राजनीति में अगर नेताओं का कद बोलता है तो कुर्सियों की ऊंचाई के भी अपने मायने होते हैं. सपा बसपा की प्रेसवार्ता में नेताओं और कुर्सियों के कद का यह फर्क मुखर होकर सामने आया. हालांकि, मायावती और अखिलेश संतुलन साधते हुए एक-दूसरे के बराबर देखने का प्रयास करते रहे, लेकिन अखिलेश से बड़ी माया की कुर्सी, सपा से बड़े बसपा के झंडे और पोस्टरों में दिखने वाली बसपा की बढ़त ने बता दिया कि मायावती बड़ी लंबी लकीर खींच गयीं हैं.
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प्रेस वार्ता शुरू होने से पहले पत्रकारों की नजर जैसे ही मायावती और अखिलेश के लिए रखी कुर्सियों पर पड़े तो सुगबुगाहट शुरू हो गई. मायावती के लिए रखी कुर्सी अखिलेश की कुर्सी से बड़ी थी. इस पर कई लोगों ने चुटकी ली की कुर्सियों का शायद राजनीतिक कद और अनुभव के आधार पर किया गया है. नजर कुर्सियों के ऊपर उठी पीछे दीवार पर लगे सपा बसपा के झंडों में भी आकार वही अनुपात नजर आया. बसपा का झंडा बड़ा और सपा का छोटा था. खास बात यह है कि जैसे इंजन में चुनाव चिन्ह के तौर पर बने हाथी व साइकिल अलग अलग दिशा में दिख रहे थे वैसे ही कुर्सियों के पीछे लगी फोटो में भी अखिलेश और मायावती एक दूसरे से विपरीत देख रहे थे.
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प्रेस वार्ता शुरू होने पर मायावती जब अखिलेश के साथ एक मेज पर आए तो ढाई दशक पहले हुए ऐसे ही तालमेल का और गेस्ट हाउस कांड के तौर पर उसके अप्रिय समापन का जिक्र करना नहीं भूलीं. एक बार नहीं, उन्होंने 3 बार इस घटना का नाम लिया मायावती की स्मृति पटल पर तो वह हादसा अमित है, लेकिन इधर ढाई दशक में एक पीढ़ी आगे बढ़ चुके सपा नेतृत्व के लिए यह बातें असहज करने वाली थीं. मायावती की मानसिक बढ़त थी तो इसी वजह से अखिलेश बैकफुट पर आते दिखे. यही वजह रही कि मायावती के बाद जब अखिलेश के संबोधन का नंबर आया तो उन्होंने खास तौर पर अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दिया कि मायावती का सम्मान, मेरा सम्मान है और उनका अपमान मेरा अपमान है.
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