आखिर गीता को क्यों कहा जाता है श्रीमद्भगवद्‌गीता…?

अध्यात्म: हिन्दू धर्म की सबसे पवित्र ग्रंथ श्रीमद्भगवद्‌गीता को ज्ञान के भंडार के साथ एक पवित्रतम पुस्तक माना जाता है. यह पुस्तक महाभारत के प्राचीन समय से लेकर आज भी विधमान है जिसको पढ़ने मात्र से लोगों को उनकी समस्या का समाधान मिल जाता है. महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र युद्ध में श्री कृष्ण ने गीता का सन्देश अर्जुन को सुनाया था. यह महाभारत के भीष्मपर्व के अन्तर्गत दिया गया एक उपनिषद् है. इसमें एकेश्वरवाद, कर्म योग, ज्ञानयोग, भक्ति योग की बहुत सुन्दर ढंग से चर्चा हुई है. इसमें देह से अतीत आत्मा का निरूपण किया गया है. क्या आपको पता है गीता को भगवद्गीता क्यों कहते हैं?


महाभारत का युद्ध जो कौरवों और पांडवों के बीच हुआ था वो शुरू से पहले योगिराज भगवान श्रीकृष्ण ने अठारह अक्षौहिणी सेना के बीच मोह में फंसे और कर्म से विमुख अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. श्रीकृष्ण ने अर्जुन को छंद रूप में यानी गाकर उपदेश दिया, इसलिए इसे गीता कहते हैं. चूंकि उपदेश देने वाले स्वयं भगवान थे, अत: इस ग्रंथ का नाम भगवद्गीता पड़ा.


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भगवद्गीता में कई विद्याओं का उल्लेख आया है, जिनमें चार प्रमुख हैं – अभय विद्या, साम्य विद्या, ईश्वर विद्या और ब्रह्मा विद्या. माना गया है कि अभय विद्या मृत्यु के भय को दूर करती है. साम्य विद्या राग-द्वेष से छुटकारा दिलाकर जीव में समत्व भाव पैदा करती है. ईश्वर विद्या के प्रभाव से साधक अहं और गर्व के विकार से बचता है. ब्रह्मा विद्या से अंतरात्मा में ब्रह्मा भाव को जागता है. गीता माहात्म्य पर श्रीकृष्ण ने पद्म पुराण में कहा है कि भवबंधन से मुक्ति के लिए गीता अकेले ही पर्याप्त ग्रंथ है. गीता का उद्देश्य ईश्वर का ज्ञान होना माना गया है.


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