मिलिए ‘द मैन ऑफ़ विजन, मिशन और एक्शन’ सुनील बंसल से, जिनकी बदौलत बीजेपी ने यूपी में लगाया जीता का चौका

योगी सरकार (Yogi Government) और भाजपा संगठन के सामंजस्य ने किस तरह यूपी के विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election 2022) में परचम लहराया. कैसे योगी सरकार की योजनाओं को अधिकारियों ने जमीन तक पहुंचाया और संगठन ने इसका प्रचार-प्रसार कर भाजपा के लिए जनसमर्थन जुटाया? अगर सीएम योगी विधानसभा चुनाव में भाजपा का चेहरा थे तो सुनील बंसल (Sunil Bansal) की निगरानी में संगठन अपने मिशन में जुटा था. विपक्ष के नेताओं ने भी बीजेपी के संगठन कौशल की तारीफ में उलझने की बात स्वीकार की है. यही नहीं यह बीजेपी संगठन की ही ताकत है कि 2014,2017, 2019 और अब 2022 में भी यूपी में बीजेपी ने जीत का चौका लगाया है.

उत्तर प्रदेश बीजेपी में 2014 के बाद संगठन महामंत्री सुनील बंसल का लोहा माना जाने लगा. राजस्थान के कोटपुतली में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता और फिर पदाधिकारी बने सुनील बंसल ने यूं तो संगठन में अलग-अलग मौक़ों पर काम किया पर यूपी प्रभारी के रूप में अमित शाह ने देश के सियासी लिहाज से सबसे अहम प्रदेश में जो जिम्मेदारी सुनील बंसल को सौंपी वो एक मिसाल बन कर रह गयी. यूपी में बीजेपी की पूरी टीम को साधने वाले सुनील बंसल के लिए परीक्षा की घड़ी तो कई बार आई पर हर बार उस कसौटी पर नई टीम के साथ वो खरे उतरे. 2014, 2017, 2019 और अब 2022 यूपी में चौका लगाने में इस शख्स की अहम भूमिका रही. खुद सारी प्लानिंग और उसके एक्जिक्यूशन के लिए सही लोगों को चुनना और फिर उसकी मॉनिटरिंग करना सुनील बंसल की जिम्मेदारी है. यूपी प्रभारी अमित शाह ने सुनील बंसल को यूपी की जो जिम्मेदारी दी थी, उससे समय के साथ यूपी को लेकर उनकी समझ में इजाफा होता गया.

सुनील बंसल की ताकत ये है कि वो बेहतरीन टास्कमास्टर हैं. यानी कार्यकर्ताओं का सही कार्य के लिए चयन और उनसे वो काम करवाने की क्षमता यूपी जैसे बड़े प्रदेश में जीत का लक्ष्य दोहराने में काम आता रहा. एक और बात जो सुनील बंसल के लिए कही जाती है. वो ये कि हर बार उनकी कोर टीम (core team) के कुछ सदस्य नए होते हैं लेकिन सबसे रिजल्ट ऑरिएंटेड काम करवाने में उनको महारत हासिल है. इस बार एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सुनिल बंसल ने और निभायी. इस बार उन्होंने मीडिया टीम की सीधी मॉनिटरिंग भी की.सुनील बंसल के साथ टीम में काम कर जीत की स्क्रिप्ट लिखने वाले चेहरों में भी कई नाम प्रमुख रूप से शामिल हैं जिनके पास अलग-अलग जिम्मेदारी थी.

जानें कौन हैं सुनील बसंल

20 सितंबर सन 1969 को राजस्थान में जन्में सुनील बंसल बेहद सामान्य पृष्ठभूमि से आते हैं. बंसल का संघ और भाजपा से बचपन से ही जुड़ाव रहा है. बंसल का राजनीतिक सफ़र आसान नहीं रहा. अपने छात्र जीवन में इन्होने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़कर राजनीति का ककहरा सीखा.

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बात सन 1989 की है राजस्थान विश्वविद्यालय में छात्र चुनाव चल रहा था इस चुनाव में एबीवीपी ने कई धुरंधरों को पीछे करके उभरते हुए युवा सुनील बंसल को उतारा. बेहद कड़े मुकाबले में बंसल ने एबीवीपी को जीत दिलाई और राष्ट्रीय महासचिव चुने गए. यहीं से शुरू होता है सुनील बंसल का राजनीतिक सफ़र इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.

