Jagannath Puri: ऊपर से नहीं उड़ते पक्षी और हवाई जहाज, हवा के विपरीत दिशा में लहराता है झंडा, विज्ञान के पास भी नहीं हैं जगन्नाथ मंदिर से जुड़े 8 रहस्यों के जवाब

भगवान जगन्नाथ (Lord Jagannath) की रथ यात्रा की शुरुआत हो चुकी है. पिछले दो साल से कोरोना वायरस (Coronavirus) के प्रकोप के चलते भक्तों को रथ यात्रा में जाने अनुमति नहीं थी लेकिन इस बार इसे शुरू किया गया है. बता दें कि 1 जुलाई से 12 जुलाई तक भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का कार्यक्रम जारी रहेगा. हिंदू पंचाग (Hindu Panchang) के अनुसार, अषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा निकाली जाती है. जान लें कि भारत के 4 पवित्र धामों में से ओडिशा (Odisha) के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर (Lord Jagannath Temple) एक है. भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र भी शामिल होते हैं. कहा जाता है कि बहन सुभद्रा ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई थी, जिसके बाद भगवान जगन्नाथ और भाई बलभद्र उन्हें रथ पर लेकर निकले थे, इस दौरान वो अपनी मौसी के घर गंडिचा में भी गई थीं. तब से ही रथ यात्रा परंपरा की शुरुआत हुई. भगवान जगन्नाथ के मंदिर में कई चौंका देने वाले रहस्य हैं, आइए इनके बारे में जानते हैं.

 जगन्नाथ मंदिर का झंडा (Jagannath Temple Flag) काफी अनोखा है. मंदिर का झंडा हमेशा हवा की दिशा के विपरीत उड़ता है. हवा जिस दिशा में बहती है, झंडा उसकी विपरीत दिशा में उड़ता है. अब तक लोग इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाते कि इस बात के पीछे की क्या वजह है.

जगन्नाथ मंदिर का झंडा (Jagannath Temple Flag) काफी अनोखा है. मंदिर का झंडा हमेशा हवा की दिशा के विपरीत उड़ता है. हवा जिस दिशा में बहती है, झंडा उसकी विपरीत दिशा में उड़ता है. अब तक लोग इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाते कि इस बात के पीछे की क्या वजह है.

 मंदिर पर लगा ये चक्र (Sudarshan Chakra) 20 फीट ऊंचा है और एक टन से ज्यादा भारी है. ये चक्र मंदिर के ऊपरी हिस्से पर लगा हुआ है. लेकिन इस चक्र से जुड़ी सबसे खास बात ये है कि आप इस चक्र को शहर के किसी भी हिस्से से देख सकते हैं. इस चक्र के पीछे की इंजीनियरिंग भी एक रहस्य है. आप मंदिर के किसी भी हिस्से में खड़े हो जाएं, आपको ऐसा लगेगा कि मंदिर का चक्र आपकी ही ओर घूमा हुआ है.

मंदिर पर लगा ये चक्र (Sudarshan Chakra) 20 फीट ऊंचा है और एक टन से ज्यादा भारी है. ये चक्र मंदिर के ऊपरी हिस्से पर लगा हुआ है. लेकिन इस चक्र से जुड़ी सबसे खास बात ये है कि आप इस चक्र को शहर के किसी भी हिस्से से देख सकते हैं. इस चक्र के पीछे की इंजीनियरिंग भी एक रहस्य है. आप मंदिर के किसी भी हिस्से में खड़े हो जाएं, आपको ऐसा लगेगा कि मंदिर का चक्र आपकी ही ओर घूमा हुआ है.

 आपको ये जानकर हैरानी होगी कि मंदिर के ऊपर से ना ही कभी कोई प्लेन (Aeroplane) उड़ता है और ना ही कोई पक्षी (Birds) इस मंदिर के ऊपर से गुजर पाता है. भारत के किसी दूसरे मंदिर में भी ऐसा नहीं देखा गया है. भगवान में आस्था रखने वालों का मानना है कि राज्य सरकार ने नहीं, मगर परमात्मा ने इस क्षेत्र को नो फ्लाइंग जोन घोषित कर दिया है.

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि मंदिर के ऊपर से ना ही कभी कोई प्लेन (Aeroplane) उड़ता है और ना ही कोई पक्षी (Birds) इस मंदिर के ऊपर से गुजर पाता है. भारत के किसी दूसरे मंदिर में भी ऐसा नहीं देखा गया है. भगवान में आस्था रखने वालों का मानना है कि राज्य सरकार ने नहीं, मगर परमात्मा ने इस क्षेत्र को नो फ्लाइंग जोन घोषित कर दिया है.

 इस मंदिर की लाजवाब इंजिनियरिंग (Jagannath Temple Engineering) का एक और नमूना ये है कि दिन के किसी भी वक्त मंदिर की परछाई (Shadow) नहीं बनती है. यानी पूरे दिन में आपको मंदिर की परछाई नहीं दिखाई देगी. कई लोग इसे मंदिर के बेहतरीन डिजाइन का कारण बताते हैं जबकि कई लोगों का कहना है कि ये भगवान की शक्ति है.

इस मंदिर की लाजवाब इंजिनियरिंग (Jagannath Temple Engineering) का एक और नमूना ये है कि दिन के किसी भी वक्त मंदिर की परछाई (Shadow) नहीं बनती है. यानी पूरे दिन में आपको मंदिर की परछाई नहीं दिखाई देगी. कई लोग इसे मंदिर के बेहतरीन डिजाइन का कारण बताते हैं जबकि कई लोगों का कहना है कि ये भगवान की शक्ति है.

