BT शुक्रवार स्पेशल: आपको ‘पैडमैन’ क्यों देखनी चाहिए

अक्षय कुमार अपनी नयी पिक्चर लेकर दर्शकों के बीच उतर चुके हैं। फिल्म जिससे आप सभी परिचित हैं, फिल्म का नाम है ‘पैडमैन’। पैडमैन यानी लक्ष्मी प्रसाद चौहान यानी अक्षय कुमार। अभी हाल ही में उन्होंने ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ में खूब वाहवाही लूटी थी तो वो एक और मुद्दा उठा लाये हैं जिससे सिनेमा के ज़रिये अपनी ऑडियंस तक अपनी बात पंहुचा सके। पिक्चर पहले गणतंत्र दिवस के मौके पर आने वाली थी लेकिन ‘पद्मावत’ विवाद के चलते और भंसाली की मदद करने के लिए अक्षय ने दिल बड़ा करके अपनी फिल्म हटा ली। फिल्म इंडस्ट्री में अक्सर ऐसा होता आया है लेकिन ये पद्मावत के सिलसिले में ज़रूरी था क्योकि पद्मावत फिल्म का बजट ही 170 करोड़ के आस-पास था जो की फिल्म के लिहाज़ के बड़ी रकम है और उनके लिए अच्छी खबर ये है की फिल्म ने मुनाफ़ा कमाया है। ख़ैर अब जब पैडमैन सिनेमाघरों में रिलीज़ हो गई है तो आइये जानते हैं कि आखिर फिल्म है कैसी ?

आठवीं पास आदमी के जद्दोजहद की कहानी है “पैडमैन”

अक्षय कुमार यानी लक्ष्मी अपनी दुल्हनियां गायत्री यानी राधिका आप्टे को घर ले आते हैं। एक रोज उन्हें पता लगता है कि ‘उन दिनों’ के चलते गायत्री कुछ दिन तक सबसे दूर घर के एक अंधेरे कोने में रहेगी। सबके मना करने के बावजूद वह उस कोने में पहुंच जाते हैं और पाते हैं कि गायत्री एक गंदे कपड़े को अपनी साड़ी के नीचे फैलाकर सुखा रही है। इतना गंदा कपड़ा, जिससे वह अपनी साइकिल भी साफ न करें! यह देख लक्ष्मी के साथ ही हम भी बेचैन हो उठते हैं। और लक्ष्मी तुरंत ही मेडिकल स्टोर पहुंच जाते हैं सैनिटरी नैपकिन खरीदने। नैपकिन काफी महंगा होता है। गायत्री इतनी महंगी चीज इस्तेमाल करने से मना कर देती है। और लक्ष्मी इस ख्याल में डूब जाते हैं, कि आखिर इतनी हल्की चीज की कीमत इतनी भारी क्यों है? वह तय करते हैं कि खुद ही सैनिटरी नैपकिन बनाएंगे। कुछ अटपटे प्रयोग करते हैं पर सफल नहीं होते। उनकी पत्नी, उनका परिवार, समाज- सब उनके खिलाफ हो जाता है और उन्हें घर छोड़कर जाना पड़ता है। फिर एक दिन कुछ ऐसा होता है कि वह तय करते हैं कि वह सैनिटरी नैपकिन नहीं, बल्कि सैनिटरी नैपकिन बनाने की मशीन बनाएंगे। एक आठवीं पास इंसान की इसी जद्दोजहद की कहानी है पैडमैन और फिल्म में इस औरतों से जुडी इस समस्या पर ही ध्यान दिया गया है।

“माहवारी” जैसे विषय पर फिल्म बनाना हिम्मत का काम

फिल्मे हर किस्म की बनती हैं लेकिन भारतीय सिनेमा में बहुत बड़ा स्टार बोल्ड सिनेमा का रुख नहीं ही करता है लेकिन अक्षय कुमार लगातार बेहतरीन काम कर रहे हैं। बात का सीधा सा मतलब यह है की “माहवारी” जैसे विषय को लेकर फिल्म बनाने की हिम्मत जुटाने के लिए इसके निर्माता-निर्देशक की तारीफ होनी चाहिए। यह सच है कि कई बार बड़े फिल्मी सितारों को लेकर अहम मुद्दों-समस्याओं पर फिल्म बनाना उन्हें लेकर जागरूकता फैलाने का सबसे माकूल जरिया होता है। आज भी गांव-कस्बों में माहवारी को लेकर जो मिथक हैं, उन्हें तोड़ने की मुहिम में यह फिल्म एक बड़ा कदम हो सकती है।