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करीबियों की नजर में सुनील बंसल 

सुनील बंसल को करीब से जाननें वाले बताते हैं कि बेहद तो बसंल बेहद शांत, खुशमिजाज और मिलनसार व्यक्ति हैं. बंसल अपनी सरलता और सहजता के लिए जानें जाते हैं. इनके साथ काम कर चुके लोग बतातें हैं कि बंसल कार्यकर्ताओं से बेहद स्नेह करते हैं वहीं काम में ढिलाई या गलती पर फटकार लगाने में भी पीछे नहीं हटते. बंसल के बारे में लोग ये भी कहते हैं कि इन्हें कार्यकर्ताओं से काम लेने की कला बखूबी आती है तथा नए कार्यकर्ताओं को जोड़ने में इन्हें महारथ हासिल है. इन्हीं चारित्रिक गुणों के कारण ये ‘सिम्पली ब्रिलियंट’ भी कहे जाते हैं.

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2014 लोकसभा और 2017 यूपी चुनाव में योगदान

सुनील बंसल को लोकसभा चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश में अमित शाह के सहयोगी के रूप में लाया गया था. तभी ऐसे संकेत मिलने लगे थे कि बंसल के जरिये संघ यूपी में मिशन मोदी को आगे बढ़ाएगा. उन्होंने यूपी के पंचायत चुनाव में जमीनी स्तर पर काम किया. यूपी चुनाव में बूथ मैनेजमेंट से लेकर अलग-अलग कैंपेन के जरिए पांच करोड़ से ज्यादा लोगों को जोड़ने की रणनीति पर काम किया. उन्होंने एक तरफ प्रदेश की ‘विभाजित’ भाजपा को जोड़ने की मुश्किल मुहिम शुरू की और दूसरी तरफ ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा के बूथ प्रभारियों का चयन भी करते रहे. अमित शाह के समर्थन से बंसल ने बूथ स्तर से लेकर प्रदेश संगठन में ओबीसी, एमबीसी और दलित समुदायों में से कम से कम 1,000 नए कार्यकर्ताओं को नियुक्त किया. चुनाव के दौरान हर बूथ पर औसतन 10 कार्यकर्ता रहे. जातीय समीकरणों के आधार पर बंसल ने प्रत्याशियों के बारे में सर्वे कर आलाकमान को रिपोर्ट सौंपी, उसके बाद ही उनके टिकट फाइनल हुए. जिसका परिणाम हुआ कि 2014 आम चुनाव में भाजपा को यूपी में 80 में से 73 मिली.

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पहली कसौटी पर खरा उतरने के बाद संघ ने उन्हें महामंत्री संगठन बनाकर परोक्ष रूप से बीजेपी संगठन की पूरी बागडोर सौंप दी. एक ओर जहां यूपी विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने प्रशांत किशोर का हाथ थामा, वहीं बंसल ने कार्यकर्ताओं के भरोसे ही यूपी चुनाव लड़ने का फैसला किया. युवाओं से सीधा जुड़ने के लिए बीजेपी की सोशल मीडिया टीम पर खास नजर रखने वाले बंसल ने न सिर्फ यूपी में जातीय समीकरणों को बेहद नजदीकी से समझा बल्कि बूथ लेवल तक दलित, ओबीसी और महिलाओं से कार्यकर्ताओं को सीधे तौर पर जुड़ने को कहा. बंसल की इसी रणनीति का नतीजा था कि बीजेपी की यूपी में 2 करोड़ से ज्यादा सदस्यता हुई.

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बंसल के आगे सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी की ‘शहरी पार्टी’ की छवि को खत्म करना था. इसी के तहत उन्होंने यूपी के प्रभारी ओम माथुर के साथ मिलकर पार्टी के टिकट पर पंचायत चुनाव लड़वाने की योजना बनाई. बंसल ने एक लाख बीस हजार बूथों का डाटा इकट्ठा कराया जिसका उपयोग उन्होंने हर विधानसभा में जीत के समीकरण बनाने में किया. इस डाटा से प्रत्याशियों को भी अपनी रणनीति बनाने में सहायता हुई. बंसल ने टिकट वितरण में भी ऐसी सूझबूझ दिखाई कि पार्टी को कहीं भी विरोध का सामना नहीं करना पड़ा. बंसल के कुशल नेतृत्व की बदौलत भाजपा ने 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में अकेले 312 सीटें तथा गठबंधन ने 325 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया.

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2019 में महागठबंधन चुनौती पर बनकर उभरा

नरेंद्र मोदी की दोबारा सत्ता में वापसी का सपना संजोये बीजेपी सरकार के कार्यकाल का आखिरी साल बेहद चुनौतीपूर्ण रहा. एससी/एसटी, नोटबंदी, जीएसटी, राम मंदिर या फिर हो कथित राफेल भ्रष्टाचार मुद्दा, समूचे विपक्ष ने ऐसा माहौल बनाया कि चुनावी दहलीज पर खड़ी पार्टी को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ गंवाने पड़े. बीजेपी की इस हार ने समूचे विपक्ष में जान डाल दी. इसका सबसे ज्यादा असर देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में देखने को मिला जहां बीजेपी को सत्ता से रोकने के लिए कभी धुर विरोधी रहे सपा-बसपा और रालोद एक साथ आ गए. महागठबंधन के बाद प्रदेश में जो जातीय समीकरण बना, वो बीजेपी की नींद उड़ाने जैसा था, यहाँ तक कि राजनीतिक पंडित भी बीजेपी की सत्ता में वापसी के सवाल पर प्रश्नचिन्ह लगाने लगे.

