प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद चैयरमैन बिबेक देबरॉय (Bibek Debroy) के नए संविधान लेख (Article) को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है। बहुजन समाज पार्टी (BSP) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती (Mayawati) ने बिबेक देबरॉय के लेख पर कड़ी नाराजगी जाहिर की है। बसपा सुप्रीमो ने लेख को उनके अधिकार का खुला उल्लंघन बताया है। साथ ही केंद्र सरकार से तुरंत संज्ञान लेकर कार्रवाई की मांग की है।
बसपा चीफ मायावती ने शुक्रवार को ट्वीट कर बिबेक देबरॉय के लेख पर गुस्सा व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि आर्थिक सलाहकर परिषद के चेयरमैन बिबेक देबरॉय द्वारा अपने लेख में देश में नए संविधान की वकालत करना उनके अधिकार क्षेत्र का खुला उल्लंघन है जिसका केन्द्र सरकार को तुरन्त संज्ञान लेकर जरूर कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि आगे कोई ऐसी अनर्गल बात करने का दुस्साहस न कर सके।
2. देश का संविधान इसकी 140 करोड़ गरीब, पिछड़ी व उपेक्षित जनता के लिए मानवतावादी एवं समतामूलक होने की गारण्टी है, जो स्वार्थी, संकीर्ण, जातिवादी तत्वों को पसंद नहीं और वे इसको जनविरोधी व धन्नासेठ-समर्थक के रूप में बदलने की बात करते हैं, जिसका विरोध करना सबकी जिम्मेदारी। (2/2)
— Mayawati (@Mayawati) August 18, 2023
मायावती ने आगे कहा कि देश का संविधान इसकी 140 करोड़ गरीब, पिछड़ी व उपेक्षित जनता के लिए मानवतावादी एवं समतामूलक होने की गारण्टी है, जो स्वार्थी, संकीर्ण, जातिवादी तत्वों को पसंद नहीं और वे इसको जनविरोधी व धन्नासेठ-समर्थक के रूप में बदलने की बात करते हैं, जिसका विरोध करना सबकी जिम्मेदारी।
दरअसल, बिबेक देबरॉय ने अपने लेख में लिखा कि हमारा संविधान काफी हद तक 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है। इस अर्थ में यह एक औपनिवेशिक विरासत भी है। 2002 में संविधान के कार्य करने की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग द्वारा रिपोर्ट आई थी, लेकिन यह आधा अधूरा प्रयास था। कानून में सुधार की कई पहलुओं की तरह यहां दूसरे बदलाव से काम नहीं चलेगा। हमें पहले सिद्धांतों से शुरुात करनी चाहिए। जैसा कि संविधान सभा की बहस में हुआ था। 2047 में फिर नए भारत को किस संविधान की जरुरत है, इसकी समीक्षा होनी चाहिए।