Nepal Protest: नेपाल में हाल ही में जेन-ज़ी (Gen Z) का आंदोलन भड़क उठा है। दशकों की राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और आर्थिक असमानता से उपजे असंतोष ने इस बार युवाओं को सड़कों पर ला दिया। नेपाल की आबादी का औसत आयु मात्र 25 वर्ष है, यानी देश की आधी से अधिक ताक़त युवा वर्ग के पास है।
नाराज़गी की जड़
बेरोज़गारी, सरकारी नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद और नेताओं के परिवारों की ऑनलाइन दिखावटी ऐशो-आराम भरी ज़िंदगी ने युवाओं को लंबे समय से आक्रोशित कर रखा था।एक ओर नेपाल की औसत वार्षिक आय मात्र 1,400 डॉलर (लगभग 1 लाख 98 हज़ार नेपाली रुपये) है।दूसरी ओर राजनीतिक नेताओं और उनके परिजनों की आलीशान जीवनशैली आम जनता के गुस्से को और भड़काती रही।सोशल मीडिया पर इन असमानताओं को उजागर करने वाले ट्रेंड सरकार को असहज करते रहे।
चिंगारी बनी सोशल मीडिया पर पाबंदी
4 सितंबर को सरकार ने अचानक 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (Facebook, X, YouTube, LinkedIn, Reddit, Signal, Snapchat आदि) पर प्रतिबंध लगा दिया। वजह बताई गई, नई पंजीकरण नीति का पालन न करना। आलोचकों ने इसे सरकार की आलोचना और भ्रष्टाचार पर उठ रहे सवालों को दबाने का प्रयास करार दिया।
नेपाल में 90% लोग करते सोशल मीडिया का इस्तेमाल
नेपाल की 3 करोड़ आबादी में लगभग 90% लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं। ऐसे में यह बैन संवाद, समाचार और व्यापार सभी पर भारी पड़ा। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार से पहले ही नाराज़ युवा इसे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला मान बैठे।
प्रदर्शन और हिंसा
8 सितंबर को काठमांडू के मैतीघर मंडला और संसद भवन के आसपास हजारों लोग इकट्ठा हुए। शुरू में शांतिपूर्ण रहे प्रदर्शन अचानक हिंसक हो गए। पुलिस ने आंसू गैस, वॉटर कैनन, रबर बुलेट और यहां तक कि गोलियां दागीं। कम से कम 19 लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल हुए। हालात बेकाबू होने पर उसी शाम सोशल मीडिया बैन हटाना पड़ा और गृहमंत्री रमेश लेखाख ने इस्तीफ़ा दे दिया। लेकिन सोशल मीडिया बहाल होते ही हिंसा और पुलिसिया कार्रवाई की तस्वीरें वायरल हुईं, जिसने आंदोलन को और उग्र बना दिया।
सरकार का पतन और आगजनी
- 9 सितंबर को आंदोलन अपने चरम पर पहुंचा।
- प्रधानमंत्री ओली ने इस्तीफ़ा दिया और सेना की बैरक में शरण ली।
- प्रदर्शनकारियों ने सिंहदरबार (संसद व मंत्रालय), सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रपति भवन (सीतल निवास) और ओली का निवास (बालुवाटार) तक को आग के हवाले कर दिया।
- UML और नेपाली कांग्रेस के दफ़्तर तथा पूर्व प्रधानमंत्रियों,शेर बहादुर देउबा, झलनाथ खनाल और पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के घरों में भी आगजनी की गई।
- कैलाली और कास्की की जेलों पर धावा बोलकर कैदियों को छुड़ा लिया गया।
- हालात बिगड़ने पर सेना प्रमुख जनरल अशोक राज सिग्देल ने नियंत्रण संभाला और संवाद की अपील की।
मौजूदा हालात
- 10 सितंबर तक काठमांडू और अन्य शहरों की सड़कों पर सेना गश्त कर रही है।
- अब तक 23 मौतें और 400 से अधिक घायल हो चुके हैं।
- त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बंद है और उड़ानें डायवर्ट की जा रही हैं।
- स्वतंत्र मेयर बलेन्द्र शाह नई व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते दिख रहे हैं।
- जनरल सिग्देल ने राष्ट्र को संबोधित कर संयम और बातचीत की अपील की।
क्षेत्रीय और वैश्विक असर
- इस आंदोलन ने न केवल नेपाल बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की स्थिरता को हिला दिया है। भारत ने अपने नागरिकों को निकालना शुरू कर दिया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी घटनाक्रम पर नज़र बनाए हुए है।
- यह विद्रोह युवाओं की नौकरी, गरिमा और भ्रष्टाचार-मुक्त विकास की मांग को स्पष्ट करता है। आगे का रास्ता या तो संवैधानिक सुधार की ओर जा सकता है या फिर राजशाही बहाली की मांग तेज़ हो सकती है।
क्या ‘डीप स्टेट’ सक्रिय है?
- नेपाल की घटनाओं में दक्षिण एशिया की हालिया राजनीतिक उथल-पुथल का पैटर्न साफ़ झलकता है:
- श्रीलंका (2022): आर्थिक संकट से उपजे आंदोलन ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को देश छोड़ने पर मजबूर किया।
- बांग्लादेश (2024): छात्र आंदोलन ने प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता गिरा दी।
- पाकिस्तान (2022): इमरान खान की सरकार का पतन और अमेरिकी साज़िश के आरोप।
हसीना का आरोप
हसीना ने आरोप लगाया था कि अमेरिका ने सेंट मार्टिन द्वीप पर सैन्य अड्डा बनाने की मांग ठुकराने पर उन्हें सत्ता से हटवाया। श्रीलंका पहले ही चीन के कर्ज़ जाल में फंसकर हंबनटोटा बंदरगाह 99 वर्षों के लिए चीन को सौंप चुका है।इन घटनाओं की समानता युवाओं की अगुवाई में विद्रोह, अचानक हिंसा, सरकार का पतन और बाहरी हस्तक्षेप के आरोप,ने सवाल खड़े कर दिए हैं। कई विश्लेषक मानते हैं कि यह अमेरिकी रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना है।