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बीजेपी ने फिर सुनील बंसल पर जताया भरोसा

उत्तर प्रदेश में विपक्ष के पास जातीय अंकगणित के साथ-साथ जोश, जलवा और जनाधार था तो वहीं बीजेपी के पास सुनील बंसल. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने फिर एक बार अपने उसी योद्धा पर भरोसा जताया जिसने 2014 लोकसभा और 2017 विधानसभा चुनावों में पार्टी को फतह दिलाई थी, लेकिन इस बार परिस्थिति अलग थी, महागठबंधन के साथ-साथ एंटी इन्कमबेंसी फैक्टर भी एक बड़ी चुनौती थी.

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पहले संगठन को मजबूत किया

सुनील बंसल ने अपने तजुर्बे का इस्तेमाल करते हुए राजनीति की बिसात पर गोटियां सेट कीं और विपक्षी चालों को मात देने के लिए योजनाओं का खाका खींचने के बाद दिन-रात को समान मानते हुए क्रियान्वयन में युद्ध स्तर पर जुट गए. जमीनी स्तर के कार्यकर्ता हों या सोशल मीडिया के, सभी के पेंच कसने में बंसल ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. इसके लिए उन्होंने सभी लोकसभा क्षेत्रों का दौरा किया, कमियां पाए जाने कई जिलों के अध्यक्ष भी बदल दिए. जमीन पर माहौल देखने के बाद प्रत्याशियों के फीडबैक से लेकर किसे कहां से खड़ा करना है, उसकी रिपोर्ट सुनील बंसल ने ही अमित शाह को दी.

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अभियानों को धार दिया

बंसल ने पार्टी और सरकार के शीर्ष नेताओं से मंत्रणा के बाद अभियान शुरू किया. उन्होंने 146 कार्यक्रम तय किये. अगस्त 2018 से मार्च 2019 तक सभी कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया गया. बूथ, मंडल और जिले स्तर तक आयोजन शुरू हुए तो लगातार सिलसिला बना रहा. चुनाव के दौरान अकेले बंसल ने 60 लोकसभा क्षेत्रों में असंतुष्टों से संपर्क साधा और कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया. वार रूम में 90 लोगों की तैनाती कर एक-एक क्षेत्र की रिपोर्ट ली गई और हर लोकसभा क्षेत्र में इंटेलीजेंस के लिए 80 एक्सपर्ट भेजे गए.

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क्रियान्वयन पर जोर दिया

बंसल ने बूथवार कार्यकर्ताओं की सूची तैयार कराई. तीस लाख सत्यापित कार्यकर्ताओं को मोदी को फिर से पीएम बनाने और 13 करोड़ मतदाताओं को साधने का लक्ष्य सौंपा. फिर सम्मेलन, सभा, पदयात्रा, बाइक रैली, कमल ज्योति अभियान आदि कार्यक्रमों के जरिये माहौल बनाया. विजन के साथ मिशन पर एक्शन शुरू हुआ तो भाजपा को जमीनी हकीकत पता चली. सांसदों से जनता के बीच नाराजगी को तो पहले ही भांप लिया गया था. इसके लिए दस मार्च से 15 अप्रैल तक हर लोकसभा क्षेत्र में महिला, युवा, किसान, अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के सम्मेलन शुरू हुए. तय हुआ कि हर विधानसभा क्षेत्र में एक सम्मेलन हो. करीब 376 सम्मेलन हुए. फिर सोशल मीडिया वालंटियर सम्मेलन भी हुए.

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लाभार्थियों को साधा

बंसल यह भलीभांति जानते थे यूपी फतह कि केवल राष्ट्रवाद और पीएम मोदी के चेहरे से काम नहीं चलने वाला. मोदी और योगी सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को को जन-जन तक पहुंचाने के साथ-साथ उनके लाभार्थियों को साधना भी बहुत जरुरी है. इसके लिए उन्होंने अपने हर कार्यकर्ता को कम से कम 50 लाभार्थी के घर भेजा और ‘सेल्फी विद बेनिफिसरी’ हैशटैग का अभियान चलवाया. ऐसे अभियानों से बीजेपी करीब 3 करोड़ ऐसे मतदाओं से सीधा जुड़ने में कामयाब रही जो केंद्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं के लाभार्थी रहे.

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