इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने मज़हबी शिक्षा देने वाले मदरसों (Madarsas) को लेकर यूपी सरकार (UP Government) से कई बिंदुओं पर जानकारी मांगी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा है कि क्या सेक्युलर राज्य को धार्मिक शिक्षा देने वाले मदरसों को फंड देने का अधिकार है? क्या मदरसे संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 तक प्राप्त मौलिक अधिकारों के तहत सभी धर्मों के विश्वास को संरक्षण दे रहे हैं? और क्या संविधान के अनुच्छेद 28 में मदरसे धार्मिक शिक्षा, धार्मिक संदेश व विशेष पूजा पद्धति की शिक्षा दे सकते हैं? इसके साथ ही क्या महिलाओं को मदरसों में प्रवेश पर रोक है?.
हाईकोर्ट ने सरकारी मदद समेत छह बिंदुओं पर यूपी सरकार से जवाब मांगा है. सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते की मोहलत दी गई है. अदालत इस मामले में छह अक्टूबर को फिर से सुनवाई करेगी. अदालत ने सुनवाई के दौरान यह भी टिप्पणी की है कि मदरसों को सरकारी मदद दिए जाने के विवाद में कई बिंदुओं को अब वह खुद ही तय करेगी. मामले की सुनवाई जस्टिस अजय भनोट की सिंगल बेंच में हुई. अदालत मदरसा अंजुमन ए इस्लामिया फैजुल उलूम द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
दरअसल, मदरसे की प्रबंध समिति ने कुछ अतिरिक्त पदों पर भर्ती के लिए सरकार से अनुमति मांगी थी. सरकार ने अनुमति खारिज कर दी तो उस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने छह बिंदुओं पर सरकार से जवाब मांगा. अदालत ने यह भी पूछा है कि क्या मदरसों में दूसरे धर्मों की भी शिक्षा दी जाती है या नहीं. क्या यहां पर संविधान का पूरी तरह पालन होता है या नहीं.
धर्मगुरू बोले- मदरसों को सिर्फ धार्मिक शिक्षा से जोड़ना सही नहीं
हाईकोर्ट के इन तमाम सवालों को लेकर मुस्लिम समुदाय में अपने जवाब हैं. मुस्लिम धर्मगुरु और दारुल उलूम फिरंगी महल के प्रवक्ता मौलाना सुफियान निजामी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की मदरसों को लेकर टिप्पणी पर बयान दिया है. मौलाना सुफियान निजामी ने कहा कि हम कोर्ट का पूरा सम्मान करते हैं लेकिन कोर्ट को इस बात का ज्ञान होना चाहिए के मदरसों में सिर्फ धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती है बल्कि हिंदी, अंग्रेजी और एनसीईआरटी की किताबों से भी शिक्षा बच्चों को दी जाती है. लिहाज़ा मदरसों को सिर्फ धार्मिक शिक्षा से जोड़ना सही नहीं है.
मौलाना सुफ़ियान निजामी ने कहा कि हमारे मुल्क में बहुत से ऐसे मदरसे हैं, तीर्थ स्थल हैं, त्यौहार हैं, जिसमें सरकारी खर्च भी होता है और सरकारी फंड भी दिया जाता है. उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट को इस टिप्पणी पर पुनर्विचार करने की जरूरत है और जो मदरसों की हकीकत है, उससे वाकिफ़ होने की जरूरत है.
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