UP: 5 हजार स्कूलों के विलय पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, लखनऊ बेंच ने सुरक्षित रखा फैसला

उत्तर प्रदेश सरकार (Uttar Pradesh Government) की ओर से 5 हजार से अधिक प्राथमिक और जूनियर सरकारी स्कूलों के मर्जर की योजना फिलहाल कानूनी अड़चन में फंस गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahbad Highcourt) की लखनऊ बेंच (Lucknow bench)  ने शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई पूरी करते हुए स्कूलों के मर्जर पर अस्थाई रूप से यथास्थिति बनाए रखने का मौखिक आदेश दिया है। अदालत ने इस मामले में अंतिम निर्णय सुरक्षित रख लिया है।

51 छात्रों ने दायर की याचिका, न्यायालय की शरण में पहुंचे 

सीतापुर की छात्रा कृष्णा कुमारी समेत कुल 51 स्कूली बच्चों ने स्कूल मर्जर के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की अध्यक्षता में हुई। छात्रों की ओर से मर्जर की प्रक्रिया को शिक्षा के अधिकार (RTE) कानून का उल्लंघन बताया गया और इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई।

RTE कानून के प्रावधानों का उल्लंघन 

याचिकाकर्ताओं के वरिष्ठ अधिवक्ता लालता प्रसाद मिश्रा ने कोर्ट में दलील दी कि राज्य सरकार का यह फैसला संसद द्वारा पारित शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 के विरुद्ध है। उन्होंने कहा कि इस कानून के तहत 300 की आबादी वाले क्षेत्र में एक किलोमीटर के दायरे में स्कूल होना अनिवार्य है, जबकि स्कूलों के विलय से यह प्रावधान अप्रभावी हो जाएगा।

बच्चों के मौलिक अधिकारों पर खतरा 

याचिका में यह भी कहा गया कि स्कूलों के मर्जर से ग्रामीण बच्चों को 2 से 3 किलोमीटर दूर पढ़ाई के लिए जाना पड़ेगा, जिससे शिक्षा में बाधा आ सकती है। ग्रामीण इलाकों में परिवहन सुविधाओं की कमी और संसाधनों के अभाव में हजारों बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होने की आशंका है, जो उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

राज्य सरकार की सफाई: मंशा स्कूल बंद करने की नहीं

राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता अनुज कुदेशिया ने कोर्ट में तर्क दिया कि सरकार की मंशा स्कूलों को बंद करने की नहीं, बल्कि संसाधनों के बेहतर उपयोग और प्रबंधन की है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में ऐसे 58 स्कूल हैं, जहां एक भी छात्र नामांकित नहीं है। इन स्कूलों को बंद करने के बजाय उनका उपयोग अन्य सरकारी कार्यों के लिए किया जाएगा।