मौजूदा सरकार ने फर्जी NGO पर काफी हद तक लगाम लगाने में सफल हुई है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मोदी सरकार ने पिछले चार साल में गैर-सरकारी संगठनों (NGO) को विदेश से मिलने वाले चंदे पर सख्ती दिखाई है. सख्ती के बाद विदेशी चंदे में 40% की कमी आई है. विदेशी कंसलटेंसी फर्म बेन एंड कंपनी की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से 13 हजार से अधिक एनजीओ के लाइसेंस गृह मंत्रालय द्वारा रद्द किए गए हैं. सिर्फ 2017 में ही करीब 4,800 एनजीओ के लाइसेंस रद्द हुए हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार विदेशी चंदे को अधिनियमित करने वाले कानून एफसीआरए अधिनियम के उल्लंघन को लेकर मोदी सरकार और एनजीओ इकाइयों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की है जिसके बाद यह परिणाम सामने आया है. कार्रवाई में कई संगठन विभिन्न संवैधानिक अधिकारों के संरक्षण के काम के लिए खड़े किए गए थे. इन संगठनों ने सरकारी कार्रवाई पर शोर किया और इसे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग बताया.
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चलाया गया था अभियान
मोदी सरकार ने पिछले साल रिजर्व बैंक के बोर्ड के सदस्य नचिकेत मोर का कार्यकाल कम कर दिया था. मोर भारत में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के निदेशक हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने मोर को हटाये जाने का अभियान चलाया था. फोर्ड फाउंडेशन और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे बड़े विदेशी एनजीओ को भी सरकार की कार्रवाई का सामना करना पड़ा.
इस दौरान निजी समाजसेवी लोगों का योगदान बढ़ा है. कुल निजी वित्तपोषण वित्तवर्ष 2014-15 में 60 हजार करोड़ रुपये था जो वित्त वर्ष 2017-18 में बढ़कर 70 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया. भारतीय उद्योग जगत ने इस अवधि में कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) के तहत 13 हजार करोड़ रुपये का योगदान दिया. सह 12 प्रतिशत वृद्धि दर्शाता है. इसके अलावा व्यक्तिगत दानकर्ताओं ने 43,000 करोड़ रुपये रहा जो 21 प्रतिशत वृद्ध दर्शाता है.
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