सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी को ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ कहना गलत हो सकता है, लेकिन यह धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने जैसा दंडनीय अपराध नहीं है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने झारखंड के एक सरकारी कर्मचारी को ‘पाकिस्तानी’ कहने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ दर्ज मामला रद्द करते हुए यह फैसला सुनाया।
झारखंड का मामला, हाईकोर्ट का आदेश खारिज
झारखंड के एक उर्दू अनुवादक और कार्यवाहक क्लर्क ने शिकायत दर्ज कराई थी कि सूचना के अधिकार (RTI) से जुड़ी जानकारी मांगने पर आरोपी ने उसके धर्म को लेकर अपमानजनक टिप्पणी की। इसके बाद आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 298 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 504 (शांति भंग करने के इरादे से अपमान करना) और 353 (लोक सेवक को कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या बल प्रयोग) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कही ये बात
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ जैसे शब्द भले ही अनुचित हों, लेकिन इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचती। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि आरोपी ने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे शांति भंग हो सकती थी। साथ ही, उस पर आईपीसी की धारा 353 के तहत सरकारी कर्मचारी पर हमला करने या बल प्रयोग करने का मामला भी नहीं बनता।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और भाषाई अपमान से जुड़े कानूनी पहलुओं पर महत्वपूर्ण नज़ीर बन सकता है। यह स्पष्ट करता है कि हर आपत्तिजनक टिप्पणी को अपराध की श्रेणी में नहीं डाला जा सकता।
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