राष्ट्रपति भवन परिसर में गुरुवार को प्रताप चंद्र सारंगी ने 17वीं लोकसभा के तहत बनी मोदी सरकार में बतौर मंत्री शपथ ली. बीजेपी के टिकट पर बालासोर लोकसभा सीट से जीत दर्ज कर संसद पहुंचे 64 वर्षीय प्रताप चंद्र सारंगी लोगों के बीच ‘ओडिशा का मोदी’ के नाम से भी जाने जाते हैं. उनकी जिंदगी और उनकी जीवनशैली की तुलना लोग पीएम मोदी से करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ओडिशा पहुंचते हैं तो प्रताप से जरूर मुलाकात करते हैं.
अपनी सादगी जीवनशैली के लिए मशहूर प्रताप ने बीजेडी के सांसद और अरबपति उम्मीदवार रबींद्र कुमार जेना को हराया है. सारंगी ने जिस अंदाज में चुनाव लड़ा, वह भी बिल्कुल अलग था. जहां, दूसरे उम्मीदवार बड़ी-बड़ी गाड़ियों में बैठकर चुनावी कैंपेन कर रहे थे, वहीं सारंगी ऑटोरिक्शा रैली करते थे. वह साइकिल से कैंपेन करने निकल पड़ते थे. वह प्रोफेशनल मैनेजर्स से ज्यादा अपने पार्टी कार्यकर्ताओं पर निर्भर थे.
सारंगी का जन्म नीलिगिरी से सटे गोपीनाथपुर गांव के एक गरीब परिवार में 4 जनवरी 1955 में हुआ. मोदी की तरह सारंगी भी युवावस्था में संन्यासी बनने की राह पर निकल पड़े थे. वह रामकृष्ण मठ भी गए लेकिन साधुओं ने उन्हें मां की सेवा करने की सलाह दी जिसके बाद वह घर लौट गए.
सारंगी का घर भी कच्चा है और उनकी सादगी हर किसी को अपना कायल बना लेती है. वे अपनी जीत का श्रेय भी मोदी को देते हैं. वह कहते हैं, यहां के लोग नरेंद्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहते थे. लोगों ने उनके नेतृत्व और बीजेपी की विकास की कोशिशों पर विश्वास किया. बालासोर में उनके आने से मेरे जीतने की संभावनाएं और बढ़ गईं. लोगों ने सांसद के तौर पर सेवा करने की क्षमता में भी भरोसा जताया.
वह कभी जानवरों की सेवा करते हुए नजर आते हैं तो कभी किसी गुफा में साधना में लीन. उनकी इस सादगी के लोग मुरीद हो गए हैं. चुनाव जीतने के बाद भी उनकी जिंदगी में बहुत बदलाव नहीं आया है. जब उन्होंने बीजेपी के टिकट पर 2004 और 2009 में विधानसभा चुनाव जीता था, तब भी वह उसी सादगी के साथ जीते रहे. बताया जा रहा है कि उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में बिल्कुल खर्च नहीं किया.
सारंगी कई सालों से समाजसेवा में लगे हैं. उन्होंने शादी भी नहीं की है. वो रामकृष्ण मठ में साधु बनना चाहते थे. इसके लिए वो कई बार मठ भी गए थे. लेकिन जब मठ वालों को पता लगा कि उनके पिता नहीं है और उनकी मां अकेली हैं, तो मठ वालों ने उन्हें मां की सेवा करने को कहा. पिछले साल उनकी मां का देहांत हुआ है.
सिर्फ पैसों से चुनाव लड़ने के मिथक को गरीबी और ईमानदारी से ध्वस्त करने वाले प्रताप सारंगी ने उस दौर में जब पॉलिटिक्स को पैसे वाले अपने पॉकेट मे लेकर चलते हैं. करोड़ों खर्च कर अरबों कमाने का जरिया बन चुकी राजनीति में प्रताप सारंगी कई बरसों से सादगी के हस्ताक्षर बने हुए हैं. भगवा झंडा थामकर प्रताप सांरगी दो बार ओडिशा विधानसभा में बैठ चुके हैं. मगर न तो इनके पास अपना बड़ा सा मकान है. न गाड़ी है. न पुलिस की फोर्स है. टूटे हुए मकानों में अकेले रहने वाले प्रताप कभी साधु बनने चले थे, मगर सियासत की सादगी के साधक बनकर रह गए.
एक टीवी इंटरव्यू के दौरान सारंगी कहते हैं, बचपन से ही मेरी जीवनशैली ऐसी रही है. मेरे सांसद बनने के बाद भी यह बदलने वाला नहीं है. मैं लोगों और देश के लिए काम कर रहा हूं और मैं जीवन भर इसे अमल करता रहूंगा.
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