नागरिकता संशोधन बिल 2016: जानें क्या है ‘नागरिकता बिल’ और पूर्वोत्तर राज्य क्यों कर रहे हैं विरोध

केंद्र सरकार के प्रस्ताव पर मंगलवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 पारित हो गया है. अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने के प्रावधान वाले विधेयक पर असम के कुछ वर्गों की आशंकाओं और धार्मिक आधार पर नागरिकता दिए जाने के आरोपों को निराधार बताते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि असम की जनता की परंपराओं, संस्कृति को संरक्षित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है और हम इसके लिए प्रतिबद्ध हैं.

 

राजनाथ सिंह ने संसद की संयुक्त समिति द्वारा यथाप्रतिवेदित नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 पर सदन में हुई चर्चा के जवाब में यह बात कही. उनके जवाब के बाद सदन ने ध्वनिमत से विधेयक को पारित कर दिया. कांग्रेस एवं तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया.

 

जानें क्या है क़ानून में 

यह विधेयक नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. इस विधेयक के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल के बजाय 6 साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी.

 

गृह मंत्री ने कहा कि नागरिकता विधेयक के संबंध में गलतफहमी पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है और असम के कुछ भागों में आशंकाएं पैदा करने की कोशिश हो रही हैं. उन्होंने कहा, ‘इस विधेयक को लेकर तरह तरह की आशंकाएं, भ्रम पैदा करने की कोशिशें निर्मूल हैं, निराधार हैं. असम के लोगों की परंपराओं, संस्कृति को संरक्षित करना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है और हम इसके लिए प्रतिबद्ध हैं.’ उन्होंने कहा कि यह गलतफहमी पैदा की जा रही है कि इस विधेयक का बोझ असम सहेगा. ऐसा नहीं है, पूरा देश इसे सहेगा. सरकार और पूरा देश असम की जनता के साथ खड़े हैं.

 

जानें क्यों हो रहा विरोध 

असम में अवैध शरणार्थियों की पहचान धार्मिक आधार पर नहीं हुई है और वहां के ज्यादातर लोग चाहते हैं कि बांग्लादेश से आए शरणार्थी (मुस्लिम और हिंदू दोनों) जो संयोग से बंगाली भी बोलते हैं, उन्हें हटाया जाना चाहिए. असम के लोगों को डर है कि बांग्लादेश से आए अवैध शरणार्थी उनकी संस्कृति और भाषाई पहचान के लिए खतरा हैं.

 

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