Dev Deepawali 2020: कब है देव दिवाली, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, महत्व और पौराणिक कथा

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को छोटी दिवाली जिसे नरक चतुर्दशी भी कहते हैं. इसके बाद अमावस्या को बड़ी दिवाली मनाते हैं एवं पूर्णिमा को देव दीपावली (Dev Deepawali) मनाते हैं. देव दीवाली (Dev Diwali) कार्तिक पूर्णिमा का त्योहार है जो यह उत्तर प्रदेश के वाराणसी मे मनाया जाता है. यह विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी की संस्कृति एवं परम्परा है. यह दीपावली के पंद्रह दिन बाद मनाया जाता है. इस दिन गंगा नदी की पूजा की जाती है और लाखों दीए जलाए जाते हैं. धार्मिक मान्यता है कि देव दिवाली पर देवलोक से सभी देवता वाराणसी में खुशियां मनाने आते हैं.


देव दीपावली 2020 शुभ मुहूर्त (Dev Deepawali 2020 Shubh Muhurat) 


प्रदोषकाल देव दीपावली मुहूर्त – शाम 5 बजकर 08 मिनट से शाम 07 बजकर 47 मिनट तक.


इस दिन किया जाता है गंगा स्नान


कार्तिक मास की पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया गया है. माना जाता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है. इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है.


देव दिवाली का धार्मिक महत्व


मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का वध किया था. त्रिपुरासुर के वध के बाद सभी देवी-देवताओं ने मिलकर खुशी मनाई थी. इस सभी देवी-देवता भगवान शंकर संग धरती पर आते हैं और दीप जलाकर खुशियां मनाते हैं. तभी से काशी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस दिन दीपदान करने का विशेष महत्व होता है.


देव दीपावली की पौराणिक कथाएं

यह कथा महर्षि विश्वामित्र से जुड़ी है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार विश्वामित्र जी ने देवताओं की सत्ता को चुनौती दे दी. उन्होंने अपने तप के बल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया. यह देखकर देवता अचंभित रह गए. विश्वामित्र जी ने ऐसा करके उनको एक प्रकार से चुनौती दे दी थी. इस पर देवता त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजने लगे, जिसे विश्वामित्र ने अपना अपमान समझा. उनको यह हार स्वीकार नहीं थी.


तब उन्होंने अपने तपोबल से उसे हवा में ही रोक दिया और नई स्वर्ग तथा सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी. इससे देवता भयभीत हो गए. उन्होंने अपनी गलती की क्षमायाचना तथा विश्वामित्र को मनाने के लिए उनकी स्तुति प्रारंभ कर दी. अंतत: देवता सफल हुए और विश्वामित्र उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हो गए. उन्होंने दूसरे स्वर्ग और सृष्टि की रचना बंद कर दी. इससे सभी देवता प्रसन्न हुए और उस दिन उन्होंने दिवाली मनाई, जिसे देव दीपावली कहा गया.


देव दीपावली की दूसरी कथा भगवान शिव से जुड़ी है. पौराणिक कथा के अनुसार, ए​क समय तीनों ही लोक त्रिपुर नाम के राक्षस के अत्याचारों से भयभीत और दुखी था. उससे रक्षा के लिए देवता भगवान शिव की शरण में गए. तब भगवान शिव ने कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को त्रिपुरासुर का वध कर दिया और तीनों लोकों को उसके भय से मुक्त किया. उस दिन से ही देवता हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शिव के विजय पर्व के रूप में मनाने लगे. उस दिन सभी देव दीपक जलाते हैं. इस दीपोत्सव को देव दीपावली कहा गया.


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