मुकेश कुमार, संवाददाता गोरखपुर । दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित ‘सोशियोलॉजिकल डिसकोर्स इन इंडियन नॉलेज सिस्टम’ विषयक द्विदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफलतापूर्वक समापन हुआ। समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग की अध्यक्ष प्रो. कीर्ति पांडेय उपस्थित रहीं। मुख्य वक्ता के रूप में आयरलैंड में भारत के राजदूत श्री अखिलेश मिश्र रहे। संवाद भवन में आयोजित समापन सत्र की अध्यक्षता प्रति कुलपति प्रो. शांतनु रस्तोगी ने किया।
अपने उद्बोधन में मुख्य अतिथि प्रो. कीर्ति पांडेय ने कहा कि भारतीय विरासत पुरातन और महान है। यह चिकित्सा, ज्योतिष शास्त्र, आध्यात्म, विज्ञान कला जैसे कई विषयों से जुड़ा हुआ है, यह सभी विषय एक दूसरे से अंत:संबंधित और अंत:निर्भर है। भारतीय ज्ञान परंपरा भारतीय पौराणिक ग्रंथों, उपनिषद में व्याप्त है। भारत के चार मूल ग्रंथ ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद में गहरे ज्ञान छिपे हुए हैं। भारतीय ज्ञान परंपरा में भारतीय जीवन शैली के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है ये परस्पर संबद्ध हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा धर्म और अर्थ का समन्वय करती है।
संगोष्ठी के समापन सत्र के मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित श्री अखिलेश मिश्र ने कहा कि भारत की उन्नति एवं विकास के लिए भारत में बौद्धिक विमर्श भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित होना चाहिए जिससे कि हम उसके आधारभूत मूल स्वरूप को समझते हुए उसका परिमार्जन एवं संरक्षण कर सके। भारत जैसा बहुलवादी और समावेशी देश दूसरा कोई नहीं है। भारतीय ज्ञान परंपरा मूल रूप से समानता की बात करती है- लैंगिक समानता, आर्थिक समानता तथा विश्वास की समानता।
भारत विश्व के बड़े लोकतांत्रिक देश में से एक है, इस वजह से भारत के नागरिकों के लिए यह जरूरी है कि वह अपने अधिकार एवं कर्तव्य के बीच एक समन्वय स्थापित करें और अपने अधिकारों के साथ ही अपने कर्तव्यों का भी भावपूर्ण ढंग से निर्वहन करें।
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समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रति कुलपति प्रो. शांतनु रस्तोगी ने कहा कि भारतीय ज्ञान व्यवस्था में बहुत सी ज्ञान पद्धतियां है, उन्हें हम भूलते जा रहे हैं, उन्हें हमें ध्यान देने की जरूरत है। भारतीय ज्ञान परम्परा पर अभी और भी खोज की जरूरत है। भारतीय संस्कृति विविधता में एकता की बात करता है जहां ऊपर से देखने पर भौतिक स्तर पर सभी एक दूसरे से अलग हैं किंतु सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
समापन सत्र में स्वागत वक्तव्य देते हुए संगोष्ठी निदेशक प्रो. अनुराग द्विवेदी ने विभिन्न सत्रों में प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुत शोध पत्रों का उल्लेख करते हुए दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।
संगोष्ठी समन्वयक डॉ मनीष पांडेय ने सभी अतिथियों का स्वागत किया।
समापन सत्र का संचालन डॉ समृद्धि सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. दीपेन्द्र मोहन सिंह ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी, शहर के गणमान्य नागरिक समेत बड़ी संख्या में विद्वतजन और विद्यार्थी उपस्थित रहे।
भारत सहित आधा दर्जन से अधिक देशों के प्रतिभागी हुए शामिल
सिम्पोजियम का हुआ आयोजन
आईसीएसएसआर, नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के कुल 06 तकनीकी सत्रों में बड़ी संख्या में प्रतिभागियों ने भारतीय ज्ञान परम्परा के विभिन्न आयामों पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। 60 से अधिक आमंत्रित विशेषज्ञ शामिल हुए। साथ ही दो सिंपोजियम सत्रों में 10 से अधिक ख्यातिलब्ध समाज वैज्ञानिकों ने अपने विचार प्रस्तुत किया। प्रतिभागियों की सुविधा के लिए दो ऑनलाइन सत्र भी आयोजित किए गए। संगोष्ठी में यूनिवर्सिटी ऑफ नैरोबी केन्या के प्रो बेंशन अगया, श्रीलंका के रूहुना यूनिवर्सिटी के प्रो. सरथ अमरसिंगे , काठमांडू विश्वविद्यालय नेपाल से प्रो. उद्धव, त्रिनिदाद एंड टोबैगो से प्रो क्रिस रामप्रसाद आदि के महत्वपूर्ण व्याख्यान हुए।
इंडिजिनस नॉलेज सिस्टम के उप विषय पर आयोजित सिम्पोजियम की अध्यक्षता अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रो. अजय कुमार शुक्ला ने की विशिष्ट वक्ता के रूप में दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय गया के प्रो. अनिल कुमार सिंह झा काठमांडू विश्वविद्यालय नेपाल के प्रो. उद्धव पयाकुरेल, वीएनआईटी ग्वालियर के प्रो. जी.एन. निम्बर्टे, हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, शिमला के प्रो. अनिल कुमार, डॉ. क्रिस रामप्रसाद, त्रिनिदाद और टोबैगो हेरिटेज एजुकेटर, पत्रकार, कंटेंट क्रिएटर और पॉलिसी चेंज इन्फ्लुएंसर तथा लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रो. प्रमोद कुमार गुप्ता ने संबोधित किया।
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