लखनऊ: ADM को बचाने के लिए होमगार्ड ने दांव पर लगाई थी अपनी जान, हादसे में खो दी अपनी आंख, 7 साल बीतने के बाद भी विभाग नहीं करा पाया इलाज

एक समय में एडीएम की जान बचाने वाले होमगार्ड टाइगर इस वक्त अपनी खुद की मदद के लिए अफसरों के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं. एडीएम को बचाने के लिए होमगार्ड ने अपनी एक आंख तक गंवा दी थी. बावजूद इसके उनके ही विभाग को ये सुध नहीं है कि उनका टाइगर इस वक्त किस हालत में है. एक आंख खोने के बाद भी विभाग ने न तो उनकी कोई आर्थिक मदद की और न ही उनका प्रशस्ति पत्र देकर हौसला बढ़ाया गया. इतना ही नहीं, इलाज के लिए भी किसी प्रशासनिक अधिकारी ने कोई कदम नहीं उठाया. उन्होने अफसरों से भी मदद की गुहार लगाई. लेकिन यह कागज भी सरकारी विभाग में सभी फाइलों की तरह कहीं दब कर रह गया है.

इस मामले में गंवाईं थी एक आंख

जानकारी के मुताबिक, 1 सितंबर 2015 को लखनऊ शहर के विधान भवन के ठीक सामने बीपीएड (बैचलर इन फिजिकल एजुकेशन) धारको ने अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन किया था. विधान भवन के सामने से उन्हें हटाने के लिए पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले दागे थे. उस वक्त एडीएम पूर्वी निधि श्रीवास्तव बीपीएड धारकों को समझाने के लिए उनके बीच चली गई थीं. उसी समय उग्र प्रदर्शन हो गया था. प्रदर्शनकारियों के बीच में वह फंस गई थीं.

उस वक्त सभी आला अधिकारी एडीएम निधि श्रीवास्तव को प्रदर्शनकारियों के बीच में छोड़कर भाग गए थे, तब उनकी जान बचाने के लिए इस जांबाज होमगार्ड विष्णु कुमार पांडेय ने अपनी जान पर खेलकर सभी से लड़ते हुए उन्हें सुरक्षित बाहर निकाला था. एडीएम को बचाते हुए उन्होंने अपना संतुलन खो दिया था और उनकी आंख पर प्रदर्शनकारियों ने पत्थर मार दिया था जिस वजह से उनकी दाहिनी आंख का पर्दा फट गया और पिछले 7 सालों से टाइगर पांडेय एक ही आंख से देखते हैं.

अफसरों ने नहीं ली सुध

जिसके बाद 29 दिसंबर 2015 को वीके पांडेय ने अपर जिलाधिकारी को पत्र लिखकर बताया था कि 28 दिसंबर 2015 को उन्होंने लखनऊ के ही सिविल हॉस्पिटल में अपनी आंख की जांच कराई थी. सिविल हॉस्पिटल ने उनकी आंखों के सभी जांचों के बाद यह कहा था कि यहां वो उपकरण मौजूद नहीं हैं, जिससे उनकी आंखों का इलाज हो सके, क्योंकि इस आंख का इलाज बहुत जटिल है. ऐसे में सिविल हॉस्पिटल ने उनको मेडिकल कॉलेज लखनऊ में जाकर इलाज कराने की सलाह दी थी. जिसके बाद होमगार्ड ने आग्रह किया था कि मेडिकल कॉलेज में उनके इलाज को निशुल्क कराने की कृपा करें, लेकिन यह कागज भी सरकारी विभाग में सभी फाइलों की तरह कहीं दब कर रह गया है.

इस हादसे के बाद विष्णु को अपर जिलाधिकारी समेत अधिकारियों से कई प्रशस्ति पत्र तो मिले, लेकिन उनके अपने होमगार्ड विभाग ने कभी भी उनको एक प्रशस्ति पत्र तक नहीं दिया. इतना ही नहीं उनकी किसी भी प्रकार की आर्थिक सहायता भी नहीं की गई. तत्कालीन डीआईजी होमगार्ड संतोष कुमार सिंह जब उन्हें घायलावस्था में देखने के लिए आए थे तो उन्होंने उनको टाइगर की उपाधि देते हुए नेम प्लेट जरूर भेंट की थी.

घटना को बीते 7 साल

एक आंख खोने के बाद उनके विभाग ने एके बार भी ये सुध नहीं लेनी चाही कि उनका कर्मचारी किस हाल में है. आर्थिक रूप से बेहद कमजोर होने की वजह से वह अपनी आंख का ऑपरेशन तक नहीं करा सके और हैरानी की बात तो यह है कि वह पत्र लिखते रह गए कि उनकी आंख का ऑपरेशन करा दिया जाए, लेकिन न तो प्रशासन स्तर पर उनकी कोई मांग सुनी गई और न ही शासन स्तर पर. आज बीके पांडेय को अपनी दाहिनी आंख गंवाए करीब 7 साल बीत गए हैं. पर आज तक विभाग की तरफ से उन्हें कोई उम्मीद नहीं मिली.

डीजी होमगार्ड्स ने दिया आश्वासन

वहीं अब जब कई मीडिया संस्थानों ने मामले को उठाया है तो डीजी होमगार्ड्स विजय कुमार का इस पर बयान आया है. उन्होंने कहा है कि, उन्हें लखनऊ में आए हुए अभी ढाई साल ही हुए हैं. इस वजह से यह मामला उनके संज्ञान में नहीं था.अब उनके संज्ञान में है तो उन्होंने अपने पर्सनल असिस्टेंट से कहकर वीके पांडेय को तुरंत फोन लगवाया और उन्हें मिलने के लिए बुलाया है. इसके अलावा उन्होंने फोन पर ही अपने पीए से उनकी हर तरह की मदद का आश्वासन देने के लिए भी कहा.

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