 पुरी के जगन्नाथ मंदिर में 4 द्वार हैं. इन चारों द्वारों में से मुख्य द्वार का नाम है 'सिम्हद्वारम (Simhadwaram). जब श्रद्धालु सिम्हद्वारम से मंदिर में प्रवेश करते हैं तब तक उन्हें समुद्र की गर्जना सुनाई देती है मगर द्वार से मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही समुद्र की गर्जना गुम हो जाती है. और जब तक कोई मंदिर के अंदर रहता है तब तक मंदिर के अंदर समुद्र की आवाज नहीं आती है.

पुरी के जगन्नाथ मंदिर में 4 द्वार हैं. इन चारों द्वारों में से मुख्य द्वार का नाम है ‘सिम्हद्वारम (Simhadwaram). जब श्रद्धालु सिम्हद्वारम से मंदिर में प्रवेश करते हैं तब तक उन्हें समुद्र की गर्जना सुनाई देती है मगर द्वार से मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही समुद्र की गर्जना गुम हो जाती है. और जब तक कोई मंदिर के अंदर रहता है तब तक मंदिर के अंदर समुद्र की आवाज नहीं आती है.

 दुनिया के किसी भी कोने में अगर आप समुद्र (Puri Sea) के पास मौजूद होंगे तो आप पाएंगे कि दिन के वक्त समुद्र से मैदान की ओर हवा चलती है जबकि शाम के वक्त मैदान से समुद्र की ओर हवा चलती है. लेकिन पुरी में समुद्र के पास की हवा की चाल भी बदल जाती है. यहां इसका विपरीत होता है.

दुनिया के किसी भी कोने में अगर आप समुद्र (Puri Sea) के पास मौजूद होंगे तो आप पाएंगे कि दिन के वक्त समुद्र से मैदान की ओर हवा चलती है जबकि शाम के वक्त मैदान से समुद्र की ओर हवा चलती है. लेकिन पुरी में समुद्र के पास की हवा की चाल भी बदल जाती है. यहां इसका विपरीत होता है.

 मंदिर का एक अनोखा रिवाज है जिसे जानकर लोग हैरान हो जाते हैं. यहां प्रतिदिन एक पुजारी (Priest) मंदिर में सबसे ऊपर चढ़ता है. मंदिर में ऊपर चढ़ना जैसे किसी इमारत की 45वीं मंजिल तक चढ़ना है. पुजारी मंदिर के ऊपर लगे झंडे को हर दिन बदलता है. माना जाता है कि ये रिवाज (Ritual) बीते 1800 साल से चल रहा है. अगर एक भी दिन ऐसा नहीं किया गया तो मंदिर को 18 साल के लिए बंद कर दिया जाएगा.

मंदिर का एक अनोखा रिवाज है जिसे जानकर लोग हैरान हो जाते हैं. यहां प्रतिदिन एक पुजारी (Priest) मंदिर में सबसे ऊपर चढ़ता है. मंदिर में ऊपर चढ़ना जैसे किसी इमारत की 45वीं मंजिल तक चढ़ना है. पुजारी मंदिर के ऊपर लगे झंडे को हर दिन बदलता है. माना जाता है कि ये रिवाज (Ritual) बीते 1800 साल से चल रहा है. अगर एक भी दिन ऐसा नहीं किया गया तो मंदिर को 18 साल के लिए बंद कर दिया जाएगा.

 मंदिर में बनने वाला प्रसाद (Jagannath Temple Prasadam) कभी बर्बाद नहीं होता है. माना जाता है कि किसी भी एक दिन जगन्नाथ पुरी मंदिर में 2 हजार से 20 हजार श्रद्धालु आते हैं. लेकिन मंदिर में बनने वाले प्रसाद की मात्रा पूरे साल एक ही होती है. इसके बावजूद प्रसाद ना ही कम पड़ता है और ना ही ज्यादा बन जाता है. प्रसाद को बनाने की भी अलग तकनीक होती है. इन प्रसाद को पॉट में बनाया जाता है. इसके लिए आग पर सात अलग-अलग पॉट रखे जाते हैं. हैरानी की बात ये है कि सबसे ऊपर रखा हुआ पॉट या बर्तन में पक रहा प्रसाद सबसे पहले बनता है और उसके बाद नीचे के प्रसाद पक कर तैयार होते हैं.

मंदिर में बनने वाला प्रसाद (Jagannath Temple Prasadam) कभी बर्बाद नहीं होता है. माना जाता है कि किसी भी एक दिन जगन्नाथ पुरी मंदिर में 2 हजार से 20 हजार श्रद्धालु आते हैं. लेकिन मंदिर में बनने वाले प्रसाद की मात्रा पूरे साल एक ही होती है. इसके बावजूद प्रसाद ना ही कम पड़ता है और ना ही ज्यादा बन जाता है. प्रसाद को बनाने की भी अलग तकनीक होती है. इन प्रसाद को पॉट में बनाया जाता है. इसके लिए आग पर सात अलग-अलग पॉट रखे जाते हैं. हैरानी की बात ये है कि सबसे ऊपर रखा हुआ पॉट या बर्तन में पक रहा प्रसाद सबसे पहले बनता है और उसके बाद नीचे के प्रसाद पक कर तैयार होते हैं.

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