गोमती नदी में दुर्दशा के बादल तो छंट नहीं पाए, लेकिन अफसरों ने उसके तट को संवारने में पानी की तरह पैसा बहाया था। कुछ खास लोगों की झोली में ही ठेका डाल दिया गया था और पूरी कमान सिंचाई विभाग के एक अधिशासी अभियंता संभाले थे। गोमती रिवरफ्रंट परियोजना में एक प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी की भी प्रमुख भूमिका रही थी। मनमाने तरह से हो रहे कार्यों के कारण ही सिंचाई विभाग ने 656 करोड़ की गोमती रिवरफ्रंट परियोजना में 1513.51 करोड़ खर्च कर डाले थे।
2448.42 करोड़ और खर्च करने की थी तैयारी
इतनी रकम खर्च होने के बावजूद अफसरों ने और खर्च और बजट खपाने की तैयारी कर ली थी। यह सब मंजूरी अखिलेश सरकार में ही होती रही थी। अधिकारियों ने गोमती तट पर अतिरिक्त कार्य कराने के लिए 2448.42 करोड़ का पुनरीक्षित बजट बनाया था। मतलब 9 अरब की रकम और खर्च करने की तैयारी थी। अभी बजट बढ़ाने की तैयारी चल ही रही थी कि विधानसभा चुनाव में अखिलेश सरकार हार गई और भाजपा के सत्ता में आते ही गोमती रिवरफ्रंट परियोजना पर जांच की आंच दिखने लगी।
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जांच के घेरे में सिंचाई विभाग के साथ ही कई ठेकेदार भी आए थे। इस तरह सत्ता संभालने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोमती तट का दौरा किया। नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना को भी जांच में लगाया गया था। 27 मार्च को जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोमती रिवरफ्रंट पहुंचे थे, तो उन्होंने कह दिया था कि गोमती तट पर हुए एक-एक कार्यों की जांच कराई जाएगी।
इनके खिलाफ दर्ज हुआ था मुकदमा
मुख्यमंत्री ने टिप्पणी की थी, ‘जितना पैसा गोमती तट को संवारने में खर्च किया गया था, उससे कम में तो गोमती को निर्मल बनाया जा सकता था, 70 करोड़ का फाउंटेन लगाने से बेहतर था कि पहले नदी को साफ कर देते। मुख्यमंत्री ने गोमती तट पर हुए कार्यों के एस्टीमेट का भी परीक्षण करने के निर्देश दिए थे।
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आपको बता दें साल 2014 15 में गोमती नदी चैनेलाइजेशन परियोजना के लिए 656 करोड रुपए की धनराशि आवंटित की गई थी जो बढ़कर 1513 करोड़ हो गई थी इस राशि का 95% हिस्सा खर्च होने के बावजूद परियोजना का 60% कार्य पूरा हुआ। गोमती रिवर परियोजना में खर्च रकम की जांच कराने के लिए मुख्यमंत्री ने न्यायमूर्ति आलोक सिंह की अध्यक्षता में समिति गठित की थी। समिति ने भी गड़बड़ी की तरफ इशारा किया था।
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जानकारी के मुताबिक, गोमती रिवरफ्रंट घोटाले में तत्कालीन मुख्य अभियंता गोलेश चंद्र (रिटायर), अधीक्षण अभियंता एसएन शर्मा, काजिम अली, शिव मंगल यादव (रिटायर), अधिशासी अभियंता अखिल रमन, कमलेश्वर सिंह, सुरेश यादव और रूप सिंह यादव (रिटायर) के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था।
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