कानपुर के बिकरू केस में मुख्य आरोपी विकास दुबे को एनकाउंटर में ढेर करने के बाद से यूपी पुलिस विभाग पर लगातार सवाल उठ रहे थे। ऐसे में अब यूपी पुलिस को बड़ी राहत मिली गई। दरअसल, अभियुक्त विकास दुबे की पुलिस से हुई मुठभेड़ को न्यायिक जांच आयोग ने सही ठहराते हुए पुलिस को क्लीनचिट दे दी है। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विकास और उसके गैंग में शामिल सभी अपराधियों को स्थानीय पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था। इसलिए विकास को अपने घर पर पुलिस की दबिश की जानकारी चौबेपुर पुलिस से पहले ही मिल गई थी। इस वजह से पुलिस बल के 8 सदस्यों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी।
जांच में मिली राहत
जानकारी के मुताबिक, बिकरू कांड की जांच के लिए एक जांच आयोग का गठन किया गया था। इसमें हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज शशिकांत अग्रवाल और पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता भी शामिल थे। कानपुर के बिकरू गांव में 2 जुलाई 2020 की रात को रेड मारने गए 8 पुलिसकर्मियों की निर्ममता से हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद आरोपियों की पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई थी। मामले की जांच के लिए ही आयोग का गठन किया गया था।
अब जांच आयोग ने एनकाउंटर करने वाली पुलिस की टीम को क्लीन चिट दे दी है। मामले की जांच के बाद आयोग ने कहा कि पुलिस पक्ष और घटना से संबंधित सबूतों के खंडन के लिए मीडिया और जनता में से कोई भी सामने नहीं आया है। उन्होंने कहा कि विकास दुबे की पत्नी ऋचा ने एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए एक एफिडेविट दिया था लेकिन आयोग के सामने वह पेश नहीं हुईं। इसीलिए पुलिस पर शक नहीं किया जा सकता। मिजिस्ट्रेट जांच में भी यही निष्कर्ष सामने आया था।
कैसे हुआ था विकास का एनकाउंटर
गौरतलब है कि पुलिस के अनुसार विकास दुबे को जब पुलिस उज् जैन से कानपुर ले आ रही थी तो उसने भागने की कोशिश की और तभी मुठभेड़ में उसे मारा गया। तब इस बारे में उत्तर प्रदेश के अपर पुलिस महानिदेशक (कानून-व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने पत्रकारों से कहा था कि बिकरू कांड के मुख् य आरोपी विकास दुबे को पुलिस ने उज्जैन में गिरफ्तार किया था और उसे कानपुर लाया जा रहा था। कानपुर जिले में गाड़ी पलट गई तो विकास दुबे ने एक घायल पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन ली और भागने की कोशिश करने लगा।
पुलिस ने उसे चारो तरफ से घेर कर आत्मसमर्पण के लिए कहा लेकिन उसने आत्मसमर्पण की बजाय गोली चला दी और जवाब में पुलिस ने भी आत्मरक्षा में गोली चलाई जिसमें वह घायल हो गया। घायल विकास को पुलिस जब अस्पताल लेकर पहुंची तो डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
आयोग ने कही ये बातें
- विकास दुबे से स्थानीय पुलिस इस प्रकार से प्रभावित थी कि वह उसके खिलाफ दर्ज मुकदमों की कभी निष्पक्ष जांच नहीं करती थी। चार्जशीट दाखिल करने से पहले ही गंभीर धाराएं हटा दी गईं। इस वजह से कोर्ट में उसे आसानी से जमानत मिल जाती थी। ट्रायल के दौरान गवाह मुकर जाते रहे। जमानत निरस्त कराने के लिए राज्य सरकार ने कभी भी उच्च अदालतों में अपील भी नहीं की।
- विकास दुबे गैंग को स्थानीय पुलिस एवं अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था। स्थानीय थाने और राजस्व के अधिकारी विकास गैंग के संपर्क में थे और उनसे कई तरह की सुविधाएं ले रहे थे। विकास उनके संरक्षण में ही फल-फूल रहा था। उसका वर्चस्व लगातार पुलिस प्रशासन की अनदेखी के चलते बढ़ता गया।
- संरक्षण के ही कारण विकास दुबे का नाम सर्किल के टॉप-10 अपराधियों की सूची में तो शामिल था लेकिन जिले के टॉप-10 अपराधियों की सूची में नहीं था जबकि उस पर 64 आपराधिक मुकदमे दर्ज थे। गैंग के सदस्यों को पुलिस ने सांप्रदायिक मामले निपटाने के लिए बनाई गई शांति समितियों में भी शामिल कर रखा था।
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