1984 सिख विरोधी दंगा: जब राजीव गांधी ने कहा- जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है

1984 सिख दंगो को लेकर कथित रूप से पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी से भारत रत्न वापस लेने का प्रस्ताव दिली विधानसभा में पारित किया गया. हालांकि आम आदमी पार्टी में ही विवाद बढ़ता देख पार्टी ने ऐसे किसी प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया. इसे लेकर पार्टी में घमासान मचा हुआ है. चांदनी चौक से विधायक अल्का लाम्बा को तो इस प्रस्ताव के विरोध के चलते पार्टी से निष्काषित भी कर किया वहीं. वहीं सोमनाथ भारती से पार्टी का प्रवक्ता पद छीन लिया गया.

 

राजीव गाँधी के सिख विरोधी दंगे में भूमिका पर फिर से बहस शुरू हो चुकी है.आइये जानते हैं साल 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों के बारे में जिन्हें लेकर राजीव गाँधी के भारत रत्न वापस लेने कि मांग हो रही है.

 

31 अक्टबूर 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजधानी दिल्ली समेत देश के अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में सिख विरोधी दंगों में 3325 लोग मारे गए थे. जिसमें 2733 सिर्फ दिल्ली में मारे गए थे.
आजाद भारत में हुए इस कत्लेआम के बाद 19 नवंबर को तत्कालीन  प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दिल्ली बोट क्लब में इकट्ठा भीड़ के सामने कहा, “जब इंदिरा जी की हत्या हुई थी, तो हमारे देश में कुछ दंगे-फसाद हुए थे. हमें मालूम है कि भारत की जनता को कितना क्रोध आया, कितना ग़ुस्सा आया और कुछ दिन के लिए लोगों को लगा कि भारत हिल रहा है. “जब भी कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती थोड़ी हिलती है.”

 

राजीव के बयान से फैली सनसनी 

प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के इस बयान ने आग में घी डालने का काम किया, और दंगों ने और विशाल रूप ले लिया. राजीव के संबोधन में दंगों के दौरान अनाथ और बेघर हो गए उन हजारों सिखों का कोई जिक्र नहीं था. ऐसा लगा मानो उनके जख्मों पर नमक छिड़का जा रहा हो. आम लोगों में यह संदेश गया, ‘ मानो इन हत्याओं को जायज ठहराने की कोशिश की गई.’

 

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इस बयान ने उस समय और आने वाले काफी समय तक खूब सनसनी मचाई और विपक्ष ने इसे अपने पक्ष में खूब भुनाया. कांग्रेस पार्टी को इस बयाव को सही ठहराने में अभी भी काफी बचाव करनी पड़ता है.

 

सिख विरोधी दंगों की पृष्ठभूमि पर कुछ साल पहले एक किताब छपी थी- ‘व्हेन ए ट्री शुक डेल्ही.’ इस किताब में सिख विरोधी दंगों के दौरान समाज की डरानेवाली सच्चाई और पीड़ितों के परिजनों का दर्द उकेरा गया है. साथ ही यह किताब राजनेताओं के साथ पुलिस के गठजोड़ का भी पर्दाफाश करती है.

 

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पढ़िए इतिहास के वो पन्ने जिनसे भड़का दंगा
इंदिरा गांधी की हत्या की खबर आग की तरह फैल गई. तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह उत्तरी यमन की अपनी यात्रा पूरी होने से पहले ही दिल्ली लौटे आए. हिंसा की शुरुआत उस समय हुई थी जब जैल सिंह हवाई अड्डे से इंदिरा गांधी के दर्शन करने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जा रहे थे. एम्स से कुछ पहले आरके पुरम के पास उनके वाहन काफले पर स्थानीय लोगों ने जलती मशालें फेंक दी थी.

 

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तरलोचन सिंह जैल सिंह के तत्कालीन प्रेस अधिकारी थे. वे बाद में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष बने. तरलोचन के मुताबिक, “ज्ञानी जी की कार सबसे आगे थी. उनके पीछे सचिव और उसके पीछे मेरी कार थी. आरके पुरम इलाके में आगे की दोनों कारें निकल गईं. मेरी कार के सामने जलती मशालें लेकर कुछ लोग आ गए और हमारे ऊपर मशालें फेंकी गईं. लेकिन ड्राइवर ने किसी तरह से बचाकर मुझे घर तक पहुंचाया.

 

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वह बताते हैं, “ज्ञानी जी जैसे ही इंदिरा जी के दर्शन करके एम्स से नीचे उतरे, लोगों ने उन्हें घेर लिया और उनकी कार को रोकने की कोशिश की. ज्ञानी जी के सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी जद्दोजहद के बाद उन्हें वहां से सुरक्षित निकाला.” कभी नहीं भूलने वाला वो मंजर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के साथ जो हुआ यह तो महज शुरुआत थी. इसके बाद देश उस मंजर का गवाह बना जिसके बारे में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा.

