150 साल की उम्र में मगरमच्छ ‘गंगाराम’ ने ली अंतिम सांस, पूरे गांव में नहीं जला चूल्हा

छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में ग्रामीणों और वन्य जीव के बीच दोस्ती का उदाहरण बन चुका है. इस गांव को लोग गांव बेमेतरा से कम मगरमच्छ ‘गंगाराम’ का गांव के नाम से ज्यादा जानते थे. लेकिन इस गांव का सबसे बड़ा मुखिया मगरमच्छ ‘गंगाराम’ अब इस दुनिया को अलविदा कह चुका है. 150 साल की उम्र में मगरमच्छ ‘गंगाराम’ ने अंतिम सांस ली. बेमेतरा जिला मुख्यालय से लगभग सात किलोमीटर दूर बावा मोहतरा गांव में आज हर कोई मगरमच्छ ‘गंगाराम’ की मौत से दुखी हैं. इस गांव में आज किसी के घर चूल्हा नहीं जला है. गांव के लोगों का कहना है कि, गंगाराम का ग्रामीणों से असीम प्रेम था, उसने कभी भी तालाब में तैर रहे बच्चों को नुकसान नहीं पहुंचाया.

 

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गांव के सरपंच मोहन साहू का कहना है कि, ‘गांव के तालाब में पिछले लगभग सौ वर्ष से मगरमच्छ निवास कर रहा था. ग्रामीणों ने जब मगरमच्छ को तालाब में अचेत देखा तब उसे बहार निकला, लेकिन गंगाराम की तबतक मौत हो चुकी थी. यह सुनते ही पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गयी और दूर-दूर से लोग मगरमच्छ गंगाराम के अंतिम दर्शन के लिए उमड़ने लगे. बाद में ग्रामीणों ने इसकी सूचना वन विभाग को दी. मगरमच्छ गंगाराम की शव यात्रा में पूरा गांव शामिल हुआ, साथ उसे पूरे सम्मान के साथ तालाब के किनारे दफनाया गया.

 

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खाता था दाल-चावल

 

मगरमछ मांसाहारी जीव होने के बावजूद वो ग्रमीणों द्वारा दिया गया दाल-चावल खाता था. गंगाराम ने कभी भी किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाया वह बस तालाब की मछलियों को अपना आहार बनाता. गांव के उप सरपंच भागीरथी यदु ने बताया कि तालाब के नजदीक एक महंत रहते थे. वे इस मगरमच्छ को गंगाराम कहकर पुकारते थे. उनके पुकारते ही मगरमच्छ तालाब के बाहर आ जाता था. बेमेतरा में वन विभाग के उप मंडल अधिकारी आर के सिन्हा ने बताया कि विभाग को मगरमच्छ की मौत की जानकारी मिली तब वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी घटनास्थल पर पहुंच गए विभाग ने शव का पोस्टमार्टम कराया था. शव को ग्रामीणों को सौंपा गया था क्योंकि वह उसका अंतिम संस्कार करना चाहते थे.

 

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सिन्हा ने बताया कि मगरमच्छ की आयु लगभग 130 वर्ष की थी तथा उसकी मौत स्वाभाविक थी. गंगाराम पूर्ण विकसित नर मगरमच्छ था. उसका वजन 250 किलोग्राम था और उसकी लंबाई 3.40 मीटर थी. अधिकारी ने कहा कि मगरमच्छ मांसाहारी जीव होता है. लेकिन इसके बावजूद तालाब में स्नान करने के दौरान उसने किसी को भी नुकसान नहीं पहुंचाया. यही कारण है कि उसकी मौत ने लोगों को दुखी किया है. ग्रामीणों और मगरमच्छ के बीच यह दोस्ती सह अस्तित्व का एक बड़ा उदाहरण है.

 

गंगाराम का बनेगा स्मारक

 

ग्रामीणों का कहना है कि गंगाराम से उनका रिश्ता कई पीढ़ियों से चला आ रहा है. गंगाराम से उनके लिए महज एक मगरमच्छ नहीं था. गंगाराम के शव को गांव में घुमाने से पहले लोगों ने उसकी पूजा भी की. सरपंच ने बताया कि ग्रामीण गंगाराम का स्मारक बनाने की तैयारी कर रहे हैं और जल्द ही एक मंदिर बनाया जाएगा जहां लोग पूजा कर सकें.

 

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