‘ये हमारी अंतरआत्मा को झकझोरता है’, SC ने प्रयागराज में बुलडोजर एक्शन पर कहा- जिनके घर गिराए, उन्हें 10-10 लाख का हर्जाना दो

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी (PDA) को मकान गिराने के मामले में कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई (Bulldozer Action) को अमानवीय और अवैध करार देते हुए कहा कि 2021 में हुई इस कार्रवाई में प्रभावितों के अधिकारों और भावनाओं का सम्मान नहीं किया गया।

“हमारी अंतरात्मा झकझोर दी गई” – जस्टिस अभय एस ओका

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि देश में लोगों के घरों को इस तरह से नहीं गिराया जा सकता। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “राइट टू शेल्टर” (आवास का अधिकार) जैसी चीज भी होती है और किसी भी कार्रवाई में उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।

“बुलडोजर के आगे भागती बच्ची ने झकझोर दिया” – जस्टिस उज्ज्वल भुइयां

सुनवाई के दौरान जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने अंबेडकर नगर की हालिया घटना का जिक्र किया, जिसमें अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान एक 8 साल की बच्ची अपनी किताबें लेकर झोपड़ी से भागती दिखी। उन्होंने कहा कि “इस तस्वीर ने सबको झकझोर दिया।”

क्या था पूरा मामला?

प्रयागराज प्रशासन ने 2021 में गैंगस्टर अतीक की संपत्ति समझकर एक वकील, प्रोफेसर और तीन अन्य लोगों के मकान ढहा दिए थे। इसके खिलाफ वकील जुल्फिकार हैदर, प्रोफेसर अली अहमद और अन्य पीड़ितों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इससे पहले, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी याचिकाएं खारिज कर दी थीं।सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को निर्देश दिया कि जिनके मकान तोड़े गए हैं, उन्हें छह हफ्तों के भीतर 10-10 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए।

नोटिस देने में बरती गई लापरवाही

कोर्ट ने प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए पूछा कि “नोटिस इस तरह क्यों चिपकाया गया? कूरियर से क्यों नहीं भेजा गया?” कोर्ट ने कहा कि यह कार्रवाई अत्याचार की श्रेणी में आती है, और बिना उचित प्रक्रिया अपनाए घर तोड़ना कानून का उल्लंघन है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिका खारिज की थी

इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने याचिका को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के इस दावे को सही माना था कि भूमि नजूल लैंड थी और इसे सार्वजनिक कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाना था।

6 मार्च की रात मिला नोटिस, 7 मार्च को ढहा दिए मकान

पीड़ितों ने कोर्ट को बताया कि 6 मार्च 2021 की रात को उन्हें नोटिस दिया गया, लेकिन अगले ही दिन उनके मकान ढहा दिए गए। नोटिस पर 1 मार्च की तारीख अंकित थी, जिससे साफ होता है कि उन्हें पर्याप्त समय नहीं दिया गया था।

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सुप्रीम कोर्ट का कड़ा संदेश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की मनमानी कार्रवाई किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने प्रशासन को चेतावनी देते हुए कहा कि आगे से किसी भी रिहायशी संपत्ति पर बुलडोजर चलाने से पहले कानूनी प्रक्रियाओं का पूरी तरह पालन किया जाए।

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