ज्ञानवापी मंदिर या मस्जिद?, 31 साल पुराना केस, जानिए इस पूरे मामले में कब क्या हुआ

उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित बहुचर्चित ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर वीडियोग्राफी (Gyanvapi Masjid Survey and Videography) सर्वे का काम शनिवार से शुरू हो गया है. कोर्ट कमिश्नर सहित सभी पक्ष मस्जिद परिसर के अंदर चले गए हैं. वहीं काशी विश्वनाथ मंदिर से पहले क़रीब 800 मीटर की दूरी पर थाना चौक के पास सभी लोगों को रोक दिया गया है. यहां भारी संख्या में पुलिस फ़ोर्स तैनात है. वाराणसी कोर्ट ने किसी भी हालत में सर्वे की कार्रवाई ना रोकने के निर्देश दिए हैं. अगर कोई बाधा उत्पन्न करता है तो सख़्त कार्रवाई के निर्देश वाराणसी डीएम के द्वारा दिए गए हैं.

बता दें कि हाई कोर्ट ने अपने आदेश में काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का निरीक्षण करने के लिए एक वकील को कोर्ट कमिश्नर के रूप में नियुक्त करने के वाराणसी कोर्ट के 8 अप्रैल के आदेश को चुनौती देने वाली मस्जिद समिति की याचिका को खारिज कर दिया था. हाई कोर्ट ने सिविल कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ याचिका को भी खारिज कर दिया था जिसमें उसने वाराणसी के विश्वेश्वर नाथ महादेव मंदिर में देवताओं की पूजा में हस्तक्षेप को रोक दिया था.

गुरुवार को वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे के लिए नियुक्त किए गए एडवोकेट कमिश्नर अजय कुमार मिश्रा को हटाए जाने से इनकार कर दिया. अदालत ने कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा के अलावा विशाल कुमार सिंह और अजय सिंह को भी कोर्ट कमिश्नर बनाया है. यह दोनों लोग या दोनों में से कोई एक इस सर्वे के दौरान मौजूद रहेगा. साथ ही कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे 17 मई से पहले कराने का आदेश दिया है. कोर्ट ने 17 मई को सर्वे की अगली रिपोर्ट देने के लिए कहा है.

ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर ताजा विवाद क्या है?

ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) का ताजा विवाद, पुराने विवाद से कुछ अलग है. ताजा विवाद मस्जिद परिसर में श्रृंगार गौरी और अन्य देवी-देवताओं की रोज पूजा के अधिकार की मांग के बाद खड़ा हुआ है. ये मूर्तियां ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर स्थित हैं. इस विवाद की शुरुआत 18 अगस्त 2021 को हुई थी, जब 5 महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजन और दर्शन की मांग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था. दरअसल पहले इस परिसर में साल में केवल 2 बार परंपरा के मुताबिक पूजा की जाती थी, लेकिन फिर इन महिलाओं ने मांग की, कि अन्य देवी देवताओं की पूजा में बाधा नहीं आनी चाहिए.

जब ये अपील कोर्ट के सामने आई तो उसने मस्जिद परिसर में सर्वे और वीडियोग्राफी करने के आदेश दिए और 10 मई तक रिपोर्ट देने के लिए कहा. सर्वे के दूसरे दिन यानी शनिवार को सर्वे टीम के मस्जिद में घुसने को लेकर भी काफी हंगामा हुआ और टीम मस्जिद के अंदर दाखिल नहीं हो पाई.

1991 में दायर हुई थी याचिका
काशी विश्वनाथ ज्ञानवापी मुद्दे को लेकर 1991 में प्राचीन मूर्ति स्वयंभू लार्ड विशेश्वर की ओर से बतौर वादी सोमनाथ व्यास,रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय ने वाराणसी कोर्ट में याचिका दाखिल की थी.वाराणसी कोर्ट में इस याचिका पर सुनवाई के करीब 2 साल बाद मुस्लिम पक्ष के पक्षकारों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा और प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला दिया जिसके बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में रोक लगा दी थी.

2021 में पुरातात्विक सर्वेक्षण के हुआ था आदेश
हिन्दू पक्ष के पक्षकार हरिहर पांडेय ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के स्टे ऑर्डर पर जारी एक आदेश के बाद इस मामले में 2019 में वाराणसी कोर्ट में पुनः सुनवाई शुरू हुई. दर्जनों तारीखों पर सुनवाई के बाद अप्रैल 2021 में कोर्ट ने इस मामले में पुरातात्विक सर्वेक्षण के आदेश दिया लेकिन सर्वे से पहले ही हाईकोर्ट ने फिर इस मामले में कार्यवाही पर रोक लगा दी.

ये है हिन्दू पक्ष का दावा
ज्ञाववापी को लेकर हिन्दू पक्ष का दावा है कि ये बाबा विश्वनाथ का प्राचीन मन्दिर है जिसको आज से करीब 350 साल पहले औरंगजेब ने तोड़वाकर मस्जिद बनवाई थी.आज भी मस्जिद के दीवारों पर इसके अवशेष मौजूद हैं.लेकिन मुस्लिम पक्षकार हिन्दू पक्षकारों के तमाम दावों को गलत बताते हैं.इस विवाद को लेकर पिछले 31 सालों से वाराणसी कोर्ट में सुनावई चल रही है.

वर्शिप एक्ट से कमजोर पड़ सकता है केस ?

काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद के बीच विवाद का केस एक कानून से कमजोर पड़ सकता है. ये कानून है प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट, जिसे 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार लेकर आई थी. ये कानून कहता है कि आजादी के समय यानी 15 अगस्त 1947 के वक्त जो धार्मिक स्थल जिस रूप में था, वो हमेशा उसी रूप में रहेगा. उसके साथ किसी तरह की छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जा सकता. बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की है.

हालांकि, हिंदू पक्ष का कहना है कि इस मामले में ये कानून लागू नहीं होता, क्योंकि मस्जिद को मंदिर के अवशेषों के ऊपर बनाया गया था और उसके हिस्से आज भी मौजूद हैं. वहीं, मुस्लिम पक्ष का कहना है कि इस कानून के तहत इस विवाद पर कोई भी फैसला लेने की मनाही है.

बता दें कि 1991 के इस कानून में अयोध्या विवाद को छूट दी गई थी. अयोध्या विवाद आजादी से पहले से चला आ रहा था, इसलिए इसे छूट थी. अयोध्या मामले में 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था. इस फैसले में यहां राम मंदिर बनाने की इजाजत दे दी थी.

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