच अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है ऐसे में केवल संभावनाओं के आधार पर किसी की स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं किया जा सकता है.
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