कोरोना वायरस की दूसरी लहर में हुई मौत को लेकर सोशल मीडिया पर दुष्प्रचार किया जा रहा है और इसमें तीर्थनगरी प्रयागराज (Prayagraj) को बेवजह घसीटा जा रहा है। प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर घाट पर 2018 में दफनाए गए शवों की अधिकांश तस्वीरों को सोशल मीडिया पर वायरल कर उसे कोरोना से हुई मौत से जोड़ा जा रहा है, लेकिन सच्चाई तो कुछ और ही है।
2018 और अब वायरल तस्वीरें एक जैसी
प्रयागराज में पीढ़ियों से कई हिंदू परिवारों के शवों को गंगा नदी के किनारे रेती में दफनाने की परंपरा है। दफनाए गए शवों की ताजा तस्वीरों को कोरोना से हुई मौतों से जोड़कर सोशल मीडिया पर जमकर हो-हल्ला मचाया जा रहा है। दरअसल, 18 मार्च, 2018 की श्रृंगवेरपुर घाट पर दफनाए गए शवों की ऐसी ही एक तस्वीर सामने आई है, जो अब और तब के हालत में एक जैसी ही दिखती है। भारत और उत्तर प्रदेश क्या विश्व के किसी भी देश में 2018 में कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं था।
इसके बाद भी तीन वर्ष पहले की ऐसी ही तस्वीर इंटरनेट मीडिया पर वायरल है। प्रयागराज में कई हिंदू परिवारों में गंगा किनारे शव दफन करने की पुरानी परंपरा है। यहां के फाफामऊ के साथ ही श्रृंगवेरपुर में ऐसे हजारों शव दफन हुए होंगे। यहां पर सफेद दाग, कुष्ठ रोग, सर्पदंश सहित अकाल मौतों से जुड़े शव लाए जाते हैं। आजकल यहां पर दफन कई वर्ष पुराने शव को दिखाकर उसको कोरोना वायरस संक्रमण से हुई मौत से जोड़ा जा रहा है। हद है कि इंटरनेट मीडिया पर ऐसी ही शवों की फोटो को वायरस कर सनसनी फैलाई गई है।
कई हिंदू परिवारों में पुरखों से चली आ रही दफनाने की परंपरा
यह तस्वीर 18 मार्च 2018 की है, जब कुंभ 2019 के क्रम में तीर्थराज प्रयाग के श्रृंगवेरपुर का कायाकल्प हो रहा था। उस समय न कोरोना जैसी आपदा थी और न शवों को दफ्न करने की कोई मजबूरी। बस थी तो एक परंपरा जो यहां कई हिंदू परिवारों में पुरखों से चली आ रही है। एक ऐसी परंपरा जो बहुत पुरानी है, लेकिन गंगा नदी की निर्मलता के लिहाज से उचित नहीं है।
Also Read: UP में थमी कोरोना की रफ़्तार, 1 जून से योगी सरकार शुरू कर रही वैक्सीनेशन का महाअभियान
प्रयागराज में श्रृंगवेरपुर और फाफामऊ घाट पर अरसे से शव दफनाने की परंपरा रही है। अब के हालात को समझने के लिए श्रृंगवेरपुर सहित गंगा किनारे के करीब एक दर्जन गांवों के लोगों से जानने की कोशिश की गई। इस दौरान संस्कार के लिए शव लेकर आए लोगों, गांव के बुजुर्गो से लेकर घाट के पंडा समाज तक से भी बात की। यहां पर 85 वर्ष के पंडा राममूरत मिश्रा कहते हैं कि मैं तो श्रृंगवेरपुर में अपने बचपन से ही शवों को जलाने के साथ ही दफनाने का सिलसिला देख रहा हूं।
कुष्ठ रोगियों और अकाल मौत से जुड़े लोगों को दफनाया जाता है
उन्होंने कहा कि सफेद दाग और सांप के काटने के बाद शवों को दफनाया जाता रहा है। छह-सात जिलों के संपन्न से लेकर गरीब परिवार तक के लोग भी शवों को लेकर आते हैं। उनके यहां शवों को दफनाने की परंपरा रही है। ऐसा ही कुछ कहना है कि ननकऊ पांडेय का। वे बताते हैं कि पुरखों से चली आ रही परंपरा के तहत कुष्ठ रोगियों व अकाल मौतों से जुड़े शव को जलाया नहीं बल्कि दफनाया जा रहा है।
Also Read: कड़कती धूप हो या बारिश धुआंधार, जारी है CM योगी का ‘ऑपरेशन ग्राउंड जीरो’ लगातार