 

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त्रिलोकपुरी के ब्लॉक नंबर 32 में 320 लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया. वहां पहुंचने की कोशिश करनेवाले मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को भी वहां पहुंचने नहीं दिया गया क्योंकि उस ब्लॉक के रास्ते में हजारों लोग जमा थे.

 

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मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि ब्लॉक नंबर 32 की उस ढाई सौ गज लंबी गली में लोगों की लाशें और कटे हुए अंग बिखरे हुए थे. गली में कहीं पैर रखने तक की जगह नहीं थी और चलना तक मुश्किल था. शाम के वक्त भी उस इलाके को करीब 10 हजार लोगों ने घेरा रखा था और चारों ओर सन्नाटा पसरा था.

 

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सिख विरोधी दंगों के बाद पीड़ितों की ओर से न्याय की लड़ाई लड़ने वाले वकील और “व्हेन ए ट्री शुक डेल्ही” के सह- लेखक हरविंदर सिंह फुल्का बताते हैं कि पुलिस ने सिखों को बचाने के बजाए उन्हीं के खिलाफ कार्रवाई की थी. वे कहते हैं कि कल्याणपुरी थाने में तकरीबन 600 लोगों को मारा गया. ज्यादातर लोगों को पहली नवंबर को मारा गया. पुलिस ने वहां 25 लोगों को हिरासत में लिया था और वे सभी सिख थे.

 

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फुल्का का कहना है कि, “एक और दो नवंबर को इनके अलावा पुलिस ने किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. पुलिस ने सिखों को पकड़कर भीड़ के हवाले कर दिया.”

 

कैसे मचा इतना बड़ा कत्लेआम

सिख समुदाय के लोगों का इतने बड़े पैमाने पर हुए इस कत्लेआम के बाद यह सवाल उठा कि यह भीड़ का आक्रोश था या इसके लिए पीछे षड्यंत्र था. “व्हेन ए ट्री शुक डेल्ही” किताब के लेखक मनोज मित्ता का कहना है कि पूरे कत्लेआम के पीछे चंद नेताओं का दिमाग था.

 

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मित्ता के मुताबिक इंदिरा गांधी की हत्या वाले दिन को हिंसा की छिटपुट घटनाएं हुई. उस दिन कोई सिख नहीं मारा गया. लेकिन इसके बाद एक और दो नवंबर को जो घटा वह बिना योजना के नहीं हो सकता था. मित्ता कहते हैं कि कत्लेआम की शुरुआत पूरे 24 घंटों के बाद यानी अगले दिन एक नवंबर से हुई थी.

 

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मित्ता का कहना है कि नेताओं ने अपने क्षेत्रों में बैठक कर हिंसा की योजना बनाई और अगले दिन हथियारों के साथ निकले थे. पुलिस उन्हें नजरअंदाज कर रही थी. यहां तक की उनकी मदद कर रही थी.

 

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फूल्का कहते हैं, “भीड़ के पास सूचीबद्ध जानकारी थी कि किस घर में सिख रहते हैं. लोगों को हजारों लीटर केरोसीन और ज्वलनशील पाउडर मुहैया कराया गया. जो लोहे की छड़ें लोगों के हाथों में थी, वे एक जैसी थीं.”

प्रमोशन के लिए पुलिसवाले बने खिलौना

 

सबसे अहम सवाल यह है कि जब पुलिस ने दंगा रोकने की बजाए उसे बढ़ाने में क्यों मदद की. रक्षक भक्षक क्यों बन गए. पुलिस नेताओं के हाथों में खिलौना क्यों बन गई.

 

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1984 के सिख विरोधी दंगों में पुलिस की भूमिका की जांच करने वाले वरिष्ठ पुलिस अधिकारी वेद मारवाह कहते हैं कि पुलिस शासन व्यवस्था में एक औजार होती है. शासन इसका जैसा चाहे वैसा इस्तेमाल कर सकता है. मारवाह के मुताबिक जो पुलिस अधिकारी बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षी होते हैं उनकी नजरें इस बात पर होती है कि राजनेता उनसे क्या चाहते हैं. वो इशारों में बात समझते हैं. वे किसी लिखित या मौखिक आदेश का इंतजार नहीं करते.

 

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मारवाह के मुताबिक पुलिस ने जिन इलाकों में नेताओं की बात मानने से इनकार कर दिया वहां कोई दंगा नहीं हुआ. वे चांदनी चौक इलाके का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वहां बड़ा गुरुद्वारा है. वहां स्थिति नियंत्रण में रही क्योंकि उस समय तत्कालीन पुलिस उपायुक्त मैक्सवेल परेरा ने इसके कड़े निर्देश दिए थे कोई गड़बड़ी हो. दंगाई उन्हीं इलाकों में उत्पात मचा पाए जहां पुलिस नेताओं के इशारों पर नाच रहे थे.

 

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