इससे पहले भी बन चुकी हैं इस मुद्दे पर फिल्मे

“माहवारी” के विषय को उठाने वाली यह पहली हिंदी फिल्म नहीं है। इससे पहले पिछले साल हम ‘फुल्लू’ के रूप में इसी कहानी पर बनी एक दूसरी फिल्म देख चुके हैंं। साथ ही इस विषय पर ‘आई पैड’ नामक एक फिल्म भी बनी थी जो किन्हीं कारणों से रिलीज नहीं हो सकी। आर. बाल्की जैसे निर्देशक और अक्षय कुमार-सोनम कपूर जैसे सितारों की मौजूदगी की वजह से इस फिल्म को एक बड़ा कैनवस मिल गया, जिससे ये फिल्म ज़्यादा से ज़्यदा दर्शकों तक पहुंच पाएगी । जाहिर है इसे देखने बड़ी संख्या में लोग जाएंगे और जाना भी चाहिए।

मध्यप्रदेश की खूबसूरती को बारीकी से दिखाया गया है, सिनेमैटोग्राफी है काबिले तारीफ़

पी. सी. श्रीराम की सिनेमैटोग्राफी की जितनी तारीफ की जाए, कम होगी। मध्य प्रदेश के किलों, नर्मदा घाट और गलियों को जिस बारीकी से कैमरे में कैद किया गया है, उसे देखकर बहुत सारे लोग यहां के टूर का प्लान बना सकते हैं। फिल्म के लोकेसंस शानदार ढंग से फ़िल्माए गए और ये छोटे बजट की फिल्मों में अक्सर काम ही देखने को मिलता है।

कुछ बाते बनाते बनाते “बिगाड़ दी गयी हैं”

हर फिल्म की तरह पैडमैन फिल्म की अपनी खामियां भी हैं। एक ऐसी फिल्म जिसका मुख्य किरदार दक्षिण भारतीय है, जिसमें दक्षिण भारत के ऋतु कला संस्कारम (किसी लड़की की माहवारी शुरू होने पर मनाया जाने वाला उत्सव) जैसे रिवाज दिखाए गए हैं, उसे मध्य प्रदेश की जगह अगर दक्षिण भारत में ही कहीं फिल्माया जाता, तो यह ज्यादा विश्वसनीय लगता। बहुत संभालने के बावजूद इसका उपदेशात्मक पक्ष थोड़ा ज्यादा हो गया है। एक और बात, आठवीं पास लक्ष्मी जिसे पीरियड्स के बारे में शादी होने के बाद ही पता लगता है, वह पीरियड के लिए इस्तेमाल होने वाले अति शहरी शब्द ‘चम्स’ से अच्छी तरह परिचित है, यह बात चौंकाती है।

राधिका आप्टे का मांझी वाला अवतार मेलोड्रामा पैदा करता है, अभिनय शानदार है

अक्षय कुमार का डायलॉग डिलिवरी का अंदाज टॉयलेट एक प्रेमकथा वाला ही है। अपने अंदर के स्त्री पक्ष को महसूस कर रहे एक पुरुष और ‘सुपरहीरो’ अक्षय कुमार के बीच अच्छी-खासी रस्साकशी चलती है। राधिका आप्टे अपने किरदार में पूरी तरह रच-बस गई हैं, पर… उनका यह लजाती हुई ग्रामीण महिला वाला अंदाज हम मांझी दि माउंटेन मैन में भी देख चुके हैं। फिल्म में ‘मेलोड्रामा थोड़ा ओवर हो गया।’ राधिका कमाल की एक्ट्रेस हैं और इससे पहले कि लोग उन्हें टाइप्ड कहने लगें, उन्हें अब कुछ अलग किस्म के रोल निभाने चाहिए।

सोनम कपूर परी वालिया के किरदार में लगी हैं “कमाल”

और अब बात परी वालिया, यानी अनिल कपूर की बिटिया यानी सोनम कपूर की। साउथ दिल्ली की एक मॉडर्न लड़की के किरदार में परी ही तो लगी हैं सोनम। वह खूबसूरत परी जो पैडमैन को उड़ना सिखाती है। उनके एंट्री मारते ही गंभीरता और संदेश के वजन से झुक रही फिल्म ताजी हवा की तरह बहने लगती है। उनके और अक्षय कुमार के बीच का प्यार शुरुआत में प्लैटॉनिक रहता है, और बाद में खालिस बॉलीवुड रोमांस के रंग में ढल जाता है। गीत-संगीत की बात करें तो अरिजित के ‘आज से तेरी’ गाना सबकी जुबान पर चढ़ा हुआ है।