श्रृंगवेरपुर से महज तीन किमी दूरी पर है गांव मेंडारा। यहां दस अप्रैल से लेकर दस मई तक के बीच करीब 50 लोगों की मौत हुई। नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान महेश्वर कुमार सोनू का कहना है कि इनमें से करीब 35 शव गंगा की रेती पर परंपरा के तहत दफनाए गए। मरने वालों में कोई कैंसर से पीडि़त था तो किसी की अस्थमा और हार्ट अटैक से मौत हुई। इनमें अधिकतर लोग 60 वर्ष से अधिक की उम्र के थे। हां, यह भी सच है कि किसी की कोरोना जांच नहीं हुई थी।
शव दफनाते हैं शैव सम्प्रदाय के अनुयायी
शासन की रोक के बाद भी शैव सम्प्रदाय के अनुयायी यहां शव दफनाते आते हैं। घाट पर मौजूद पंडित कहते हैं कि शैव संप्रदाय के लोग गंगा किनारे शव दफनाते रहे हैं। यह बहुत पुरानी परंपरा है। इसे रोका नहीं जा सकता। इससे लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल इसी वर्ष पांच मार्च को श्रृंगवेरपुर आई थीं।
उन्होंने यहां पूजा-अर्चना भी की थी। उनके दौरे से पहले ही जिला प्रशासन ने एसडीएम व क्षेत्रीय पुलिस अधिकारी को भेजकर घाट पर शवों को दफनाने की सीमारेखा तय की थी। पत्थर के पिलर भी गाड़े गए थे। वो पिलर आज भी मौजूद हैं, पर प्रशासन की अनदेखी और कोरोना के कारण बढ़ती मौतों के बाद यह सीमा रेखा कब की पार हो चुकी है।
धर्मगुरुओं ने जताई कड़ी आपत्ति
सोशल मीडिया पर इन तस्वीरों को कोरोना संक्रमित बताकर सरकार की आलोचना करने पर धर्मगुरुओं ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि अज्ञानी लोग कोरोना से जोड़कर मृतकों के अंतिम संस्कार का अपमान कर रहे हैं। खिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि हिंदुओं में पार्थिव शरीर को दफनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। पहले गंगा का जल स्तर बारिश के मौसम में बढ़ जाता था। इससे घाट के किनारे के शव उसमें समाहित हो जाते थे। अब जल स्तर ज्यादा नहीं बढ़ता। इसी कारण मैं व्यक्तिगत रूप से ग्राम प्रधानों व अधिकारियों से संपर्क करके पार्थिव शरीर को दफनाने के जाय उसका दाह संस्कार कराने की अपील कर रहा हूं। जो गरीब होंगे उनके अंतिम संस्कार में अखाड़ा परिषद सहयोग करेगा।
Also Read: योगी के ‘ट्रिपल टी’ का दम, UP में कोरोना बेदम, थमी संक्रमण रफ्तार, रिकवरी रेट 95.1% के पार
महंत नरेंद्र गिरि कहते हैं कि केंद्र में नरेंद्र मोदी व यूपी में योगी आदित्यनाथ की हिंदुत्ववादी सरकार काबिज है। इससे सनातन धर्म विरोधी ताकतें बौखला गई हैं। वे सरकार को बदनाम करने के लिए तरह-तरह की साजिश रचती रहती हैं। उसी के तहत अब पार्थिव शरीर को निशाना बनाने का घिनौना काम किया जा रहा है। टीकरमाफी आश्रम पीठाधीश्वर स्वामी हरिचैतन्य ब्रह्मचारी कहते हैं कि सनातन धर्मशास्त्र में दाह संस्कार (जलाने), जल समाधि (नदी में छोडऩे) व भू-समाधि (दफनाने) देने का विधान है। सिर्फ कोरोना काल में दफनाया जा रहा है, यह कहना अनुचित है।
परमहंस प्रभाकर जी महाराज बोले- मैंने खुद दिलाई है भू-समाधि
गायत्री गंगा चैरिटेबुल संस्थान के अध्यक्ष परमहंस प्रभाकर जी महाराज बताते हैं कि मैंने स्वयं कई गृहस्थ शिष्यों को भू-समाधि (दफनवाया) दिलाई है। घाट के किनारे प्रतिदिन शव दफनाए जाते हैं। मौजूदा समय फोटो व वीडियो में जो शव दिखाए जा रहे हैं उसमें 60-70 प्रतिशत पुराने हैं। साजिश के तहत उसे कोरोना से जोड़ा जा रहा है।
( देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, आप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं. )