कमल हासन : अनुशासनहीनता के लिए मेरे पास टाइम नहीं है

 

 

हाल ही में अपने रियलिटी शो बिग बॉस के कारण चर्चा में रहे कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम 12 अगस्त को रिलीज हो रही है. इस फिल्म में वे मुख्य भूमिका में हैं.

 

 

पेश है कमल हासन से खास बातचीत.

मुझे लगता है कि बॉलीवुड में बहुत अनुशासनहीनता है. यहां एक फिल्म को बनाने के लिए कम से कम 1 से 3 साल लगा देते हैं और मेरी बहुत छोटी लाइफ है. मैं मानता हूं कि हिंदी सिनेमा बहुत बड़ा है, लेकिन एक्टर्स की लाइफ बहुत छोटी होती है. मेरे पास इतना टाइम नहीं है, लेकिन अब वक़्त बदल रहा है और उम्मीद है कि यहां भी अब अनुशासन धीरे-धीरे ही सही, लेकिन ज़रूर आएगा. फिलहाल, मुझे अनुशासन की बहुत कमी लगती है. इसमें सुधार लाने की ज़रूरत हैं.

फिल्म या राजनीति में से क्या चुनेंगे?

मुझे नहीं लगता कि मैं अब बॉलीवुड फ़िल्म कर पाऊंगा, क्योंकि अब मैं पार्टी प्रेजिडेंट हूं और अब मुझे बहुत बड़े काम करने हैं. मैं ये नहीं कहूंगा कि ये काम फ़िल्मों से ज़्यादा धार्मिक या पवित्र हैं, लेकिन अब 63 साल की उम्र में मुझे समाज और हमारी सोसाइटी को वापसी उपहार के तौर पर वो सब वापस करना है, जो मुझे मिला है.

 

 

मारुदुर गोपालन रामचन्द्रन जब एमएलए थे, तब 15 -20 फिल्में कर चुके थे, लेकिन जब उनकी ज़िम्मेदारी बढ़ने लगी और जब वो पार्टी प्रेजिडेंट बने, तब सब कुछ बदल गया था. और शायद ऐसा मेरे साथ भी हो. मैं भी ऐसा ही करूंगा, क्योंकि अब आपके ऊपर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी आ गई है. हम तब एंटरटेनमेंट के धंधे के बारे में नहीं बात करते, जब हम तमिलनाडु के विकास और बिज़नेस की बात करते हैं.

क्या रजनीकांत कि काला की तरह आपकी फिल्म विश्वरूपम मैसेज देती है?

मैं हमेशा दूसरो से अलग रहा हूं और इस तरह एक अभिनेता को दूसरे अभिनेता या एक निर्देशक को दूसरे निर्देशक के साथ तुलना करना मुझे पसंद नहीं है. हर किसी का काम करने का अपना तरीका होता है, जिस तरह क्रिकेट के सभी खिलाड़ी एक-दूसरे से अलग होते हैं, ठीक उसी तरह एक्टर भी एक दूसरे से अलग होते हैं, भले उनका रिजल्ट एक जैसा हो.’ मैं दूसरों की तरह अपनी फ़िल्मों में पॉलिटिक्स पर व्यंग कर, टिपण्णी कर अपनी बात कहने की कोशिश नहीं करता , बल्कि साफ शब्दों में खुलकर बेबाकी और मजबूती के साथ अपना दृष्टिकोण लोगों के सामने रखता हूं.

 

एक कलाकार और देश का नागरिक होने के नाते मेरा पॉइंट ऑफ व्यू मजबूत होता है, जो लोगों को सोचने पर मजबूर करता है. मेरी कोई भी फ़िल्म देख लीजिए, जैसे तेवर मगन, हे राम, दशावतारम आदि में क्षेत्र के हिसाब से हो रही पॉलिटिक्स का मेसेज है, फिल्म दशावतार में मैंने बहुत ही हल्के रूप में पॉलिटिक्स को लेकर अपनी सोच बताई थी. बाद में मेरे विचार समय और फ़िल्मों के साथ बोल्ड और मजबूत होते गए. हे राम और विश्वरूपम में यह विचार और भी खुलकर सामने आए हैं.

 

देश और दुनिया की खबरों के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करेंआप हमें ट्विटर पर भी फॉलो कर सकते हैं. )